आंगन की भीढ़ी में बैठे-बैठे हरूवा सुबह से पांच बीड़ी फूंक चुका था. बेटी की शादी में महज 10 दिन रह गए थे. पहाड़ियों का एक अलग ही लॉजिक होता है, टेंशन के समय में बीड़ी फूकने से काम करने की थोड़ी हिम्मत आ जाती है. पहली बेटी की शादी को 2 साल हो चुके थे, 10 दिन बाद दूसरी बेटी की शादी थी, दो और बेटियों का बोझ सिर पर था. आमदनी का कोई ठोस जरिया नहीं था. कभी-कभी किसी ने अपना घर या रास्ता बनाने के लिए कंकड़ खरीद लिए तो घर में थोड़ा पैसे आ जाते थे वरना तो पूरे साल पैसे की तंगी रहती. हरुवा इन सब सोचों मैं डूबा था कि तभी उसकी बीवी चाय लेकर आई. गुड़ की डली उसके हाथ पर रखते हुए बोली “सुनो! तुम बाजार जाकर कंटोल का राशन ले आओ और चाय पत्ती और चीनी भी ले आना” आज शाम को रेखा की शादी के लिए मसाले कूटने के लिए औरतें आने वाली थी. पहाड़ों में यह रिवाज है.”ठीक है भागुली” यह कहकर हरूवा भींड़े से उठकर अंदर चला गया. ( Story by Jyoti Bhatt )
पहाड़ों में भले ही आदमी पैसे से गरीब हो लेकिन प्रकृति उसे इतना कुछ देती है कि वह गरीब नहीं रहता. अपना गुजर-बसर करने लायक जमीन और पुश्तैनी घर सबके पास होता ही है और गाय बकरी पाल कर दूध घी बेचकर गुजारा आराम से हो जाता है.
रेखा की शादी का दिन भी आ गया. उसकी अधिकतर सहेलियों की शादी हो चुकी थी और वह सभी रेखा को घेरकर आने वाले वैवाहिक जीवन के बारे में हंसी ठिठोली कर रही थी. कुछ उसे नितांत आवश्यक ज्ञान दे रही थी. स्वभाव से शर्मीली रेखा बस सिर झुकाये ये सब बातें सुन रही थी. बीच-बीच में कुछ बूढ़ी औरतें उन लड़कियों को चुप रहने को कहती और हंसी-ठिठोली को तमीज की सीमा के भीतर रखने की हिदायत देती. विदाई से ठीक पहले रेखा की मां उसे एक कमरे में ले गई और उसे समझाने लगी “बेटा तेरे बाप ने आज तक सिर्फ इज्जत ही कमाई. न ही हमारे पास पैसा न ही कोई पीछे से खड़ा होने वाला. जब तक तेरे मां-बाप जिंदा है हमारा सर मत झुकने देना. अपने ससुराल वालों को हर प्रकार से खुश रखना. जो भी मिले उसमें संतोष करना” यह कह भागुली अपनी बेटी से लिपट कर रोने लगी. रेखा ने मां की इन बातों को आज से पहले भी सुना था लेकिन आज इन बातों के मायने बदल चुके थे.
नई तरंगों और नए जीवन की कल्पना लिए सामान्य नैन नक्श और गेहुवे रंग की रेखा अपने ससुराल में आ गई. 2 दिन तो रीति-रिवाजों को पूरा करने में निकल गए तीसरे दिन रेखा की सास ने उसके पति राजू से कहा कि “दुल्हन को लेकर चितई गैराड़ जा आ, हमारे इष्ट हुए वो, आते समय डाना गोलू में भी दीया जलाना.” यह बात सुनते ही राजू एकदम बिफर गया. कहने लगा “तुम लोगों के कहने पर शादी तो मैंने कर ली लेकिन यह फालतू की नौटंकी अब मुझसे नहीं होगी. मैं आज शाम को ही अपनी नौकरी में वापस जा रहा हूं, ऐसे ही 5 दिन की छुट्टियां बेकार कर दी.” गुस्से में वह बाहर निकल गया दरवाजे के पीछे से रेखा यह सुनकर एकदम निःशब्द हो गई उसके हाथ-पैर एकदम ठंडे पड़ गए.
