कॉर्बेट की एक ऐसी बाघिन जिसने अपनी असाधारण सुंदरता, अदभुत शारीरिक डील-डौल व शिकार करने के अभूतपूर्व क्षमता से देश ही नहीं वरन पूरे विश्व में प्रसिद्धि हासिल की. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)
2014 से लेकर 2017 तक शर्मीली ने अपने 4 शावकों के साथ काफ़ी सुर्ख़ियाँ बटोरी. शर्मीली ने कॉर्बेट के बिजरानी ज़ोन को दुनिया भर के प्रकृति प्रेमियों, सैलानियों व फ़ोटोग्राफ़रों के बीच विख्यात कर दिया. उसकी लोकप्रियता का आलम यह था कि शर्मीली व उसके शावकों को देखने के लिए सैलानियों व फ़ोटोग्राफ़रों के बीच होड़ लगी रहती. बिजरानी जोन में रात्रि विश्राम और दिन की सफ़ारी की अग्रिम बुकिंग हो जाती थी. शर्मीली भी किसी को निराश नहीं करती थी. अपने नाम के उलट वो काफ़ी हिम्मती थी और गाड़ियों के आगे कई किलोमीटर तक चला करती थी. उसकी इसी अदा के लोग दीवाने हुआ करते थे.
शर्मीली से मेरी पहली मुलाक़ात 2011 में हुई थी तब वह एक शावक की मां हुआ करती थी, जो एक साल बाद ग़ायब हो गया. शायद किसी नर बाघ द्वारा मार डाला गया हो.
2014 में शर्मीली ने पुनः 4 शावकों को जन्म दिया, जिसमें 2 नर और 2 मादा शावक थे. जैसे ही शर्मीली शावकों के साथ फिर नज़र आयी तो ख़बर आग की तरह फैल गई. फिर क्या था सैलानियों का ताँता लगने लगा. सोशल मीडिया पर ‘शर्मीली’ बाघिन और उसके चार शावकों की तस्वीर वायरल होने लगी. देखते ही देखते देश-दुनिया में शर्मीली और उसके शावक छा गये. बाघिन द्वारा शिकार मारकर लाना फिर शावकों को बुलाना और घंटो सैलानियों द्वारा इन दुर्लभ नज़ारे को देखना. फ़ोटोग्राफर द्वारा इन तस्वीरों को कैमरे में उतारना. यही रोज़ का क्रम बन गया था. जिसे देखो वह यही बोलता कि ‘मैंने चार देखे एक साथ,’ ‘मैंने 2 देखे एक साथ.’ शायद ही कभी ऐसा होता हो कि कोई निराश होकर बोले कि आज मैं बाघ नहीं देख पाया.
2015 और 2016 में तो शर्मीली हर जगह छायी ही रही. सोशल मीडिया का ऐसा कोई फ़ोटोग्राफ़ी पेज न था जहाँ शर्मीली व उसके शावकों को तस्वीरें न हों. आलम यह हो गया था कि सभी फ़ोटोग्राफ़रों का रुख कॉर्बेट की तरफ़ हो चला था. यह सब बहुत अविश्विसनिय सा था.
2017 में एक समय ऐसा भी आया जब ढलती उम्र की वजह से उसके जबड़े के ऊपर और नीचे के केनाइन दांत (शिकार को पकड़ के मारने के काम आने वाले) आधे टूट गये थे और वह काफ़ी कमजोर भी हो चली थी. एक दो बार सेही के काँटे जिस्म में चुभने से वह घायल भी हो गई थी. तब वन विभाग ने मांस में दवाई डालकर उसे खिलायी और वह स्वस्थ हो गई.
अब तक शावक पूर्ण वयस्क हो चले थे और सबने अपने अलग-अलग इलाके भी बना लिए थे. यहां यह जानना जरूरी है कि बाघिन अपने शावकों के साथ 2 साल तक रहती है. इस दौरान वह उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है और फिर जंगल में स्वतंत्र छोड़ देती है.
2017 में शर्मीली का दिखना कम हो गया था और उसके चाहने वाले निराश होने लगे. इन सालों में शर्मीली सबकी चहेती जो बन चुकी थी. अब उसका न दिखना सभी को अखर रहा था. इसे भी पढ़ें : कॉर्बेट पार्क में जब बाघिन मां दुर्गा की भक्ति में डूबी दिखी
अब बिज़रनी में मानो बाघ दिखना बंद ही हो चला था. उन बरसातों में पार्क सैलानियों के लिए बंद कर दिया गया था. सीजन की अंतिम सफ़ारी में मुझे शर्मीली दिखायी दी थी, कमजोर सी. इसे भी पढ़ें : उत्तराखण्ड के बेहतरीन वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर हैं दीप रजवार
अक्तूबर में जब पार्क दोबारा खुला तो सभी के मन में यही सवाल था कि शर्मीली का क्या हुआ होगा? लेकिन जब सफ़ारी शुरू हुई तो शर्मीली के दिखाई देने की अच्छी खबर आयी. इस दौरान वह कमजोर दिखाई दी. शायद शिकार करने की विलक्षण क्षमता ने ही उसको बचाये रखा था.
पर यह ख़ुशी बहुत ज़्यादा दिनों तक नहीं टिक पायी. उस साल दिसंबर अंत में वह आख़िरी बार दिखायी दी और फिर उसके बाद किसी को कभी भी नहीं. हर कोई उसके न दिखने से दुखी था और प्रार्थना कर रहा था कि वह सही सलामत हो और फिर से दिखायी दे. पर ये हो न सका. प्रकृति का यही नियम है और हमें इसे मानना ही पढ़ता है.
आज भी शर्मीली हम सबकी स्मृतियों में शेष है. जब भी उसकी तस्वीर देखें वह जी उठती है, शानदार ठसक के साथ चलती हुई— अपने ही अंदाज़ में निडर और बेखोफ. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)
इसे भी पढ़ें : खुद में ही पूरा बैंड हैं उत्तराखण्ड के दीप रजवार
रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.
काफल ट्री फेसबुक : KafalTreeOnline
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…