तिब्बत का पहला भौगोलिक अन्वेषण करने वाले उन्नीसवीं शताब्दी के महानतम अन्वेषकों में से एक माने जाने वाले मुनस्यारी की जोहार घाटी के मिलम गाँव के निवासी पंडित नैनसिंह रावत के बारे में लेख काफल ट्री पर पहले प्रकाशित हो चुके हैं. आज पंडित नैनसिंह रावत का जन्मदिन है. आज पढ़िए नैनसिंह रावत के शुरुआती जीवन के संघर्ष विषय में- संपादक.
(Nain Singh Rawat Early Life)
धामा बूढ़ा की तीन शादी थीं. अलग-अलग तीन घरों में रहती थीं. तमाम, मीरास व विरसियत तीनों हिस्सों में बंटा था- अव्वल शादी मंगुली बुड़ी के जसपाल, दोलपा, सुरजू के तीन भाई एक तिहाई के मालिक थे, दूसरी शादी टुलानी बुड़ी की कुकरिया, विरसिंह ये दो भाई एक तिहाई के हिस्सेदार समझे गये, तीसरी शादी मार्छी धारमी बुड़ी के फतेसिंह, देबू, झेमु, लाटा, नागू पांच लड़के एक तिहाई मिरास के हकदार थे. पांचों भाई एक साथ रहते थे मेरा बाप लाटा बूढ़ा सन 1795 ईस्वी में पैदा हुआ था. करीब 24 या 25 वरस की उमर में एक ऐसी चूक हुई कि केसरसिंह नितवाल धाड़ा नीतीवाले की बहन शादी घर में मौजूद थी. तिस पर भी भादू थेपू वगैरह चौभये विलज्वालों की बहन लखमा जो मिलम के सयाने राठ की व्याही थी उठाकर अपने घर लाया. जिसे फतेसिंह, देबू वगैरह भाई नाराज होकर लाटा बूढ़ा को विला हिस्सा अलग कर दिया. जो कुछ मिरास पांच भाईयों का हक था कुल चार हिस्सा कर बांट लिया.
मेरा बाप लाटा बूढ़ा अपनी दो शादियों समेत गोरी पार भटकूड़ा में रहता था. सन 1824 ईस्वी में अपने बाप की माल मीरास का पांचवा हिस्सा दिला पाने बाबत जनाब जार्ज विलयम त्रियल साहब बहादर की अदालत में नालिश की तो मुकदमा डिसमिस हो गया. बाद उदासी के साथ घर आया तो थोड़े दिन बाद विलज्वाली और नितवाली दोनों औरतें गोरी नदी में डूब कर मर गई.
(Nain Singh Rawat Early Life)
सन 1824 ईस्वी में बाप की उम्र 29 वरस की थी मिरास के हार जाने और औरतों के डूब मरने से परेशान था. गोरी पार जमीदारों में रहकर दिन काटता. किसी गांव वालों के आपस में तकरार होता तो पंचायत की रु से उनका झगड़ा निवेड़ देता. जमीदारों से कुछ खेती भी करवाता. इसी तरह गुजारा करता.
सन 1825 ईस्वी में बाप ने मेरी मां यशुली से शादी की जो परगनह असकोट के जुंमा गांव के लाटा राणा जुमाल रजपूत की बेटी थी. सन 1826 ईस्वी में मुझसे बड़ा भाई समजांग पैदा हुआ और तारीख 21 अक्टूबर सन 1830 ईस्वी के रोज मुताविक सम्वत 1887 के कार्तिक छः गते बुधवार के दिन मैं पैदा हुआ. सन 1833 ईस्वी में एक बहन जनी जो चरखमिया पंछू जंगपांगी को गई. सन 1836 ईस्वी में एक भाई पैदा हुआ जिसको मागा नाम रखा गया.
सन 1838 के मई महीने में मेरी मां परलोक को सिधारी. हम चार पांच लड़के अनाथ हो गये. हमारी परवरिश के लिये मेरे पिता को फिर एक शादी करनी पड़ी. सन 1839 ईस्वी में थोला धपवाल की बेटी पदिमा से शादी को सन 1839 ईस्वी में सौतेली मां से गजराज सिंह पैदा हुआ. सन 1841 ईस्वी में कलियाना सिंह जनमा. (पंडित नैनसिंह रावत : घुमन्तू चरवाहे से महापंडित तक)
(Nain Singh Rawat Early Life)
गरज मेरा बाप 25 बरस तक गोरीपार मौजा भटकुड़ा में रहा. सन 1847 ईस्वी में गोरीपार छोड़कर मिलम में आये. सन 1848 ईस्वी में मर गया. बाप के मर जाने पर तयेरा भाई बड़ा माणी बूढ़ा ने चाहा कि लाटा बूढ़ा केर हिस्से का माल व मताह जो कुछ लाटा बूढ़ा हार गया था उसके लड़कों को दी जावे पर और तयेरे चचेरे भाइयों की नियत देने की न हुई. लाचार बड़ा माणी बूढ़ा ने सिर्फ अपनी तर्फ से कुछ रुपये और भेड़ बकरे दिये लेकिन हमारी परेशानी का हाल को देखकर हमारे ऊपर नजर परवरिश की रखता रहा कभी दो पूंजी देकर व्यापार में भी नफ़ा दिलाता.