सारे सपने एक पल में जैसे टूट गये.जैसे ही वह बाहर आई और उसने अपने सास-ससुर की ओर देखा उन्होंने ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे कुछ हुआ ही न हो. यह देखकर रेखा और भी व्यथित हो गई. टूट कर बिखर जाने के बाद कोई समेटने वाला न हो तो जिंदगी पूरी तरह खत्म सी लगने लगती है. अब उसे सब कुछ समझ आने लगा था कि शादी से पहले जब भी उसने राजू से फोन पर बात करने की कोशिश की तो हर बार उसे काम का बहाना बनाकर बात करने से मना क्यों कर दिया. अब वो सोचने लगी कि शादी के मंडप पर जब राजू के दोस्त राजू को छेड़ने लगे तो वो उन पर गुस्सा क्यों कर रहा था. बीती हुई सारी घटनाओं की कड़ी एक दूसरे से जुड़ी हुई थी.
शाम को राजू अपनी नौकरी को वापस चला गया. किसी कंपनी में 10- 15 हजार की नौकरी करने के लिए पहाड़ के लड़के अपनी पूरी जवानी लगा देते हैं. वीरान होते घर भी उन्हें नहीं समझा पाते कि इतना तो तुम यहां भी कमा लेते. जाने से पहले उसने एक बार भी रेखा से बात नहीं की और न ही उसकी तरफ देखा. अगले दिन रेखा की मां का फोन आया पिताजी की तबियत अचानक खराब हो गई जल्द आने को कहा था. ( Story by Jyoti Bhatt )
जैसे ही रेखा अपने मायके पहुंची उसकी दोनों बहनें उस से लिपट कर रोने लगी. भीतर पहुंची तो देखा पिताजी की देह कोयले सी काली हो चुकी थी, आंखों के नीचे न जाने कितने वर्षों से जमा किए दुख और परेशानियों ने बहुत गहरे गड्ढे बना दिए थे. घर के अंदर गांव के कुछ आदमी और औरतें बैठी हुई थी. इस दो कमरे के मकान में चीरने वाली उदासी पसरी थी. मां को देखते ही रेखा उससे लिपट गई. अपने हृदय के दुख को समेटकर वह मां के सामने रख देना चाहती थी. लेकिन माँ खुद ही बेसुध थी “तेरी विदाई के बाद से ही इन्हें न जाने क्या हो गया है, तू उधर को गई और इधर यह सीढ़ी से अचानक गिर पड़े. कमर में थोड़ा चोट आई है. कमर की चोट तो ठीक हो भी जाती लेकिन ये न जाने मन में कौन सी चोट लिए बैठे हैं. जिस दिन से तेरी शादी तय हुई थी न जाने कौन सी टेंशन है जो इन्हें दिन-रात खाई जाती थी. अब शादी के बाद से ही खाना पीना छोड़ कर बैठे हैं ” यह कहकर माँ रेखा से लिपटकर रोने लगी. रेखा कुछ और समझ पाती इससे पहले गांव की दो तीन औरतें अंदर आई और रेखा से पूछताछ करने लगी “तू तो अकेले आ गई, क्यों तेरा दूल्हा कहां है? तेरे ससुराल वालों ने पहली बार मायके तुझे अकेले ही भेज दिया क्या?”
“वह नौकरी में चले गए हैं, ससुर जी किसी काम से नहीं आ पाए” रेखा बोली. “क्यों तेरा जेठ और देवर भी तो है, वह आ जाते” फिर एक औरत का तपाक से सवाल आया. “जेठ भी काम पर जाते हैं और देवर के पेपर हैं इस बार इंटर के” रेखा ने बेमन से जवाब दिया. पूरे गांव में यह बात फैल गई कि रेखा का पति शादी के 2 दिन बाद ही नौकरी करने चला गया.
गांव में किसी की निजी बातें, निजी कम सार्वजनिक ज्यादा होती हैं. खेतों में घास काटते हुए या फिर सार्वजनिक टंकी पर कपड़े धोती हुई औरतें, रेखा के पति का जाना सब की चर्चा का विषय था. इधर रेखा अपने मन के उस दर्द को दबाए बैठी थी जिसे वह बांटना चाहती थी लेकिन ऐसा था कौन?
