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उत्तराखंड की राजनीति में शराब

अभी दो दशक पहले तक की बात है उत्तराखंड के गावों में शराब पीने और बेचने वालों को महिला मंगल दल की महिलायें सिन्ने की झपाक लगाया करती थी. यह भी ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब आम लोगों द्वारा अल्मोड़ा और नैनीताल समेत पूरे पर्वतीय क्षेत्र में पूर्णतः शराबबंदी को लागू करवाया गया. शराब ने पहाड़ को इस कदर खोखला कर दिया था राज्य के पहले मुख्यमंत्री ने तो एक सार्वजनिक मंच पर शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात तक कह दी हालांकि उन्होंने अपनी ही बात को बाद में गोल-मोल कर दिया. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद शराब बंदी कभी किसी भी सरकार के एजेंडे का हिस्सा नहीं रही. इसके उलट हर सरकार राज्य के लोगों को शराब बेचकर ज्यादा से ज्यादा राजस्व कमाने की फिराक में रहती है.
(Liquor Policy in Uttarakhand)

उत्तराखंड राज्य बनने से पहले पर्वतीय क्षेत्र में शराब को प्रतिबंधित करने के लिये बड़े सारे आन्दोलन हुये. ‘शराब नहीं रोजगार दो’ पर्वतीय क्षेत्र से निकला एक बड़ा आन्दोलन है. यह बड़े आश्चर्य की बात है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से कोई भी बड़ा शराब विरोधी आन्दोलन नहीं हुआ. राज्य बनने से पहले पर्वतीय क्षेत्र में शराब की भट्टी खोलना एक टेढ़ी खीर समझी जाती थी लेकिन पिछले दो दशकों में उत्तराखंड में शराब की दुकानों में रिकार्ड वृद्धि हुई है.

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़ साल 2001-02 में उत्तराखंड की राजस्व आय में सरकार ने शराब से आय का लक्ष्य 222.38 करोड़ था जो 2022-23 में वह 3600 करोड़ रुपये लक्षित है. लगातार शराब के सेवन को प्रश्रय देकर इससे होने वाली आय को राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा बनाने की साजिश रची गयी. जाहिर है इससे राज्य की राजनीति में शराब माफियाओं का दखल भी मजबूत होता गया.
(Liquor Policy in Uttarakhand)

यह दखल इस कदर हावी है कि अब कोई भी राजनैतिक पार्टी अपने चुनाव प्रचार के दौरान शराब बंदी का वादा नहीं करती है. शराब के विरोध में अब आंदोलन भी नहीं होते हैं. शराब जिसने पहाड़ों में घरों के घर बर्बाद कर दिये हैं वह अब राजस्व का सबसे जरुरी हिस्सा हो चुकी है ऐसे में शराब बंदी की बात कर कोई राजनैतिक दल इस बात का जोखिम नहीं उठाना चाहता.

पर्वतीय राज्य की मांग के दौरान शराब बंदी एक महत्वपूर्ण मुद्दा था. उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान पर्वतीय क्षेत्र का हर उम्मीदवार शराब बंदी को मुखर रूप से अपने भाषणों में शामिल करता था पर शायद अब यह इतिहास की बात हो गयी है.
(Liquor Policy in Uttarakhand)

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