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एक युवा कवि को पत्र – 3 – रेनर मारिया रिल्के

“एक युवा कवि को पत्र” महान जर्मन कवि रेनर मारिया रिल्के के लिखे दस ख़तों का संग्रह है. ये ख़त जर्मन सेना में भर्ती होने का विचार कर रहे फ़्रान्ज़ काप्पूस नामक एक युवा को सम्बोधित हैं. काप्पूस 19 का था जबकि रिल्के 27 के जब यह पत्रव्यवहार शुरू हुआ. काप्पूस ने अपनी कविताएं रिल्के को भेजीं और उनसे साहित्य और करियर की बाबत चन्द सवालात पूछे. यह पत्रव्यवहार  1903 से  1908 तक चला.

1929 में रिल्के की मौत के बाद काप्पूस ने इन पत्रों को एक किताब की सूरत में छपाया. ये पत्र अब विश्व साहित्य की सबसे चुनिन्दा धरोहरों में शुमार होते हैं.

पढ़िए इस श्रृंखला का तीसरा पत्र –

 

वीयारेजिओ, पीसा के नज़दीक (इटली)
23 अप्रैल, 1903

ईस्टर वाले अपने पत्र से आपने मुझे बहुत ख़ुशी दी प्रिय श्रीमान, क्योंकि वह आपके समाचार ले कर तो आया ही जिस तरह से आपने जैकबसन की महान और प्रिय कला के बारे में लिखा है उसने मुझे दिखाया कि मैं जीवन और उसके प्रचुर प्रश्नों को लेकर आपका मार्गदर्शन करने में ग़लत नहीं था.

अब “Niels Lyhne” आपके सामने वैभवों और गहराइयों की एक पुस्तक को उद्घाटित करेगी; आप जितनी बार इसे पढ़ते हैं जीवन की सर्वाधिक अबूझ सुगधियों से लेकर इसके सबसे भारी फलों के सम्पूर्ण और विशाल स्वाद तक उतनी ही ज़्यादा चीज़ें इसके भीतर समाई हुई लगती हैं. इसके भीतर ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसे स्मृति की हिचकिचाहटभरी गूंज में समझा न गया हो, थामा, जिया और जाना न गया हो; कोई भी अनुभव बहुत महत्वहीन नहीं है और सूक्षमतम घटना किसी नियति की तरह प्रकट होती है और स्वयं नियति एक ऐसे अचरजकारी चौड़े वस्त्र सरीखी है जिसमें हरेक धागा किसी अतीव मुलायम हाथ द्वारा निर्देशित होता है और किसी दूसरे धागे की बग़ल में धर दिया जाता है और सैकड़ों और धागे उसे थामे हुए सहारा देते हैं. इस किताब को पहली दफ़ा पढ़ते हुए आप को महान प्रसन्नता का अनुभव होगा और आप इस के असंख्य आश्चर्यों से होते हुए गुज़रेंगे जैसे कि आप किसी नए स्वप्न के भीतर हों. लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि बाद में भी जब आप बार-बार उसी आश्चर्य के साथ इन किताबों से होकर गुज़रते हैं वे अपनी अचरजकारी ताकत ज़रा भी नहीं खोतीं न ही वह ज़बरदस्त जादू कभी ख़त्म होता है जिसका अनुभव आप को पहली दफ़ा पढ़ते वक़्त हुआ था. समय के साथ साथ आप उनका और और अधिक आनन्द उठाने लगते हैं, और अधिक कृतज्ञ महसूस करते हैं और अपनी निगाह में किंचित बेहतर और सादा, जीवन के प्रति अधिक गहरे विश्वास से भरे हुए और अपने जीवन में अधिक प्रसन्न और महत्तर.

और बाद में आपको मैरी ग्रुब्बे की नियति और उसकी इच्छाओं की वह शानदार किताब पढ़नी होगी, और जैकबसन की चिठ्ठियां और रोज़नामचे और टुकड़े, और अन्ततः उसकी कविताएं (हालांकि उनका अनुवाद बस ठीकठाक ही हुआ है) जो अनन्त ध्वनि में रहती हैं. (इसी कारण मैं आपको, जब भी आप ऐसा कर सकें, जैकबसन के सम्पूर्ण कृतित्व का बेहतरीन संस्करण खरीद लेने की सलाह दूंगा, जिसमें यह सब शामिल है. यह तीन खण्डों में है, बढ़िया अनूदित हुआ है और लाइपज़िग में यूजेन डाइड्राइख़्स से छपा है और मेरे ख़्याल से हरेक खंड की कीमत पांच या छः मार्क है.)

