चलिये आज आपको साल 2016 में ले चलता हूँ. जुलाई का महीना लग चुका था और दिन का खाना खाने के बाद मैं गहरी नींद में सोया हुआ था. तक़रीबन शाम के 4 बज रहे होंगे जब मेरी नींद एक फोन की रिंग ने ख़राब कर दी, पहली घंटी सुनकर मैंने फोन नहीं उठाया पर जब दूसरी घंटी बजी तो लगा उठा लेना चाहिये क्या पता किसी को कोई जरूरी काम हो. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)
मरे मन से मैंने फोन उठाया पर फोन सुनते ही मेरी सारी नींद काफूर हो चुकी थी. फ़ोन टेड़ा गाँव से किसी परिचित का था. वह बोला ‘रजवार जी जल्दी आ जाओ नीचे कोसी नदी पर जंगल के किनारे एक पानी के कुंड में टाइगर बैठा हुआ है. मवेशियों को लेकर कोसी पार गया था लौटते वक्त देखा मैंने उसे वहां.
ख़बर ऐसी थी की सुन के होश उड़ने ही थे और बेचैनी ऐसी कि पर हों तो एकदम उड़ के पहुँच जाऊँ. जैसे-तैसे जितनी जल्दी सम्भव था मैं कैमरा कार में डालकर चल दिया. जितना भगा सकता था मैं उतनी कार भगा रहा था. बस मन में यही था कि समय से पहुँच जाऊँ, कहीं टाइगर उठकर चला न जाये. वह बंदा सड़क पर खड़ा मेरा इंतज़ार कर रहा था और जैसे ही मैं उसके पास पहुँचा पहला सवाल यही था कि टाइगर वहीं पर है क्या? वह बोला हाँ जल्दी चलो फ़ॉरेस्ट वाले भी आ गये है. संतुष्टि हुई सुनकर जब वह बोला ‘हाँ वहीं पर है.’ कार खड़ी कर कैमरा ले मैं चल दिया उसके साथ नीचे नदी की तरफ़. इस प्रार्थना के साथ कि वह वहीं पर हो, ताकि मुझे मौक़ा मिल जाये उसे खींचने का.
जैसे ही मैं उस जगह पर पहुँचा तो देखा कुछ परिचित फ़ॉरेस्ट वाले भी वहाँ पहुंच चुके थे और कुछ सैलानी भी, जो शायद उनके पीछे-पीछे गये होंगे. वैसे भी जब टाइगर पानी में बैठा दिख रहा हो तो भला उस मौक़े को कौन छोड़ना चाहेगा. खैर, मुझे तो टाइगर से मतलब था और उन्होंने मुझे इशारा करके बताया कि देखो वह बैठा है वहाँ पर. इसे भी पढ़ें : एक थी शर्मीली
हमारे बीच दूरी शायद 200 मीटर रही होगी और जब मेरी नज़र उस पर पड़ी तो कुछ अजीब सा लगा. क्योंकि वह बेपरवाह सा हमारी और पीठ किये बैठा हुआ था और ऐसा भी नहीं था कि उसे हमारी उपस्थिति का पता न हो. टाइगर बहुत ही शर्मिला होता है और ऐसे खुले में उसका बैठे रहना, जब उसे हमारी उपस्थिति मालूम चल गई हो, थोड़ा हैरान करने वाला था. एक बार को कॉर्बेट पार्क के टाइगर से यह अपेक्षा रखी जा सकती है, क्योंकि वे इस सबके अभ्यस्त होते हैं और उन्हें सैलानियों के होने या न होने से कोई फर्क नहीं पढ़ता. लेकिन रिज़र्व फ़ॉरेस्ट के टाइगर तो इंसानों को देखते ही दौड़ लगा देते है. इसे भी अब तक उठ जाना चाहिये था. फिर सोचा क्या पता ज़्यादा ही गर्मी लग रही हो शायद इसलिए न उठ रहा हो. मैंने चंद फ़ोटो लिए ही थे कि कुछ गाँव वाले और आ गए. शायद ख़बर आग की तरह फैल रही थी. लेकिन मैं चाह रहा था कि यह उठकर चला जाये, ताकि लोग इसे बेवजह परेशान न करें
तभी उसने हमारी और पलट के देखा मानो जैसे कुछ कह रहा हो सच बताऊँ तो मुझे उसकी आँखों में वो टाइगर वाली बात नज़र नहीं आयी जो आमतौर पर नज़र आती है एक ग़ुस्से वाली नज़र एक डरावनी नज़र जो अंदर तक खून जमा दे. मुझे उसकी आखों में एक दर्द सा अनुभव हो रहा था मानो जैसे वो बहुत थका हो, बीमार हो. डील-डौल से वह नर बाघ सा लग रहा था.
