नन्दा देवी की चोटी भारत की दूसरी सबसे बड़ी हिमालयी चोटी है. पूरी तरह भारत में स्थित यह देश की सबसे ऊंची हिमालयी चोटी है. भारत-नेपाल सीमा पर स्थित कंचनजंघा को फिलहाल सबसे ऊंचा माना जाता है. पूरे विश्व में ऊंचाई के लिहाज से इसका नंबर तेईसवां है.
इसका शैल-क्षेत्र गढ़वाल के चमोली जिले के अंतर्गत पचास किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ है. इसके पूर्व की ओर मरतोली गंगा तथा पंचगंगा का और पश्चिम की ओर ऋषिगंगा का प्रवाह क्षेत्र है. इस इलाके में अनेक हिम सरोवर हैं जिनमें रूपकुंड, नन्दाकुंड, सूर्यकुंड एवं शांडिल्यकुंड सबसे महत्वपूर्ण हैं.
नन्दा देवी के शिखर की ऊंचाई 7816 मीटर है वहीं नंदा देवी पूर्वी की ऊंचाई 7434 मीटर है. वर्ष 1808 तक नंदा देवी को विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता था. 1975 में सिक्किम (जहाँ कंचनजंघा अवस्थित है) के भारत में विलय से पहले इसे भारत का सर्वोच्च पर्वत-शिखर होने का गौरव प्राप्त था.
नंदा देवी को उत्तराखण्ड के हिमालयी और पर्वतीय जन जीवन में कुलदेवी की तरह पूजा जाता है. इसके पारिस्थितिकीय संकट को देखते हुए 1983 में इसे स्थानीय लोगों और पर्वतारोहियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया. 1988 में यूनेस्को ने इस शिखर के आसपास के बड़े इलाके को नन्दा देवी वैश्विक धरोहर घोषित किया.
नन्दा देवी पर्वत शिखर के चारों तरफ पर्वतों का एक परिधि-मंडल है जिसकी ऊंचाई कहीं पर भी छः हज़ार मीटर से कम नहीं है. चारों ओर से घेरे इस पर्वत प्राकार को नन्दा देवी प्राकार मंडल कहा जाता है. कुल छः सौ चालीस (640) वर्ग किलोमीटर के इस प्राकार क्षेत्र के अन्दर कई शाद्वल-स्थल, नाले, पहाड़ियां, घाटियाँ तथा चट्टानें हैं.
सन 1934 में पहली बार एरिक शिप्टन और एच. डब्लू. टिलमैन नामक ब्रिटिश पर्वतारोहियों नें अपने तीन शेरपा साथियों – आंगथार्की, पसांग और कूसांग – के साथ ऋषि घाटी होते हुए इस क्षेत्र में पहली बार प्रवेश किया था.
यहाँ से दिखाई देने वाले अनुपमेय दृश्य को देख कर शिप्टन ने लिखा था – “इस महान रंगशाला के केंद्र में अपने मूलाधार से तेरह हज़ार फीट ऊपर स्थित नन्दा देवी का यह शिखर आगे बढ़ने के साथ-साथ निरंतर अद्वितीय रूपों तथा रंगों में परिवर्तित हो जाता है.”
बाद में इस क्षेत्र में करीब एक दहाई पर्वतारोहण अभियान किये गए लेकिन क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यावरण को इनसे हो रही हानि के मद्दे-नज़र सरकार ने किसी के भी यहाँ आने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. कुमाऊँ और गढ़वाल के अनेक पर्वतीय स्थानों से नंदा देवी के विभिन्न आयामों को देखा जा सकता है.
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