“ग़ुलाबों ने यहां होना चाहिए था …” (अद्वितीय मुलायमियत और प्रारूप वाली वह रचना) से सम्बन्धित अपने विचारों में आप निस्संदेह, निस्संदेह निर्विवाद रूप से सही हैं, उस व्यक्ति के बरख़िलाफ़ जिसने प्रस्तावना लिखी है. लेकिन इसी पल मुझे यह निवेदन कर लेने दीजिए: साहित्यिक आलोचना का जितना कम से कम सम्भव हो, उतना ही पढ़ें. ऐसी चीज़ें या तो पक्षपातपूर्ण विचार होते हैं, जो पत्थर बन चुके हैं, अर्थहीन हैं, कड़ियल पड़ चुके हैं और जीवन से रहित या वे चालाक शाब्दिक खेल होती हैं जिसमें एक दृष्टिकोण जीतता है, और कल बिल्कुल विपरीत दृष्टिकोण जीत सकता है. कलाकृतियां अनन्त एकाकीपन से उपजती हैं और उन तक पहुंचने का कोई भी साधन आलोचना जैसा निरर्थक नहीं हो सकता. उनके साथ न्यायपूर्ण होने के लिए और उन्हें स्पर्श करने और थामने में केवल प्रेम सक्षम है. हमेशा अपने आप को और अपनी संवेदना पर विश्वास कीजिए, बजाए बहस मुबाहिसों और ऐसी चीज़ों के, अगर यह सामने आता है कि आप ग़लत हैं तो आपकी अन्दरूनी ज़िन्दगी का नैसर्गिक विकास आपको दूसरे किस्म की परखों तक ले जाएगा. अपने फ़ैसलों को उनका निशब्द निर्बाध विकास करने दीजिए, किसी भी तरह का विकास भीतर की गहराइयों से आता है, उसे ज़बरन थोपा नहीं जा सकता या उसकी गति नहीं बढ़ाई जा सकती. सारा कुछ गर्भावस्था है और उसके बाद जन्म देना. हर प्रभाव और हर संवेदना के भ्रूण को उसकी सिर्फ़ उसी के भीतर, अन्धेरे में, अकथनीय में, अचेतन में, अपनी ख़ुद की समझ से परे सम्पूर्णता तक पहुंचाना, और गहरी विनम्रता और धैर्य के साथ उस पल का इन्तज़ार करना जब एक नई स्पष्टता जन्म लेती है: एक कलाकार के तौर पर जीना सिर्फ़ यही है: समझने में और रचने में.

इस में समय के साथ कोई नापतौल नहीं हो सकती, एक साल का कोई मायना नहीं होता, और दस साल कुछ नहीं होते. कलाकार होने का मतलब है: गिनती न करना, बल्कि किसी पेड़ की तरह पकना, जो अपने सार के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता और वसन्त के तूफ़ानों के सामने आत्मविश्वास से खड़ा रहता है, वह आसन्न गर्मियों से भयभीत नहीं होता. गर्मियां आती हैं. लेकिन वे उन्हीं के लिए आती हैं जो धैर्यवान होते हैं, जो वहां इस तरह उपस्थित रहते हैं मानो अनन्तता उनके सामने पसरी हुई हो, इस कदर चिन्ताहीन, खामोश और विशाल. मैं अपने जीवन के हर दिन इस बात को सीखता हूं, दर्द के साथ सीखता हूं जिसके लिए मैं कृतज्ञ हूं: धैर्य ही सब कुछ है!

