साल 1929 में गांधीजी अपनी पर्वतीय यात्रा पर थे. दो दिन ताड़ीखेत में रहने के बाद अल्मोड़ा अगला पड़ाव था. अल्मोड़ा में स्थानीय म्युनिसिपलिटी की ओर से गांधीजी को एक मानपत्र दिया गया. हिन्दी में लिखे इस मानपत्र को म्युनिसिपलिटी अध्यक्ष ई. एम. ओकले ने पढ़कर सुनाया. सभा से लौटकर एक ऐसी घटना घटी जिसकी किसी ने कल्पना न की थी.
(Motor Car Accident Gandhi Almora)
सभा से लौट रहे गांधीजी से मिलने भारी संख्या में लोग एकजुट थे कि तभी उस मोटर गाड़ी के सामने एक व्यक्ति आ गया जिसमें गांधीजी बैठे थे. गांधीजी तुंरत अपनी मोटर गाड़ी से उतरे और उस व्यक्ति को अस्पताल ले गये. मोटर गाड़ी के नीचे आने वाली इस आदमी का नाम था पद्मसिंह.
अगले तीन दिन पद्मसिंह अस्पताल में रहे और अंत में अपना दम तोड़ दिया. अस्पताल में पद्मसिंह के पास बयान लेने मजिस्ट्रेट आया लेकिन उन्होंने मोटर गाड़ी के चालक के विरुद्ध कोई बयान न दिया. पद्मसिंह की अंतिम यात्रा में क्षेत्र के बड़े कांग्रेसी नेता गोविन्द वल्लभ पन्त के साथ अनेक स्थानीय लोग शामिल हुए.
महात्मा गांधीजी की मोटर गाड़ी से एक व्यक्ति के टकराने की खबर देशभर में फैलते समय न लगा. कांग्रेस के लोगों ने पद्मसिंह की मदद के लिये चंदा इकट्ठा करना शुरू कर दिया. पद्मसिंह की मृत्यु के बाद उनके परिवार वालों ने किसी भी तरह की आर्थिक मदद लेने से इंकार कर दिया. जब गांधीजी पद्मसिंह से मिले तो पद्मसिंह ने उनसे कहा – अगर मैं न बचूं तो मेरे लड़के को आशीर्वाद दीजिएगा. जवाब में गांधीजी ने कहा – मैं इसे आश्रम से ले जाऊँगा, अन्यथा अगर कहोगे तो आपके घर बैठे इसका प्रबंध करूंगा.
Motor Car Accident Gandhi Almora
स्वाभिमानी पद्मसिंह महात्मा गांधीजी से कहते हैं – मैं यह नहीं चाहता इसकी जरूरत भी नहीं है. सिर्फ आपकी प्रेम दृष्टि की ही आवश्यकता है. पद्मसिंह की मृत्यु के बाद उनके परिवार ने चंदे की एक भी कौड़ी स्वीकार न की और जवाब भिजवाया कि हमें गांधीजीजी का आशीर्वाद मात्र चाहिये और कुछ नहीं.
पद्मसिंह की सहायता के लिये जब एक सज्जन ने महात्मा गांधीजी को 100 रूपये का चैक भेजा तो गांधीजी ने यह कहकर लौटा दिया कि पद्मसिंह के परिजन इस चैक को स्वीकार नहीं करेंगे. इस घटना से महात्मा गांधीजी को भी बड़ा आघात लगा था अपने मित्र को लिखे एक पत्र में गांधीजी ने लिखा कि पद्मसिंह की मृत्यु से लगा आघात पौत्र रसिक की मृत्यु से भी अधिक लगा है.
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पद्मसिंह की मृत्यु के बाद अल्मोड़ा में दिया महात्मा गांधीजी का भाषण कुछ इस तरह था –
एक घण्टे से मैंने आपकी बातें सुनी हैं, मगर मेरा दिल तो इस वक्त पद्मसिंह के साथ है. मोटर के नीचे दबकर मरनेवाले भाई का नाम पद्मसिंह है. डाक्टर की बात से मुझे आशा हो रही थी कि वह जी जायेंगे, मगर आज 3 बीजे उनकी जीवन-डोर टूट गई. बरसों से मैं सफर करता रहा हूं, और ऐसी-ऐसी भीड़ों में भी मोटरों में बैठ कर घूमा हूँ, लेकिन मेरे इस अन्तिम दिनों में पहली बार ही यह घटना हुई है. मैं इस दुख को कभी भूल नहीं सकूंगा.
मैं मानता हूं कि मुझे मौत का डर नहीं है. एक दिन मौत आवेगी ही. पद्मसिंह तो मर कर जीये हैं. मृत्यु से उनकी कोई हानि नहीं हुई दुःख तो मुझे हुआ है, और वह इस बात का कि उनकी मृत्यु का मैं निमित्त बना. मैं सदा से मानता आया हूं कि मोटर की सवारी से घमण्ड बढ़ जाता है. मैंने यह भी अनुभव किया है कि शोफर हलकट और राजसी मिजाज के होते हैं. अतएव मेरे विचार में मोटरों से, जिनमें ऐसे तेज मिजाज काम करते हैं, बचना चाहिए. यह होते हुए भी मैं मोहवश, अधिक सेवा करने के ख्याल से, मोटर में बैठता हूँ. मुझे इसका फल मिल गया. फिर भी मैं प्रतिज्ञा नहीं कर सकता कि आज से मोटर का त्याग कर ही दूंगा. क्योंकि मोटर में बैठकर भारत की सेवा कर सकने के मोह को में छोड़ नहीं सकता.
हां, इतना है कि में अपना दुःख प्रकट कर चुका हूं और शोकरों तक अगर मेरी आवाज पहुंचे तो मैं उनसे कहूंगा कि अपने मिजाज की तेजी को काबू में रक्खे. मुझे पूरा तजुर्दा है कि शोफर प्रायः तेजमिजाज यानी क्रोधी होते है. मैं जानता हूं कि पद्मसिंह ने उदारतावश शोफर को क्षमा कर दिया और इसी मतलब का बयान मजिस्ट्रेट के सामने भी दिया, मगर इससे मैं अपने को या मोटरवाले को दोष मुक्त नहीं समझता. होना तो यह चाहिए था कि ऐसी भीड़ में या तो मोटर का उपयोग ही न किया जाता या फिर शोफर को मोटर तेजी से दौड़ानी न थी. यह दुःख कैसे भूला जाय? पद्मसिंह बहादुर और ताकतवर थे. कल भी उन्होंने बड़े सुख से बातें की थी. मगर उनके भाग्य में अधिक जीना बचा न था और कमनसीवी मेरी थी कि मुझे अपनी आंखों के सामने उनकी मौत देखनी पड़ी.
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हिन्दी नवजीवन प्यारेलाल जी के वर्णन पर आधारित
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