मैं घर से भागा
उस वक्त बड़ा भाई समजांग का उमर 23 वरस का था और मेरी उम्र 18 वरस की थी. कमाई तो कुछ थी नहीं सिर्फ उधार लेकर पेट भर लेने का काम था. मैं बड़े भाई से भी निर्वुद्धि था. एक रोज मेरी सौतेली मां ने मुझे कुछ काम के लिये आज्ञा दी. मैंने उनका कहा तो न माना बल्कि नाराज होकर सन 1851 ईस्वी के जुलाई महिने में मिलम से निकला मुनस्यारी दानपूर वधाण और हुमली वलान और इरानी पाना होता हुआ जोशीमठ के रस्ते से बदरीनाथ जा पहुंचा.
बद्रीनाथ के उत्तर पास माणा गांव का अमरदेव मारछे ने अपना छोटा भाई स्वर्गवासी निरौला की बेटी उमती के साथ मेरी शादी कर दी तीन वरस तक मैं माणा में रहा.
अमरदेव की लड़की लाटी मेरे तयेरा भाई बड़ा माणी वूढ़ा को व्याही थी मैं अमरदेव ही के घर में रहता था अमरदेव ने मुझसे यह ठहरा लिया था कि नैनसिंह वरावर मेरे घर में रहे जो कुछ मिरास मेरा और मेरे भाई का है नैनसिंह को मिलै अमरदेव मालदार आदमी था उसके घर में मैं वड़े आनंद से रहता था लेकिन ससुर घर में रहना सवव गैरती का जान कर सन् 1854 ईस्वी के मार्च महीने में कवीले को साथ लेकर गढ़वाल से घर को चले आया उस वक्त मेरे कवीले की उम्र 13 वरस की थी यद्यपि मेरे घर आने से सौतेली मा व भाई वगैरह सवको खुशी हासिल हुई लेकन किसी तरह का रोजगार न होने से वेचैन थे.
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फिर निकला घर से
गढ़वाल से आकर मैं कुल 10 दस दिन तक घर में रहने पाया भाई की सलाह वमूजिव 600 रुपये बड़ा माणी वुढ़ा से उधार लेकर तारीख 15 अप्रैल सन् 1854 ईस्वी को जीता जंगपांगी और वीजू धमसकतू वगैरह व्योपारियों के साथ भेड़ वकरी और सुरागाय खरीदने को टिहरी मसूरी सिमला विलासपूर ज्वालामुखी कांगड़ा भाकसू होता हुआ चम्वे के देश ब्रह्मोर को गया कुछ भेड़ वकरी व्रह्मोर चम्वे में खरीदा इस ब्रह्मोर गांव में कई देवालय बने हैं जिन में मुर्ते अच्छे बने हैं और गाँव से पूर्व ओर एक बड़ी ऊंची वर्फानी पहाड़ का शृंग है उसी को वहां वाले मदमहेश्वर महादेव मानते हैं. उसी श्रृंग के दामन पर एक झील है बरसात के दिनों में यहां पर बहुत यात्री लोग मदमहेश्वर महादेव के दरशन को आते हैं. लोग इस मुल्क के गदी कहलाते. ब्राह्मण रजपूत डूम तीनों जात के होते हैं और ऊनी पटू के वड़े घेरदार खुले आस्तीनों के अंगे और टोपी भी ऊन के पहनते कमरमें एक काली ऊन की रसी लपेट रखते हैं औरतें भी ऊनी अंगे पहनती लेकन मरदों की तरह घेरदार खुले आस्तीने की नहीं पहनती सिर में चदर ओड़ती पायजामा या लहंगा नहीं रखती और डूम जात से लेकर व्राह्मण तक सव जात के औरत मर्द शराव वहुत पीते अक्सर भेड़ वकरी वहुत पालते ऊनी पट्टू और कम्मल इस मुल्क में उमदे वनते हैं इस मुल्क से भेड़ वकरे हर साल हजरहा कुमाऊ गढ़वाल के तर्फ वेचने को ले जाते हैं साहवान लोगों में भी इन्हीं के भेड़ पसंद किये जाते हैं.
