अगर आप कभी नैनीताल या अल्मोड़ा की तरफ़ यात्रा पर निकले हों तो रास्ते में “कैंची धाम” का नाम ज़रूर सुना होगा. दुनिया भर में ये “नीब करौरी धाम” नाम से प्रसिद्धी पा चुका धार्मिक स्थल है. अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर इसे कैंची धाम क्यों कहा जाता है? क्या यहाँ कभी कोई कैंची बनी थी? या इस नाम के पीछे कोई और वजह है?
(Neeb Karori Baba Ashram Kainchi Dham)
दरअसल, ‘कैंची’ शब्द यहाँ सड़क के एक खास तरह के मोड़ से जुड़ा है, जो पहाड़ी इलाक़ों की सड़कों पर बहुत आम होता है. इसे अंग्रेज़ी में Hairpin Bend या Switchback Turn कहा जाता है.
कैसे बना ‘कैंची मोड़’?
पहले के ज़माने में गाड़ियों में न पावर स्टीयरिंग होती थी, न छोटे टर्निंग रेडियस. ऐसे में पहाड़ी सड़कों के तेज़ यू-टर्न पर गाड़ी मोड़ना बहुत मुश्किल होता था. जब दो गाड़ियाँ ऐसे किसी संकरे मोड़ पर आमने-सामने आती थीं, तो उन्हें पास होने के लिए ‘रॉन्ग साइड’ लेकर मोड़ना शुरू करना पड़ता था.
इस दौरान गाड़ियाँ एक-दूसरे को ‘X’ या ‘कैंची’ के आकार में क्रॉस करती नज़र आती थीं — जैसे किसी ने सड़क पर कैंची रख दी हो. इसी वजह से ऐसे मोड़ों को आम बोलचाल में कहा जाने लगा — ‘कैंची मोड़’.
(Neeb Karori Baba Ashram Kainchi Dham)
ऐसे मोड़ कहाँ-कहाँ मिलते हैं
उत्तराखंड और हिमाचल जैसे राज्यों की पहाड़ी सड़कों पर ऐसे मोड़ आम हैं. नैनीताल से अल्मोड़ा के बीच का कैंची मोड़, जहाँ पर आज प्रसिद्ध नीब करौरी बाबा का आश्रम स्थित है, इसी विशेषता के कारण “कैंची धाम” कहलाया. मसूरी जाते हुए लालटिब्बा के पास, या गंगोत्री हाईवे पर धराली के आगे, ऐसे कई तेज़ हेयरपिन बेंड मिलते हैं जहाँ सड़कें लगभग एक-दूसरे को काटती नज़र आती हैं.
‘कैंची धाम’ का नाम कैसे पड़ा
नीब करौरी बाबा का आश्रम जिस जगह पर स्थित है, वहाँ सड़क दो बार एक-दूसरे को काटती है, बिल्कुल कैंची के आकार में. यही वजह है कि उस जगह का नाम “कैंची” पड़ा और वहाँ बना मंदिर प्रसिद्ध हुआ “कैंची धाम” के नाम से. धाम की आध्यात्मिक महत्ता के साथ-साथ यह स्थान आज भूगोल, इंजीनियरिंग और संस्कृति; तीनों के संगम का प्रतीक बन गया है. जहाँ एक तरफ़ सड़क की बनावट “कैंची” का अर्थ समझाती है, वहीं दूसरी ओर बाबा नीब करौरी की आध्यात्मिक उपस्थिति ने इस स्थान को एक अनोखा तीर्थ बना दिया है.
(Neeb Karori Baba Ashram Kainchi Dham)
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