शोरगुल बढ़ने लगा था फ़ॉरेस्ट वाले उसको वहाँ से हटने के लिए बोल रहे थे, वे भी यही चाह रहे थे की टाइगर जंगल के अंदर को चला जाये. जब ज़्यादा ही शोरगुल होने लगा तो वह पानी से उठा और थोड़ा आगे जाकर फिर बैठ गया, अपना मुँह पानी में डुबाकर. वह काफ़ी कमजोर और थका हुआ लग रहा था. फ़ोटो को ज़ूम करके देखा तो मुँह पर काफ़ी मक्खियाँ भिनभिना रही थीं, जो अच्छा संकेत नहीं था. दिमाग़ में आया कहीं घायल तो नहीं है. परिस्थितियाँ भी यही इशारा कर रही थीं. लगभग आधा घंटा हो चुका था और वह हिलने का नाम ही नहीं ले रहा था. यही बात मैंने फ़ॉरेस्ट वालों से भी साझा करी और वे भी मेरी बात से सहमत दिखे. तब मैंने थोड़ा पास जाने की सोची ताकि अपने कैमरे से उसे ढंग से देख पाऊँ और सही स्थिति का पता चल सके. इसे भी पढ़ें : कॉर्बेट पार्क में जब बाघिन मां दुर्गा की भक्ति में डूबी दिखी
मैं उनमें से एक फ़ॉरेस्ट कर्मी को साथ लेकर – एक लम्बा चक्कर काटकर, ताकि उसे हमारी उपस्थिति का पता न चल सके – दबे पाँव नदी के पास पहुँचा. जहाँ से हमारे बीच की दूरी 100 मीटर रही होगी. वह सर झुकाये हुए ही बैठा था और कैमरे से पूरे शरीर पर मक्खियाँ साफ़ नज़र आ रही थी, जो इस बात का इशारा कर रही थी कि वह कही ना कहीं घायल ज़रूर था. लेकिन इस बात की पुष्टि होनी अभी बाक़ी थी.
गाँव वालों का शोर साफ़ सुना जा सकता था लेकिन फ़ॉरेस्ट वालों ने उन्हें वहाँ रोके रखा था. शोरगुल बहुत था, इस वजह से अब वह भी परेशान हो चुका था. उसे हमारी मौजूदगी भी पता लग चुकी थी. शायद उसने हमारा बोलना सुन लिया था जबकि हम बहुत ही धीमे बोल रहे थे.
उसने पहले भीड़ की तरफ़ देखा फिर हमारी तरफ़ और काफ़ी देर तक हमारी ओर देखता रहा. वह काफ़ी दर्द में था, ऐसी मुझे फ़ीलिंग आ रही थी. उसका देखना दिल में एक बेचेनी सी पैदा कर रहा था, मानो कह रहा हो मैं बहुत तकलीफ में हूँ मुझे अकेला छोड़ दो. वह काफ़ी असहाय सा लग रहा था. कोई स्वस्थ टाइगर होता तो इतने में वहाँ से निकल गया होता, या हमें ग़ुस्से से दांत दिखाकर हम पर गुर्रा रहा होता. पर ये तो एकदम शांत बैठा हुआ था, बिना किसी हरकत के. जैसे-जैसे यह सब मेरे दिमाग़ में चल रहा था मैं अंदर से भावुक भी हो रहा था. मैं पहली बार ऐसा अनुभव कर रहा था कि सामने टाइगर बैठा हो और टाइगर जैसा फ़ील भी नहीं हो रहा हो.