रिचर्ड देमेल: उसकी किताबों (और साथ ही स्वयं उस के साथ जिसे मैं इत्तफ़ाक़न थोड़ा बहुत जानता हूं) के साथ मेरा अनुभव यह रहा है कि जब भी मुझे उसका कोई ख़ूबसूरत पन्ना मिलता है, मैं हमेशा भयभीत हो जाता हूं कि अगला पन्ना समूचे प्रभाव को नष्ट कर देगा और जो प्रशंसनीय है उसे अयोग्य बना देगा. आपने उसे “गर्मी में रहने और लिखने वाला” कह कर उसका बढ़िया चरित्रचित्रण किया है. और असल में कलाकार का अनुभव इतने अविश्वसनीय तरीक़े से सैक्सुअलिटी के नज़दीक है, उसके दर्द और उल्लास के, कि दोनों तथ्य दर असल एक ही इच्छा और आनन्द के अलग-अलग रूप हैं. और अगर “गर्मी” के स्थान पर आप “सैक्स” कह सकते – चर्च द्वारा उसके साथ सम्बद्ध किए गए पाप के बिना अपने विशुद्ध शाब्दिक अर्थ में सैक्स – तब उसकी कला बेहद महान और अनन्त महत्वपूर्ण हो जाएगी. उसकी काव्यात्मक शक्तियां महान हैं और आदिम सहजज्ञान जैसी मज़बूत; उसके पास अपनी एक क्रूर लय है जो उसके भीतर से किसी ज्वालामुखी की तरह विस्फोटित होती है.

लेकिन यह ताक़त हमेशा पूरी तरह खरी और मुद्राहीन नहीं लगती. (लेकिन सर्जक के लिए यह सबसे मुश्किल इम्तहान होता है, उसे हमेशा अचेत रहना होता है, अपने सर्वश्रेष्ठ गुणों से बेख़बर, अगर वह उनसे उनकी स्पष्टवादिता और मासूमियत छीनना नहीं चाहता!) और जब उसके अस्तित्व में गरजती हुई चीज़ें सैक्सुअलिटी पर आती हैं, उनका सामना एक ऐसे आदमी से होता है जो वांछनीय रूप से उतना शुद्ध नहीं है. सैक्सुअलिटी के एक सम्पूर्ण और शुद्ध संसार के स्थान पर उसे एक ऐसा संसार मिलता है जो पर्याप्त रूप से मानवीय नहीं, जो सिर्फ़ नर है, गर्मी है और तूफ़ान है और बेचैनी और जिस पर वह पुरातन पूर्वाग्रह और अराजकता लदे हुए हैं जिस की मदद से पुरुष ने प्रेम को कुरूप और बोझिल बनाया है. चूंकि वह सिर्फ़ एक पुरुष की तरह प्रेम करता है. किसी मनुष्य की तरह नहीं, उसकी सैक्सुअल भावना में कोई संकरी चीज़ होती है, कोई चीज़ जो जंगली, विद्वेषपूर्ण, समयबद्ध, अनन्तहीन है और जो उसकी कला को धुंधला करती है और उसे अस्पष्ट और संदिग्ध बनाती है. वह बेदाग नहीं होती, उस पर समय और वासना के निशान होते हैं और उसका थोड़ा सा हिस्सा ही बचा रहेगा. (लेकिन ज़्यादातर कला ऐसी ही होती है!) तो भी, उसके भीतर जो कुछ महान है आप उसका गहन आनन्द उठा सकते हैं, अलबत्ता आपने उसमें खोना नहीं चाहिए और न ही देमेल के संसार से बंधा रहना जो बेहद भयभीत और व्याभिचार और संशय से भरा हुआ है, और वास्तविक नियतियों से कहीं दूर है, जिनमें आपको समयबद्ध दुखों से ज़्यादा यातना भोगनी होती है, और जो महानता के लिए आपको अधिक मौक़े और अनन्तता के लिए अधिक साहस मुहैया कराती हैं.

अन्ततः जहां तक मेरी किताबों का सवाल है, मैं चाहता हूं कि उनमें से आपको कुछ भेज सकूं जो आपको प्रसन्नता दें. लेकिन मैं बहुत निर्धन हूं और मेरी किताबें छपने के साथ ही मेरी नहीं रह जातीं. मैं ख़ुद उन्हें नहीं ख़रीद पाता और जैसा मैं अक्सर करता हूं, उन्हें उन लोगों को दे देता हूं जो उनके साथ दयालुता बरतते हैं.

सो मैं कागज़ की एक अलग स्लिप पर अपनी हालिया किताबों के शीर्षक (और उनके प्रकाशकों के नाम) लिख कर भेज रहा हूं (सबसे ताज़ा- कुल मिलाकर मैंने सम्भवतः १२ या १३ प्रकाशित की हैं) प्रिय मान्यवर मैं यह आप पर छोड़ता हूं कि आप जब ऐसा कर सकें उनमें से एक या दो ख़रीदे लें.

मैं खुश हूं कि मेरी किताबें आपके हाथों में होंगी.

शुभकामनाओं समेत

आपका
रेनर मारिया रिल्के

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