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2 Comments

  1. मृगेश

    खूब टार्चर कर रहे हो
    भाषा में ऐसी थर्ड डिग्री
    कि न तलवों में चोट
    न लात -घूसों सी खोट
    बड़ा सुकून कि आखिरी
    जमात में दुबका दर्द जाने हो
    ऊपर के पिरामिड की
    रग -रग पहचाने हो.
    इस माटी के हर रौखड़
    गंदला गई नदी
    बहक गई हवा
    और लिज़लिज़ा गई नीयत
    को छूती तुम्हारी कलम
    सलाम अलैकुम.

  2. Anonymous

    अरे…
    बहुत शुक्रिया

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