आख़िरकार शोरगुल से परेशान होकर वह उठा और धीरे-धीरे जंगल के भीतर की ओर बढ़ने लगा. इस दौरान मैं सभी पलों को कैमरे में क़ैद करता रहा. उसका चलना ऐसा था मानो बहुत जी-जान लगाकर चलना पड़ रहा हो. उसकी दिक़्क़त, परेशानी, उसका दर्द सब उसकी चाल में नज़र आ रहा था. उसका पिछला हिस्सा भी कमजोर लग रहा था. काफ़ी संघर्ष करते हुए वह आगे को बढ़ पा रहा था. जैसे ही वह पानी से निकलकर किनारे पहुँचा तो वहाँ पर थोड़ी चढ़ाई थी, यह उसके लिए एक छलांग भर थी पर वह चढ़ नहीं पा रहा था. मैं अपने कैमरे के व्यूफ़ाइंडर (जिसकी सहायता से आप चीजों को देखते हो) में उसके घावों को साफ़ देख पा रहा था. उसके अगले दाहिने पैर के पीछे, कमर के नीचे एक बड़ा सा घाव नज़र आ रहा था और पीठ पर भी. पूरे शरीर पर भी खरोंचो के निशान साफ देखे जा सकते थे और सर के ऊपर भी घाव नज़र आ रहा था. वह गम्भीर रूप से घायल था, जिसकी वजह से वह ऊपर चढ़ ही नहीं पा रहा था. उसकी यह स्थिति देखकर मुझे भी बहुत दर्द हो रहा था पर उसकी तरह मैं भी असहाय था. मेरे पास उसे इस तरह देखने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प नहीं था. मुश्किल से वह ऊपर चढ़ने में सफल हो पाया ऊपर चढ़कर उसने हमारी तरफ़ देखा और काफ़ी जान लगाकर हल्के से गुर्राया और अंदर जंगल में चला गया.
यह एक युवा नर बाघ था जो लगभग 5 साल का रहा होगा और किसी दूसरे बाघ के साथ आपसी संघर्ष में घायल हुआ था. काफ़ी दिनों से भूखा भी रहा होगा. बस पानी पी-पीकर यह अभी तक खुद को ज़िंदा रख पाया होगा. जंगलो में नर बाघों के लिए काफ़ी चुनौतियाँ होती हैं और माँ द्वारा 2 साल की उम्र में छोड़े जाने पर इन्हें खुद के लिए नए इलाक़े की खोज करनी पड़ती है. यह आसान नहीं होता क्योंकि हर इलाक़े पर किसी-न-किसी नर बाघ का क़ब्ज़ा होता है और वह किसी घुसपैठिये को बर्दाश्त नहीं करता. सामना होने पर वह उसे मार डालता है. ऐसी स्थिति में इन युवा नर बाघों को पूर्णतः वयस्क होने की स्थिति तक खुद को छिपाकर रखना पड़ता है और सही मौक़ों का इंतज़ार करना होता है. वयस्क होने पर ये बूढ़े हो चुके नर बाघ को खदेड़कर या मारकर उस इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लेते है. यही क्रम आगे चलता रहता है. इस युवा नर बाघ के साथ भी कुछ ऐसा हुआ था जो इतना ख़ुशक़िस्मत नहीं रहा. यह शायद इस इलाक़े में घुस आया था और स्थानीय बाघ द्वारा सामना होने पर उसने इसे बुरी तरह घायल कर दिया था.