ब्रह्मोर से चौविया का जोत’ यानी हिमालिया टप कर तीन दिन के राह चन्द्र भागा नदी के वाई किनारे पर त्रिलोकनाथ का मन्दर देखा यह मन्दर हिन्दूस्तान के तौर पर तामीर है लेकन मुर्ति वुध का संगमरमर का वना है पूजा तिव्वत के तरीके पर किया जाता वलके पुजारी एक लामा मुकर्रर है और मनदिर के भीतर वुध के मुर्ति के पास एक बड़ा भारी चिराग रातोदिन वरावर जलता रहता है जिसमें पन्द्रह सेर तक घी समा सक्ता है हमेशह यह चराग घी से भरा रहता है मैंने त्रिलोकनाथ से लेकर लावल के केलिंग भेलिंग गांव के वीच 350 तक भेड़ वकरे 10 सुर गाय 1 घोड़ा खरीदा जीता जंगपांगी वगैरह साथियों समेत पाराल्हाचा पहाड़ टपकर पीती के मुल्क में होता हुआ सुमगिल इलाके तिव्वत के भुतभुतल्हा पहाड़ टपकर छुमरती खग्यालिंग श्यांगचा फियां दूंखार के राह थोलिंग में आया थोलिंग में मुझे अमरदेव मारछा मिला उसके घर से चुपके निकल आने के विषय में उसने मुझे वहुत लानत दिया मैं उसके सामने वहुत लज्जित हुआ निदान एक घोड़ा नजर देकर कुछ रुपये देने का इकरार करके राजी किया।
ऐसी कम किसमती कि इस वीच व्योपार के भेड़ वकरी जवू मान रोग से सव मर गये सिर्फ करीव एक सौ तक वचे पूंजी साहूकार का विलकुल सिर पड़ा हजार वारह सौ रुपये की देनदारी में आ गया गुजारा खाने पहिनने का मुशकल से होता विरादरी के लोग कोई आदरपूर्वक पेश नहीं आते जेरवारी इतनी की सूद अदा करना मुश्किल था इस वीच मेरी सौतेली मा ने जाना कि करज की जेरवारी साल साल वढ़ती जाती है अदाय करज की कोई सूरत नहीं गजराजसिंह और कलियान सिंह अपने दो वालकों को समेत हमसे अलग हो गई घर में जो कुछ अनाज और वरतन थे उनमें से आधा समजांग वगैरह हम तीन भाइयों को दिया सन् 1856 ई. के फेव्रवरी महीने में कुछ व्योपार के लिये मैं रामनगर को जा रहा था.
(Nain Singh Rawat Early Life)
सलागिन्टवेट भाइयों के साथ
सुना कि अडोलफ और हेरमन सलागिन्टवेट साहव वहादुर मेगनेटिक सरवियर साहवान वतर्फ तुरकिस्तान व लदाख के जाते हैं उसके साथ मेरे ताऊ देवू पटवारी का लड़का मानी जाने वाला है मैंने अपने मन में सोचा कि भाई माणी के साथ मैं जाऊँगा तो कुछ न कुछ नौकरी मुझे मिल जायगी रामनगर से दो मंजिलों की एक मंजिल तय करता हुआ अपने घर तीजम को पहुंचा माणी को भेंट कर अपना मनोर्थ सव कह सुनाया भाई माणी ने मुझे अपने साथ लेने से इनकार किया वल्के, कई लफ्जें सक्त कही मैने जाना कि मेरे नसीहत के लिए कहता है फिर भी वहुत अरज और मिन्नत की लेकिन साथ लेने में कवूल न हुआ यद्यपि वह अपने साथ के लिये दोल्पा पांगती वगैरह जो उस्के रिश्ते में नहिं था वड़ी मिन्नत से चिट्ठी लिख लिख कर वुला रहा था. यह हाल और अपने नसीव की खूवी को सोचकर मैं रो गया उसी वक्त उठकर ताऊ फतेसिंह का लड़का वडा माणी जो हमारी कौम में सर गिरोह था अकसर मेरी पर मिहर्वानी रखता था उनके घर में जाकर रोरोकर सव हाल जो कुछ भाई माणी पटवारी ने कहा था सुनाया मुझे रोता हुआ देख कर भाई बड़ा माणी ने उसी वक्त एक आदमी के द्वारा माणी पटवारी को वुलाकर कह दिया कि नैन सिंह को साथ ले जावो यह तेरा सव तरह फर्मावरदार रहेगा क्योंकि हकीकत में अपना अपना ही होता विगाना विगाना ही होता गरज कि वहुत ही समझाने से माणी पटवारी ने मुझे साथ लेना कवूल किया.
