दो अक्टूबर का दिन उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान घटा सबसे क्रूर दिन था. अपने नेताओं के घड़ियाली आंसू देखते हुये अब तीन दशक होने को आये हैं पर उत्तराखंड के लोगों को न्याय न मिला. नेताओं द्वारा आँखों से इतना खारा पानी गिराया गया है कि अब न्याय मिलने की रही सही उम्मीद भी खत्म है.
(Muzaffarnagar Kand 1994)
1994 का साल था. पहाड़ की भोली-भाली जनता शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन को दिल्ली जा रही थी. 1 अक्टूबर की काली रात थी और मुज़फ्फरनगर का रामपुर तिराहा. पुलिस के डंडों से जब बस बाहर से बजना शुरु हुई तो बस के भीतर बैठे आन्दोलनकारी थोड़े सहम से गये. टॉर्च की रोशनी में रामपुर तिराहे में तलाशी शुरु हुई. आंदोलनकारियों ने जब पुलिस की इस बेफ़िजुल तलाशी का विरोध किया तो शुरु हुई पुलिसिया बर्बता.
मुज़फ्फरनगर कांड नाम से दर्ज इस बर्बता में पुलिस कर्मियों ने हत्या की, बलात्कार किया, उत्पीड़न किया पर कभी किसी पर कारवाई न हुई. सरकार इस घटना में लीपापोती कर मामले को खूब दबाना चाहा और आरोपियों के खिलाफ कारवाही के बजाय ऐसी किसी घटना से ही इंकार कर दिया.
(Muzaffarnagar Kand 1994)
इलाहबाद हाईकोर्ट के आदेश पर जब इसकी सीबीआई जांच की गयी. 2 जनवरी 1995 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समुख रिपोर्ट पढ़ी गयी. रिपोर्ट में सात महिलाओं के साथ पुलिस द्वारा सामूहिक बलात्कार की पुष्टि की गयी. सीबीआई ने अन्य 17 महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की पुष्टि की. सीबीआई ने कहा कि पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से महिलाओं की इज्जत पर हाथ डाला गया. सीबीआई ने बलात्कार के मामले में कई पुलिस अफसरों को दोषी ठहराया. रिपोर्ट में तीन महिलाओं के साथ बस में और बाक़ी चार के साथ खेतों में बलात्कार की पुष्टि हुई थी.
पर आज तक किसी को न्याय नहीं मिला जिसका सबसे मुख्य कारण आंदोलकारियों के पक्ष में किसी मजबूत पैरोकार का न होना था.
(Muzaffarnagar Kand 1994)
इस पर एक लम्बी रिपोर्ट पढ़ें: सत्ता का चरित्र नही बदला तो कैसे शहीदों की कुर्बानी से बने उत्तराखंड की नियति बदलेगी?
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1 Comments
Kamal Kumar Lakhera
हम उत्तराखंडी जन्म से हैं, पार्टीबंद अपने लालच से हैं और लालच ही जीतता है कलयुग में ।