Related Articles

1 Comments

  1. गोविन्द गोपाल

    काफल के प्रिय लेखक मित्र ,
    इस विषय पर इस दृष्टिकोण से लिखने के लिए धन्यवाद .
    जैसा कि आपने लिखा है कि उत्तराखंड के समाचार पत्रों में देउबा के तीन दिवसीय यात्रा को लेकर कोई विशेष महत्व के साथ नहीं लिखा गया है जबकि कम से कम नेपाल से लगे हुए प्रदेश होने के नाते और कई अन्य सामाजिक , राजनैतिक व सामरिक विषयों को लेकर यहाँ काफी चिंतन और विचार विमर्श होना चाहिए था . आपका अवलोकन ठीक है . कारण इसके पीछे दो हैं .
    पहिला – नेपाल को लेकर . सही आकलन केवल राष्ट्रिय स्तर पर ही हो रहा है . हमारे राज्य में वैचारिक रूप से इस विषय पर सोचने वाला कोई व्यक्ति दिखाई नहीं देता जो एक गंभीर चिंता का विषय है . इसका कारण नेपाल के बारे अध्ययन की कमी है. जो वैचारिक दरिद्रता को बढाता है .
    दूसरा- उत्तराखंडीय पत्रकारिता जगत में चाटुकारों की एक बहुत बड़ी फ़ौज ही एक्शन और आधिपत्य में है . आज का उत्तराखण्ड मीडिया में जुगाडु संपादकों से घिच्च – मिच्च हो रखा है और उनकी अदूरदर्शिता ने मेधावी पत्रकारों के लेखन को अधमरा कर कोपभवन में बंद कर दिया है . तो आप कैसे आशा कर सकते हैं कि वे सम्पादक भला कैसे आवश्यक व सार्थक सम सामयिकी के विषयों पर स्थानीय मौलिक चिंतन और चर्चा को आगे बढाते !!!!?? देउबा की यात्रा के बहाने कई दोनों देशों के उन जुड़े हुए प्रकरणों पर चर्चा होनी थी जो दोनों देशों की आपस की रोटी – बेटी के सम्बन्धों से जुडी थी, रोटी-बेटी के इन संबंधों को पानी-उर्जा से जोड कर व्यापक करना था ताकि क्षेत्र में शान्ति और समृद्धि के द्वार चौड़े होते . जब वैचारिक पन्नों का सम्पादन, लेखक या पत्रकार न करे और कोई वित्तीय चेष्टाओं वाला व्यवस्थापक करे तो ऐसी जानबूझकर स्किप करने की बात सामान्य हो जाती है .
    दोनों देशो के बीच नागरिक सरोकारों के पुष्ट करने की परम आवश्यकता है और ये सरोकार इक पूंजी हैं , कुछ व्यक्ति इस पर अभी भी गंभीरता से बात करते हैं पर उत्तरखंड में संस्थागत रूप से उदासीनता है जिसको आप ने रेखांकित किया है .

    अन्य बात ये है कि आपने लिखा है कि पंचेश्वर बाँध को ठन्डे बस्ते में रख दिया है ऐसा नहीं , दोनों देशों के विशेषज्ञ अध्ययन के बाद अपने – अपने देश के हित के अनुसार कुछ बातें सामने लेकर आयें हैं . जिसमें ऊर्जा और सिचाई के पानी के उपयोग की बातें हैं . इन बातों को सुलझाने के लिए समय की आवश्यकता है . जैसा कि जानकारी आयी है कि बाँध – निर्माण के फ़ील्ड से भी दोनों ने अपने – अपने स्टाफ कम या शून्य कर दिए हैं ताकि हितों के अध्ययन की पालना के अनुसार काम आगे बढे . ये स्पष्ट कारण है सुस्ती है. ये दोनों देशों का अधिकार है कि वे किसी भी परियोजना को बिना जल्दीबाजी के अपने -अपने हित देखते हुए आगे बढें .
    पर हाल के वर्षों में भारत-द्वेषी राष्ट्रों द्वारा नेपाल या अन्य दक्खिन एशियाई देशों में वैचारिक स्तर पर भी एक ऐसा वर्ग तैयार किया हुआ है जो भारत का हितैषी नहीं है और भारत के हित को नुकसान पहुंचाने की दृष्टी से यह वर्ग नेपाल के नुकसान की भी चिंता नहीं करता है . ये भारत को सोचना ही होगा आखिर ऐसा भारत द्वेषी तंत्र दक्षिण एशिया में पल – बढ़ कैसे रहा है ?
    उत्तराखंडीय मीडिया के लिए एक प्रश्न होना ही चाहिये जब भारत में राष्ट्रवादी दलों का सत्ता पर दृढ़ नियंत्रण हो तो ऐसे में इस विषय पर चर्चा से कम से कम राष्ट्रवादी मीडिया को तो पीछे नहीं रहना चाहिए था , उन्हें अपना पक्ष तो रखना ही होगा .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2024©Kafal Tree. All rights reserved.
Developed by Kafal Tree Foundation