यह तथ्य निर्विवाद है कि जंगल का राजा शेर होता है. हमने इसे एक तथ्य, एक सत्य इसलिए माना, क्योंकि सभी ने शेर को राजा जैसा बर्ताव करते ही देखा. ताकतवर, निडर, साहसी और अपनी मर्जी का मालिक. लेकिन अगर हम गुणों की बात करें, तो जंगल के दूसरे जानवरों में भी बड़े-बड़े गुण दिखते हैं. अगर हम लंबे शरीर की बात करें, तो जिराफ जबसे लंबा जानवर है. उसके सामने शेर दिखाई भी नहीं देता है.
(Mind Fit 54 Column)
हाथी शेर के मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर होता है. अगर शिकंजे में आ जाए, तो वह शेर को अपनी सूंड़ में लपेट आसमान में ऊंचा उछाल सकता है. जब फुर्तीलेपन की बात आती है, तो शेर से पहले हम चीते के बारे में सोचते हैं, क्योंकि वह न सिर्फ सबसे तेज भागने वाला जानवर है, जरूरत पड़ने पर पलक झपकते ही पेड़ पर भी चढ़ जाता है. चालाकी के मामले में लोमड़ी को भला कौन मात दे सकता है. यानी शेर न तो सबसे लंबा है, न सबसे ताकतवर, न सबसे फुर्तीला और न ही सबसे चालाक, फिर भी वह जंगल का अघोषित राजा है. क्यों? थोड़ा जोर लगाकर सोचिए कि आखिर क्यों वह जंगल का निर्विवाद राजा है.
वह राजा है, क्योंकि वह मानता है कि वह राजा है. उसके मानने के कारण ही तो वह जंगल का राजा है. वह अंदर से महसूस करता है कि वह राजा है. जिस दिन वह खुद को राजा मानना बंद कर देगा, उस दिन वह जंगल का राजा नहीं रहेगा. जो शेर नहीं मानता कि वह राजा है, तो वह राजा जैसा जीवन जी भी नहीं पाता. उसे जंगली कुत्ते या लकड़बग्घे नोच डालते हैं. भैंसे उसका काम-तमाम कर देते हैं. तो यह सारा खेल अंदर से खुद को राजा मानने का है.
शेर की तरह अगर आप भी अपने को कुछ मानें, तो आप पर भी यह बात लागू हो जाएगी. दरअसल, जब आप किसी बात पर पूरा भरोसा करते हैं, तो यह भरोसा आपके अवचेतन मन में चला जाता है और अवचेतन मन का लिंक सीधे ब्रह्मांड की शक्तियों से होता है. हम मूल रूप से ब्रह्मांड की ही संतति हैं. हमारे भीतर ब्रह्मांड की ही शक्तियां भरी हुई हैं. पर ये शक्तियां हमें तभी प्राप्त होंगी, जबकि हमें खुद पर पूरा यकीन होगा. यह यकीन धीरे-धीरे शरीर और मानस दोनों को अपनी जरूरत के मुताबिक बदलता रहता है.
मसलन, भारत के लिए ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा को यकीन था कि वह इस खेल का एक धुरंधर खिलाड़ी बनेगा, तो धीरे-धीरे उसके शरीर में भी वैसे ही बदलाव आते गए. वह अपरिमित सामर्थ्य से भरता गया. ऊर्जावान होता गया. उसके कंधे ताकतवर बनते गए. खुद पर यकीन होने से शरीर के बदलावों के अलावा हमारे सोचने की शक्ति, हमारी प्रज्ञा भी अपने आप विकसित होने लगती है. इससे हमारे बर्ताव में भी बदलाव आता है. हाथी और शेर जब आमने-सामने आते हैं, तो शेर यह सोचकर कि वह जंगल का राजा है और हाथी को मार सकता है, हमलावर अंदाज में आ जाता है, जबकि हाथी खुद को बचाने की सोचने लगता है. आप गौर कीजिए कि यकीन के स्तर पर दोनों के सोचने और बर्ताव करने में कितना अंतर है.
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हमारे जीवन में भी सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक पूरे दिन हमारा खुद पर यकीन ही हमारे बर्ताव को संचालित करता है. हम स्थितियों के सम्मुख हार न मानकर उनके खिलाफ लड़ते हैं या फिर उनके खिलाफ हार स्वीकार कर चुपचाप समर्पण कर देते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम खुद पर कितना यकीन करते हैं. जिन लोगों का खुद पर अटूट यकीन होता है, वे विपरीत स्थितियों में दो-चार कदम पीछे जाने में नहीं हिचकते. वे पीछे कदम हटाने में जरा भी नहीं घबराते, क्योंकि वे जानते होते हैं कि स्थितियों के अनुकूल होते ही वे बहुत तेजी से आगे बढ़ेंगे. यह ऐसा ही है, जैसे चैंपियन धावक आखिरी समय तक सबसे आगे दौड़ने वाले के पीछे बना रहता है. वह उसके पीछे दौड़ रहा होता है, पर उसे खुद पर यकीन होता है कि जब फिनिश लाइन करीब आएगी, तो वह आगे निकल जाएगा. अंतत: ऐसा होता भी है.
तो खुद पर अपने यकीन को कभी डिगने न दें, उस पर कभी कोई शक न करें. बस इतना ही आप सुनिश्चित करें, बाकी सब आपके यकीन से सींची गईं अवचेतन मन की शक्तियां खुद सुनिश्चित करेंगी. वे आपको वाजिब मुकाम तक पहुंचाकर ही मानेंगी.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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