मां से जब भी बात करने की कोशिश करती मां उसे खुद से भी ज्यादा बेबस और लाचार नजर आती. पिताजी को देखकर वह बस रो देती थी. दूसरे दिन, पिताजी की सांसे, जो न जाने कहां अटकी थी. रात के 9 बजे जब सब खाना खाकर सोने की तैयारी में थे, उसी समय इस सांसारिक मोह माया को अलविदा कह गई. घर में कोहराम मच गया माँ एकदम बेसुध हो गई. बिरादरी के लोग जमा हो गए और अंतिम संस्कार कर दिया गया. पीपल पानी तक रेखा वहीं रही. पीपल पानी के बाद उसके ससुर उसे लेने आए और अपने साथ ले गए. जाते समय उसकी मां ने एक बार फिर समझाया लेकिन इस बार समझाने के मायने बहुत अलग और वास्तविक जान पड़े मां ने कहा “बेटा अब हमारे सर से साया उठ गया. तेरा ना कोई भाई ना भतीजा, जिसका हमें सहारा हो. तुम्हारा बाप था तो तुम चार लड़कियों का बोझ मुझे कभी इतना महसूस हुआ लेकिन अब तू अपने ससुराल में अच्छे से रहना. पीछे तेरी दो बहनों की शादी भी करनी है. तेरा चाल चलन कुछ खराब हुआ तो बिरादरी वाले तेरी बहनों की शादी भी नहीं होने देंगे. मैं अकेली न जाने कब तक जिऊंगी.” इतना कहकर मां चुप हो गई. ( Story by Jyoti Bhatt )
आज मां की आवाज में ममता कम और दुनियादारी ज्यादा थी शायद इसलिए क्योंकि अब उसे बाप का किरदार भी अदा करना था. मां अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहती थी रेखा बिना कुछ कहे वहां से आ गयी. रास्ते भर वो सोचती रही कि ये कैसी मुसीबत है न मां से कुछ कह सकती है और न ही ससुराल में कोई ऐसा है जो उसका दुःख बाँटता. अब पिताजी की मौत के बाद वो खुद को और भी असहाय महसूस करने लगी थी.
राजू को गए 2 महीने बीत चुके थे लेकिन राजू ने कभी उससे फोन पर बात नहीं की. अपने मां बाप से भी वह कभी ठीक से बात नहीं करता था. हमेशा उसकी मां ही उसे कॉल करती थी.वह न जाने किस असमंजस में जी रहा था. सुबह से शाम तक रेखा घर के कामों में लगे रहती. जंगल से चारा लाना, खेतों में काम करना, गोठ से गोबर निकालना, पानी भरकर लाना, कपड़े धोना, घर आंगन झाड़ना, पत्थर के आंगन को समय-समय पर मिट्टी और गोबर से लीपना यह सभी अब उसकी दिनचर्या थी. रसोई का काम उसकी जेठानी करती. सास ससुर और घर के अन्य लोगों का रेखा के प्रति व्यवहार सामान्य था. किसी को उससे कोई विशेष लगाव नहीं था. दिन भर कामों में डूबी रेखा शरीर से तो उन कामों में संलग्न थी लेकिन मन ही मन वह दिन प्रतिदिन विरक्त होती जा रही थी.
दिन तो जैसे तैसे कट जाते थे लेकिन रातों में नींद का कोई नामोनिशान न था. तरह-तरह के ख्याल मन में आते. कई बार मन करता कि गले में फंदा डालकर सब को मुक्त कर दे अनचाहे बंधनों से और खुद भी मुक्त हो जाए, लेकिन मां की कही हुई बातें और उसका चेहरा सामने आ जाता तो खुद को संभालना पड़ता. स्वभाव से शांत रेखा अपने ससुराल में अन्य औरतों से न दोस्ती कर पाई और न ही उस जगह उसका कभी मन लगा. वह अकेले ही सारे काम करती. ( Story by Jyoti Bhatt )
गांव के लोग उसे एक समझदार और इमानदार औरत मानते थे. हालांकि कुछ औरतें उसे घमंडी साबित करने पर भी अमादा रहती क्योंकि इन औरतों को दूसरों की निजी बातों को सार्वजनिक बनाने का बड़ा शौक था लेकिन रेखा से उन्हें ऐसी कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती थी जिसे यह ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह पूरे गांव में फैला पाती. रेखा इन सबसे अलग अपने अंतर्द्वंद्व से लड़ रही थी.
6 महीने इसी तरह बीत गए और चार दिन बाद होली आने वाली थी. जिनके भी पति नौकरी के लिए बाहर शहरों में थे घर आने लगे. अपने पत्नी और बच्चों के लिए तरह-तरह के फैंसी कपड़े, नमकीन, बिस्कुट और न जाने क्या-क्या लाये. छोटे बच्चे अपने पिता के लाए हुए उन कपड़ों को पहनकर गांव भर में घूमते. औरतें, जो और दिनों काम में डूबी अपनी देह में हफ्तों का मैला जमाए, बदरंग सी साड़ी को इस तरीके से पहने रहती जिसमें साड़ी कम और पेटिकोट ज्यादा दिखता, अपने पति के आने के उन दिनों में कुछ अलग ही दिखाई पड़ती. ऐसे सुंदर कपड़ों में नजर आती कि यकीन करना मुश्किल हो जाता कि इन औरतों के पास भी ऐसे कपड़े हैं.
