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2 Comments

  1. हरिहर लाेहुमी

    प्रणाम!
    इस बीच सभी 43 कड़िया पढ़ ली । हर बात काे याद रखना आश्चर्यजनक है ताे उसे जीवन्त बना कर प्रस्तुत करना दमदार व अनाैखा है। आप मस्तिष्क की डिस्क की मेमाेरी पावर बहुत उत्तम है।
    प्रमाेशन के मामले में आपकी व्यथा व मनस्थिति उस समय की परिस्थितियाें में उचित है। सलैक्शन बाेर्ड में पूर्वाग्रह से ग्रसित अधिकारी व्यवस्था की धज्जिया उड़ा देते हैं, उनकी इस हरकत का खामियाजा भुगतना पड़ता है ऐसे लाेगाें काे जाध्यानर उधर की बाताें में न उलझ कर अपने कार्य में पूरे मनाेयाेग से साथ संलग्न रहते हैं।
    मैं भी इसका शिकार रहा । बाबू से अनुशासन, कार्य चाहे व्यक्तिगत हाे या सरकारी पूर्ण मनाेयाेग से करने की सीख मिली,जिसमें मख्खन बाजी कर काम निकालने की काेई जगह नही थी। 22 साल की लड़ाई के बाद भी न्याय न मिलने पर उच्च न्यायालय जाना पड़ा । खुसनसीबी यह रही कि पहली की सुनवाई में बैक डेट से समस्त लाभ देने का निर्णय हुआ। उसके बाद भी एक साल तक विभाग फाईलाें काे दबाता रहा। फिर कंटैम में जाना पड़ा एक ही माह में सब करना पड़ा।
    यह सब इसलिए कह रहा हूं कि जब निर्णय लेने के स्तर पर ऐसे अधिकारी बैठे हाें जाे कार्य काे न देख कर व्यक्तिगत निष्ठा काे ध्यान में रख कर निर्णय लेते हाें ताे फिर राम ही मालिक हाेता है।उसी पर छाेड़ना पड़ता है। कुछ लाेग इसे नियति मान लेते हैं कुछ ऐसे भी हाेते हैं जाे खड़े हाे जाते हैं ।
    हर कड़ी में आपके अनुभव व जीवन काे जीने का तरीका गहरी प्रेरणा ताे देता ही विपरीत परिस्थियाें में भी अडिग रहने की शिक्षा भी देता है।

  2. deven mewari

    बहुत आभार हरिहर जी।

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