तारीख 28 फेव्रवरी सन 1856 ईस्वी के रोज घर से जाने की तयारी की मैने अपने ओडने विछौने और जरुरी अशवाव गठरी वनाया और वोझ पीठ में रखकर भाई माणी के हमराह चला माणी पटवारी के साथ गुलाव सिंह नेगी व लाल सिंह कारकी व सुरुवा कोरंगा आदि चार नौकर थे गुलाव सिंह नेगी तों सिर्फ दोनाली वन्दूक कन्धो में लेकर चलता और कुली लोग दस दस सेर के वोझ लिये चले जाते भाई माणी घोड़े की सवारी में जाता मैं पीठ में वोझ लेकर साथ चलता तो भी मेरा काम कि डेरे में पहुच कर भाई का पैर मलना अस्नान वाद धोती धोना और विस्तरा विछा देना वगैरह टहल नित्य अपनें पर मैंने निश्चय ठहरा लिया था क्योंकि मानी मुझसे उमर में और रुतवे में भी बड़ा था उसका खिदमत करने में मुझे कुछ लाज नहीं थी वलके अपनें तई धन्य जानकर सेवा टहल किया करता पर तमाशा यह था कि नौकरान भाई के खाली चलते रास्ते में वोझ का सवव मै थककर पीछे रह जाता परन्तु भाई साहव अपने नौकरों से कभी नहि कहता कि नैनसिंह थक गया उस्का वोझ तुम वांट लो वल्के इसके वदले नौकरान को लड़छड़ाते हुयें खाली चलना खुशामद पसन्दी की वातें सुनना अपने को सवारी में चलना चचेरे भाई पर वोझ होना उस्की खुद पसन्दगी और शानशौकत की जेआयश थी गरज कितने ही मंजिल तै करते हुयें.
(Nain Singh Rawat Early Life)
एक रोज सुवह के रोटी खाने की वक्त नैनीताल के नजदीक भुवाली नाम मुकाम पर पहुँचै उस रोज शिव चतुर्दशी का दिन था भाई ने फर्माया कि मेरी सवारी का घोड़ा तो घर का वापीश गया आज मेरा व्रत का दिन है मैं चल नहिं सकूँगा मेरे वदले कोई व्रत ले तो मैं सवेरे का खाना खालू मैंने कहा कि आपके बदले व्रत मैं करूँगा उस्के वदले मैंने व्रत ली उस रोज भाई साहव के नौकर गुलावसिंह नेगी के जी में दया आई कहा कि नैनसिंह ने पटवारी जी के वदले व्रत ले रखी है भूखा वोझ लेकर राह चल नहिं सकेगा यह कहकर मेरा वोझ सव कुलीयों में वांट दिया नैनीताल पहुँचकर देखता हू तो एक दुष्ट कुली लालसिंह कार्की ने मेरा कम्मल कहीं रास्ते में फेक दिया वाद हल्द्वानी गये जनाव कमिश्नर राम जी साहब वहादुर ने येक सौ रुपया राह खर्ची दी हरिद्वार देहरा नहान होते हुए सिमले में स्लागीन्टवेट साहव तीनों भाई मिले तो साहवान लोगों ने भाई मानी की बड़ी खातीरदारी की साट रूपया माहवारी तनखा कर दी और दोल्या पांगती और
मेरा पैतीश पैतीश रुपये तलव मुकर कर दिया हेरमन स्लागीन्टवेट साहव के साथ माणी कनावर पीनी के राह छोमोरीरी होकर लदाख में पहुँचा आडोलफ और रोवेर्ट साहव के साथ मैं और दोल्या कुलू से लाहोल तक साथ गये वहां से ओडोलफ साहव तो झांसकर्क राह वलतिस्तान के इसकर्दू को गया मैं रोवर्ट साहव के साथ पाराल्हचा पहाड़ के राह रुख श्योक होता हुआ लेई में दाखिल हुआ साहव नै तमाम अमलों को लदाख में रहने का हुक्म दिया हेरमन और रोवर्ट सलागीटवट साहव वहादर दो भाई मय हमराहियान भाई माणी और मुहम्मद अमीन व मकसूद और कई लोग लदाखियों के तुरकिस्तान के सरहद खोतान के मुतसिल पुशिया गांव तक पहुंच कर अक्टूवर महिने में लदाख वापिश आये वाद करगिल के राह आखिर अक्टूवर में कश्मीर पहुँचे आडोलफ साहव भी इसकरदू के तर्फ घूम कर काश्मीर में मिल गया कई रोज काश्मीर में रहकर पंजाव को चल दिये वारामूला तक तो झेलम या विथस्ता दरिया के वीच नावों में सवार हो आये वहां से खुशकी की राह मश्यारी यामरी पहाड़ कोई रोज ठहरकर दिशम्वर महीने में रावलपिंडी में पहुँचे वहुत दिन रावलपिंडी में रहकर अडोलफ साहव ने तो चाहा कि कावुल के राह बुखारा होकर रुसियों के मुल्क होकर इंगलिस्तान चला जाउं.
(Nain Singh Rawat Early Life)
पहाड़ के सोलहवें-सत्रहवें अंक से साभार.
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