ख़ेर जो होना था वह हो चुका था और फ़ॉरेस्टकर्मियों द्वारा इस घटना से सम्बंधित अधिकारियों को अवगत करा दिया गया था और साथ में प्रमाण के रूप में मेरे द्वारा ली गई फ़ोटो भी भेज दी गई थी हेतु. बाघ घायल था तो गाँव वालों को सूचित कर दिया गया था कि कोई भी जंगल और नदी की तरफ न जाए. उच्च अधिकारियों द्वारा निर्णय लिया गया कि उपचार हेतु अगले दिन घायल बाघ को बेहोश कर पकड़ा जाएगा. इसके लिए एक रेस्क्यू टीम गठित भी कर दी गई. रात भर वनकर्मी गाँव में गस्त करते रहे ताकि घायल बाघ गाँव में ना घुस सके.
सुबह का 6 बजा होगा जब फ़ोन की घंटी से नींद टूटी. देखा तो फ़ोन वहीं से था उठाया तो आवाज़ आयी रजवार जी वह टाइगर मरा पड़ा है नदी किनारे. ये खबर सुनकर दिल बैठ सा गया. जिस बात का डर था वही हुआ. बिना समय गंवाए मैं उस जगह पहुँचा तो थोड़ी भीड़ लग चुकी थी. पास पहुँचकर देखा तो टाइगर नदी किनारे निढाल सा पढ़ा था. आख़िरी पलों में उसके द्वारा अंतिम साँस के लिए किया गया संघर्ष, जिंदगी और मौत के बीच हुआ संघर्ष रेत में पड़ी उसकी घसीटों में साफ़ नज़र आ रहा था. शायद देर रात अपने ज़ख्मों से राहत पाने को वह फिर पानी में आकर बैठ गया था. जैसे-जैसे मौत दस्तक दे रही होगी वैसे-वैसे उसकी बेचेनी और पीढ़ा भी बढ़ रही होगी. तड़प-तड़प कर उसने दम तोड़ा होगा.
मैं भी घर लौट चुका था पर मन बड़ा व्यथित था. आँखों में उसका ही चेहरा नज़र आ रहा था, ख़ासकर उसकी वह दर्द भरी आँखे. मैं अपनी सोच द्वारा एक काल्पनिक घटनाक्रम बना रहा था कि वह ऐसे आया होगा, लड़ाई हुई होगी और ऐसे वह घायल हुआ होगा.उसकी हालत देखकर समझ नहीं आ रहा था कैसे ज़िन्दा बच पायेगा. रात देर तक यही सब दिमाग़ में चलता रहा और फिर कब नींद की आग़ोश में समा गया पता ही नहीं चला, इस बात से बेख़बर कि अगली सुबह बहुत मनहूस होने वाली थी.
यह लम्हा दिल कोझकझोर देने वाला था, भला ये भी कोई उम्र होती है मरने की. अभी तो वह युवा अवस्था में था. अभी तो उसे अपना इलाक़ा स्थापित करना था और राज करना था. पर कहते है न – प्रकृति में कोई दया नहीं होती यही, कड़वा सत्य है. यही जंगल का नियम है है जो बलशाली है उसे ही हक़ है जीने का. पर हम तो इंसान है. समझ सकते है, अनुभव कर सकते हैं और वही मैं कर रहा था. उस दर्द को समझने की कोशिश जिससे वह गुज़रा होगा. यही संवेदनायें हमें इंसान बनाती हैं, ये और बात है कि इंसानो में ये दिन प्रतिदिन ख़त्म होती जा रही है.
जो भी था पर यह एक सुंदर युवा नर बाघ का दुखद अंत था. आज भी जब इन तस्वीरों को देखता हूँ तो बरबस सब याद आ जाता है और दिल भर जाता है. आँखो में उसका वही दर्द भरा चेहरा नज़र आने लगता है. ख़ासकर उसकी दो निर्दोष दर्द में डूबी आँखे.
इस लेख के माध्यम से एक भावभीनी श्रद्धांजलि!
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रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.
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