इन दिनों में वह औरतें किसी सुंदर अभिनेत्री सी नजर आती जो बिना किसी मेकअप के मन की सुंदरता से चमक उठती. ऐसे में किसी डायरेक्टर की नजर उन पर पड़ जाती तो जरूर उन्हें किसी फिल्म में साइन कर लेता.
छत को जाने वाली सीढ़ियों में बैठी रेखा कभी इन औरतों के भाग्य से ईर्ष्या करती तो कभी अपने भाग्य को कोसती. न जाने कितनी ही बार उसकी आंखों में आंसू भर आए लेकिन एक बार भी उसने उन्हें कोरों से टपकने नहीं दिया. दूर बैठा उसका परदेसी घर आएगा भी या नहीं यह भी उसे पता नहीं था. जीवन कितना निष्ठुर होता है ना सीधे-साधे, साफ दिल निष्पाप लोगों की भी परवाह नहीं करता ना ही उनके साथ न्याय कर पाता है.
होली से ठीक 1 दिन पहले राजू भी घर आ गया उसे देखकर उसके मां-बाप तो खुश हुए ही लेकिन रेखा असमंजस में पड़ गई बोले तो क्या बोलें और चुप भी कैसे रहे. राजू को देखकर उसकी आंखों का वह तरल बांध जो उसने कब से संभाला हुआ था एकदम से टूट गया. अपने आंसू छुपाते हुए वो जंगल की तरफ चल दी, वैसे भी घर में उसके होने या न होने से किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता था.
जंगल के एकांत में पागलों की तरह चीख़ चीख कर रोई. वो अपने अंदर के जमाव को बहा देना चाहती थी, सोचने लगी कि उसकी अभी कोई जंगली जानवर आता और उसे खाकर मुक्ति दिला देता, वह आत्महत्या के पाप से भी बच जाती और जानवर का भी भला हो जाता. आंसू पोंछकर वो प्रार्थना करने लगी “हे गोलूज्यू अब तुम ही में कोई रास्ता दिखाओ” इस प्रार्थना से उसे थोड़ा बल मिला और वह घर लौट आई.शाम को खाना खाते समय आज उसने पहली बार राजू की शक्ल अच्छे से देखी, उसकी आंखों में कितनी गहराई थी. सामान्य सी सूरत थी लेकिन आंखों न जाने क्या छुपाती फिरती थी.
दूसरे दिन रेखा के ससुराल में औरतों की होली थी. औरतों की होली में केवल औरतें ही भाग लेती थी और आपस में हंसी मजाक करती इसमें पुरुषों का आना निषेध था. हाँ बच्चे बिना किसी भेदभाव के पुरुष और महिला दोनों की होली में जा सकते थे. रेखा भी जाकर औरतों के बीच बैठ गई उसके गालों पर लगा हुआ हरा रंग, जो किसी बच्चे ने भाभी-भाभी कहते हुए लगा दिया था, उसे बहुत सुंदर बना रहा था. इसी बीच उसकी सास ने रेखा को गुड़ की भेली लाने के लिए अंदर भेजा. पहाड़ के गांव में होली में गुड़ बांटना परंपरा है. जैसे ही रेखा गुड़ की भेली लेकर अपनी धुन में बाहर आ रही थी वैसे ही राजू किसी काम से अंदर आया और रेखा से टकरा गया. आज पहली बार राजू ने रेखा की शक्ल को देखा वह हरा रंग उस पर कितना जंच रहा था. वह धीरे से मुस्कुरा दिया उस इस मुस्कुराहट पर रेखा भी जवाब में हंस दी और उसके गाल हरे और लाल के विरोधी मिश्रण के गवाह बन गए. ( Story by Jyoti Bhatt )
बाहर आंगन में आकर रेखा उत्साह के साथ होली गाने लगी. उसके इस रूप से सभी हैरान थे उसकी उम्र की औरतें उसे छेड़ने लगी कि यह सब तो राजू भैया का कमाल है और रेखा इसे अपने गोल्ज्यू का आशीर्वाद मान रही थी. मात्र एक मुस्कान ने उसके जीवन का पूरा नजरिया ही बदल दिया. शाम को खाना खाते वक्त भी राजू रेखा की ओर देखकर हल्के से मुस्कुरा दिया और रेखा तो जैसे एक नया जीवन पा गई. बिना शब्दों के काम चल रहा था.
