यह 1932 का बरस था और सितम्बर महीने की 6 तारीख. आज पौड़ी में लाट मैलकम का दरबार लगा था. कड़े आदेश थे कहीं भी कोई ऐसी घटना न घटे जो लाट साहब कि शान में गुस्ताखी लगे. छोटे से बने मंच से लाट साहब के स्वागत में अभिनंदन पत्र पड़ा जा रहा था. लाट साहब के सामने बैठी सभा की पहली पंक्ति में एक आदमी ने अपने कुर्ते की आस्तीन में तिरंगा छुपा कर रखा था. उसे झंडा फहराने के लिये एक डंडे का इंतजार था. सभा में बैठे उसके साथियों ने झंडे का डंडा सरकाना शुरू किया. लाट मैलकम का अभिनंदन पत्र पढ़ा जा चुका था और इस बीच झंडे का डंडा आस्तीन में तिरंगा छुपाये आदमी के पास पहुँच चुका था.
(Malcolm in Uttarakhand 1932)
एक तरफ लाट मैलकम अपने भाषण के लिये खड़ा हो रहा था दूसरी तरफ डंडे पर तिरंगा चढ़ रहा था. लाट मैलकम बोलने ही वाला था कि फुर्ती से उठकर एक आदमी तिरंगा लहराता हुआ मंच की ओर बढ़ने लगगा. किसी को कुछ समझ न आया बस आसमां में एक बुलंद आवाज थी- ‘गो बैक मैलकम हेली’ ‘भारत माता की जय’ ‘अमन सभा मुर्दाबाद’ कांग्रेस जिंदाबाद’.
उसे मंच पर पहुंचने से पहले पुलिस ने लाठी के दम पर दबोच लिया. पीठ पर जितनी जोर से लाठी पड़ती उतनी बुलंद आवाज में नारे लगते. यह आवाज तभी बंद हो सकी जब इलाका हाकिम ने उसके मुंह में बुरी तरह से रुमाल ठुस दिया. झंडा उसके हाथ से छीनकर फाड़ा जा चुका था और लाट मैलकम हेली पुलिस पहरे में डाक बंगले की ओर भाग चुका था.
(Malcolm in Uttarakhand 1932)
नारे लगाने वाले और कोई नहीं जयानंद भारती थे जो पौड़ी में लाट साहब के दरबार में तिरंगा फहराने के उदेश्य से पिछली रात ही पहुंचे थे. तीन अलग-अलग रंगों के टुकड़े सी कर बीती रात कोतवाल सिंह नेगी वकील के घर पर यह तिंरगा जयानंद भारती ने बनाया था.
इस घटना के बाद जयानंद भारती को हथकड़ी पहनाकर पौड़ी जेल ले जाया गया. आगे आगे जयानंद भारती उनके पीछे जनता. आखिर में जब जयानंद भारती ने ख़ुद अनुरोध किया तो ही जनता अपने-अपने घरों को लौटी. गिरफ्तारी के बाद 28 सितम्बर 1933 को भारती जेल से छूटे.
(Malcolm in Uttarakhand 1932)
इतिहासकार शेखर पाठक की पुस्तक ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ पर आधारित.
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