दुनिया की सब माँ ये एक सरीखी होती हैं
आज इतवार के चलते अपन अलसाए से लेते रहे. कई बार उठने की सोचे पर मामला टालते रहे जैसे सरकारे जरूरी बिल भर कोशिश टरकाती है. आखिर में रजाई, गठबन्धन-सरकार से समर्थन की तरह घसीट ली गयी तो बिस्तरे पर आलस का इस्तीफ़ा पटक कर बाहर निकल आये.
बाहर सूरज भाई मुंह फुलाए मुस्तैद दिखे. गुड मार्निंग का जबाब तक न दिए. लगता है हमारे देरी से उठने पर खफा हैं. थोड़ी देर बाद पसीजे. हौले से मुस्काए और सुबह के किस्से दिखाने लगे.
आज सुबह सूरज भाई के आते ही उनको फ़ूल,पौधे, पत्ती,पेड़, लता ने घेर लिया और कल की बरसात की शिकायत करने लगे. एक पेड़ ने जोर से हिलते हुए कहा -“कल तो बादल ने हम लोगों के साथ जो हरकत की वैसी तो चौराहे के पुलिस वाले तक ठेले, रेहड़ी ,खोमचे वालों से नहीं करते. बिना बताये सबको भिगा दिया निगोड़े ने. बदतमीज को जरा भी अक्ल नहीं. खुद तो आया ही साथ में अपने ओले दोस्त को भी ले आया नामुराद. देखिये टहनिया अब तक ठिठुर रही हैं मारे सर्दी के.“
सूरज भाई पेड़ की शिकायत चुपचाप सुनते रहे. पेड़ को उजाले और ऊष्मा के साथ सहलाते रहे. पेड़ थोडा सामान्य हुआ. सूरज की गर्मी पाकर टहनियां चैतन्य हुईं. पेड़ की पत्तियाँ चहकते हुए हिलने-डुलने लगीं.
उधर बगीचे में एक कली मुंह फुलाए बैठी थी. सूरज ने उसको प्यार से दुलराया तो वह गुस्साकर बोली -“हम आपसे गुस्सा हैं दादा. बात मत करिए. कल मैं अपनी सहेली तितली के साथ खेल रही तो बादल अंकल ने हम दोनों को भिगो दिया. आप सब देख रहे थे लेकिन आपने कुछ किया नहीं. देखिये मेरी सहेली के पंख भीग गए. बेचारी उड़ नही पा रही है. आप बहुत गंदे हो. ”
सूरज भाई ने सकपकाने की अदा दिखाते हुए कान पकडकर कली से सारी बोला और तितली को सहलाया. तितली कली के साथ आइस-पाइस खेलने लगी. सूरज भाई मुस्कराते हुए सारी कायनात को दुलराने लगे. पीछे से कली और तितली दोनों ने चिल्लाते हुए उनको ‘लव यूं दादा’ बोला तो वे और खिल गए. कली की तरफ मुस्कराते हुए देखा तो कली ने मुंह बनाते हुए उनको चिढ़ा दिया. सूरज भाई भी मुंह बिराते हुए उसको चिढाने लगे. कली की तरफ देखते हुए बोले – शैतान बच्ची! कली भी फौरन बोली – गंदे दादा!
यह सब देखकर पूरी कायनात चहकने, मुस्कराने , खिलखिलाने लगी.
अब तक श्रीमती जी चाय ले आयीं. सूरज भाई बोले – ’ये तीसरी किसके लिए?’
अरे भाई साहब मैं भूल गयी. ये बच्चे के लिए ले आई. मुझे याद ही नहीं रहा कि वो तो कल छुट्टी के बाद वापस चला गया. श्रीमती जी मुस्कराते हुए बोली.
दुनिया की सब माँ ये एक सरीकी होती हैं. कहते हुए सूरज भाई तीसरी चाय पीने लगे और बोले -समझ लीजिये ये चाय आपका बच्चा पी रहा है.
भाई साहब ! आप भी क्या बात करते हैं. रुकिए मैं दुबारा बना के लाती हूँ. ये ठंडी हो गयी होगी. नाश्ता भी करके जाइयेगा.
सूरज भाई मुस्करा रहे हैं. हम भी साथ में लग लिए.आप क्या सोच रहे हैं ? आप भी मुस्कराइए न !
16 सितम्बर 1963 को कानपुर के एक गाँव में जन्मे अनूप शुक्ल पेशे से इन्जीनियर हैं और भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में कार्यरत हैं. हिन्दी में ब्लॉगिंग के बिल्कुल शुरुआती समय से जुड़े रहे अनूप फुरसतिया नाम के एक लोकप्रिय ब्लॉग के संचालक हैं. रोज़मर्रा के जीवन पर पैनी निगाह रखते हुए वे नियमित लेखन करते हैं और अपनी चुटीली भाषाशैली से पाठकों के बांधे रखते हैं. उनकी किताब ‘सूरज की मिस्ड कॉल’ को हाल ही में एक महत्वपूर्ण सम्मान प्राप्त हुआ है
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