अगले ही दिन सुबह-सुबह राजू अपनी नौकरी के लिए चल दिया. जाते समय आंगन में खड़ी रेखा, जो अभी-अभी गोबर निकाल कर आई थी और उसके हाथ गोबर से सने थे, उसे मिल गई और वह प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर कर चल दिया. रेखा ने अपने गालों पर गर्म आंसू लुढ़का दिए. अब रेखा को लगने लगा कि सब कुछ ठीक होने वाला है और वह इस बात को भी अच्छा मानने लगी थी कि वह मां को कुछ नहीं बता पाई, जब सब कुछ ठीक होने लगता है तो हमें अपने फैसलों पर गर्व होता है. दिन भर वो अपने सिर पर राजू का वो हाथ महसूस कर खुशी से भर जाती. अगले दिन सुबह-सुबह रेखा रोने और चिल्लाने की आवाजें सुनकर उठ पड़ी. ( Story by Jyoti Bhatt )
बाहर कमरे में आई तो देखा उसके सास-ससुर रो रोकर अपनी फूटी किस्मत को दोष दे रहे थे. बीच-बीच में उसकी सास कहती “राजू मेरा बेटा तू कहां चला गया” यह सुनकर रेखा न जाने कौन से जहां में पहुंच गई, उसके सारे शरीर में खून न जाने कौन सी गति से दौड़ने लगा छाती एकदम फटने को तैयार हो गई. सास की हालत देखकर और भी ज्यादा डर गई हिम्मत करके उसने अपने ससुर जी से पूछा “क्या हुआ”
“क्या होता बेटा हमारी किस्मत फूट गई राजू ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली” इतना कहते ही ससुर का गला रूंध गया और वह अपने हाथों से अपने सर को पीटने लगे. जाते समय राजू ने कितने प्यार से रेखा के सर पर हाथ फेरा था बार-बार रेखा उस पल को याद करती.और याद करने लायक था भी क्या.
राजू के मृत शरीर को उसके भाई घर ले आए उसके पास से एक सुसाइड नोट मिला.
” जब से घर से आया हूं रेखा की मासूम शक्ल मेरी आंखों के आगे घूमती है लेकिन मैं करूं भी क्या? मैं जिस से शादी करना चाहता था घर वालों ने जाति अलग होने के कारण उसे शादी कराने से मना कर दिया. मां ने मरने की धमकी दी थी इसलिए शादी करनी पड़ी. वह लड़की मेरे साथ ही कंपनी में काम करती है और शादी के बाद भी हम दोनों साथ ही रहे. घर जाकर जब रेखा को देखा तो मुझे अपने आप से नफरत होने लगी मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है मैंने रेखा और उस लड़की दोनों के साथ अन्याय किया है. धोखा दिया है मैं इस लायक नहीं कि अब जियूँ. जिंदगी मेरे लिए बोझ बन गई है. मेरे पास कोई रास्ता नही बचा है. सब लोग मुझे माफ कर देना मैं अपनी मर्जी से मर रहा हूं इसमें किसी का कोई दोष नहीं है”
इस नोट को पढ़ने के बाद रेखा को सब समझ आने लगा कि आखिर क्यों उस दिन जब शादी के बाद राजू घर से गया तो उसके सास ससुर ने उसे रोका क्यों नहीं. हिम्मत करके रेखा ने आज पहली बार ससुर जी से पूछा “आपने ऐसा क्यों किया” रोते हुए ससुर जी बोले “मैंने तेरे बाप को पहले ही सब बता दिया था, लेकिन उसने कहा कि एक बार शादी हो जाएगी, सब ठीक हो जाएगा. मैं भी अपने बेटे की शादी उस कुजाति की लड़की से नहीं कराना चाहता था. हमें भी लगा कि शादी करके सब ठीक हो जाएगा” इतना कहते ही वो रोने लगे. दोनों पिताओं की मनमानी का नतीजा था जिसने एक से उसकी जिंदगी छीन ली और दूसरे को जिंदा लाश बना दिया. मेरी शादी के बाद पिताजी अचानक क्यों इतने बीमार हो गए, रेखा को यह बात आज समझ आयी. (Story by Jyoti Bhatt)
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अल्मोड़ा की रहने वाली ज्योति भट्ट विधि से स्नातक हैं. ज्योति फिलहाल आकाशवाणी अल्मोड़ा में कार्यरत हैं.
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Bahut he shandar kahani
Bahut khub ,behAd marmik!
बहुत ही खुबसूरत शब्दों में लिखी गयी मार्मिक कथा