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3 Comments

  1. हरिहर लाेहुमी

    सभी 43 कड़िया पढ़ ली हैं। हर एक कड़ी एक नई गाथा व जीवन के नये- नये अनुभव ,अनुभूति व व्यथा की सशक्त अभिव्यक्ति है। ददा की असामयिक मृत्यु हाेना अन्तिम दर्शन न कर पाना, परिवार काे सभालना बाज्यू व भाभी मां के अन्तिम दर्शन से बंचित रह जाना अंदर ही अंदर घुटन पैदा करने वाली घटना रही है, जिसे अपने झेला है।
    पदाेन्नति का प्रकरण भी दर्शाता है कि उच्च अधिकारियाें का हृदय इतना छाेटा क्याे हाे जाता है। जाे न्याय देने के लिए उच्च पद पर रखे जाते हैं वे इतने अन्यायी हाे जाते हैं कि अपने किए पर पछतावा ताे दूर अपने किए पर अभिमानी हाे जाते हैं। एक बर्ष आपने यह दंश झेला ,यह आपके धैर्य की भी परख थी। मैं भी यह दंश झेल चुका हूं। इसलिए मन की अन्तर्दशा काे भली भांति समझता हूं। 20 बर्ष लगे न्याय पाने में।
    मुझे ताे आश्चर्य हाेता है कि आप हर बात काे कहां सजाे कर ऱखते हैं। वर्षाे पुरानी बात काे जैसे अभी घटित हुई हाे , प्रस्तुत कर देना अचंभित करता है।

  2. कवीन्द्र तिवारी

    कहो देबी कथा ऐसे ही कहते रहो, आज की कथा में लोहुमी जी रहे,इनके बारे में शायद मैंने वही साप्ताहिक हिंदुस्तान में पढ़ा होगा,आजकल मैं भी गहना में ही हूं यहां कुछ लोगों ने लैंटाना वाले लोहुमी जी के बारे में बतलाया था।

  3. Vijay Kranti

    चंद्रशेखर लोहुमी जी को जानने, उनसे मिलने और उनके बारे में मुझे लिखने का मुझे भी मौका मिला। सही साल क्या था, याद नहीं। पर वही साल था जब उन्हें देश का सबसे सम्मानित और सर्वोच्च वैज्ञानिक पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर अवार्ड मिला था। पुरस्कार उनके कूरी यानी लांटाना कमेरा और लांटाना बग पर किए शोध के लिए था। देश के कई वैज्ञानिक नाराज थे कि एक “अनपढ़” मास्टर जी को यह सम्मान देना असली वैज्ञानिकों का अपमान है। मेरा लेख तब दिनमान में छपा था। किसी मित्र से उधर मांगे कैमरे से खींचा उनका फोटो आज भी मेरे पास है। उत्तराखंडी टोपी और सादे कुर्ते पायजामे में उनका सादगी भरा शानदार व्यक्तित्व आज 50 साल बाद भी मेरे मन पर अपनी छाप छोड़ हुए है। विजय क्रान्ति 9810245674

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