गढ़वाल शैली की चित्रकला के प्रवर्तक महान चित्रकार और कवि मौलाराम (1743-1833) की कला बहुत लम्बे समय तक जनता के सम्मुख न आ सकी. उनकी मृत्यु के करीब डेढ़ सौ सालों बाद बैरिस्टर मुकुंदीलाल ने उनके काम से आधुनिक संसार को परिचित कराया. माना जाता है कि मौलाराम के वंशजों को दाराशिकोह का पुत्र सुलेमान शिकोह 1658 में अपने साथ लेकर गढ़वाल आया था. वह औरंगजेब से भयाक्रांत होकर भागता फिर रहा था. मौलाराम के पुरखों का खानदानी पेशा सुनार का था लेकिन मौलाराम ने न केवल चित्र और कविताओं की रचना की, उन्होंने हिंदी पद्य में ‘गढ़वाल राजवंश का इतिहास’ भी लिखा. (Mola Ram Garhwali Painter Poet)
मौलाराम ने अपने जीवनकाल में अंग्रेजों को कुमाऊँ-गढ़वाल में आते और पाँव पसारते देखा था. (Mola Ram Garhwali Painter Poet) एक सचेत कवि के रूप में उन्होंने अपने समय की सच्चाई को कलमबंद किया. प्रस्तुत हैं उनकी कुछ दुर्लभ कविताएं:
फिरंगी राज: मौलाराम की कविताएं
1.
फिरंगे दिलफरेबी यह मुलुक जर चाहता लिया
पराया माल यह तकता जिनाही फेल वाला है
निमक का है हरामी यह खुदा भेजा क्यों हिन्दुस्तां
करै बदफैलई सबसे पराई कांच चढ़ता है.
2.
इनसाफ की अदालत आलम सौं उठ गयी, बैठी है पुलिस आन कै सब रीत छुट गयी.
चोरी करै जो चोर न जिनस दिलावतै, बांधै जो कोई दुजद को सादेहु बुलावतै.
सादेह कहै जो बात सौई मानते हैं सांच, चोरी बगल के बीच न करता है कोई जांच.
साहु के दाम लेके ऋणी देते हैं जवाब, मकदूर नहीं उनका जो कर सकै खराब.
नादान हुवै दाना खिरदमंद उठ गए, कंगाल बने साह साहूकार लुट गए.
डॉ शिवप्रसाद डबराल : जिन्होंने अपनी जमीन बेचकर भी उत्तराखंड का इतिहास लिखा
3.
गवाही जो कहै घुस खाया सौ मंजूर होता है
सदर के बीच में जाली फरेबी का सुधरता है
गया इनसाफ आलम में गवाही के बधाई है
हुआ दोगर खुदा पैदा सभी सेती झगड़ता है
फिर सांचे तड़पते सब कोई सुनता नहीं उनकी
खुशी अलमस्त हैं झूठे गवा मजलूस में भिड़ता है.
4.
सभी छाड़ अंग्रेज को हो वगल्ल
बिना जंग ईंह आप ही हो पागल्ल
जहौं के तहौं हैं फिरंगी जपत
करै बादसा बादसाही तखत
फिरंगी सभी भाज टापू बसै
कलकते में आमल रहै हिन्द का
जपत हो खजाना सभी रिंद का
करै ऐश विसियार हजरत दुनी
हुक्म ईंह खुदा का हुआ भी चुनी.
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