एक समय की बात है, बहादुर शाह नाम का व्यक्ति गढ़वाल में राज करता था. उसके राज्य की राजधानी श्रीनगर थी, उसकी मुत्यु के बाद उसका पुत्र मान शाह गद्दीनशीं हुआ.
उसकी ताजपोशी के समारोह के लिए मान शाह ने अपने राज्य के सभी सरदारों, ताल्लुकेदारों व जमींदारों को आदेशित किया कि वो तांबे की कटोरियां और उसके प्रति वफादारी का सबूत नज़राने के तौर पर लेकर दरबार में उपस्थित हों. सिर्फ सुरजू डंगवाल को छोड़कर सभी सरदार, जमींदार राजमहल में उपस्थित हुए. सुरजू गढ़वाल छोड़कर कुमांयू में चंपावत के राजा लक्ष्मी चंद के वहां निर्वासित जीवन जी रहा था. गढ़वाल के राजा मान शाह ने सुरजू को पत्र लिखा कि वह लौट आए, लेकिन सुरजू ने मानशाह को जवाब दिया कि वह आपके राज्य की अपेक्षा यहां ज्यादा खुशहाल है. राजा मानशाह के सुरजू को लिखे दूसरे पत्र का जवाब भी कुछ ऐसा ही था.
इसके बाद राजा मानशाह ने चंपावत के राजा लक्ष्मी चंद को पत्र लिखा कि वह सुरजू को वापस करे किंतु राजा लक्ष्मीचंद ने भी उनके इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने साथ में धमकाया भी कि अगर राजा मानशाह सुरजू की वापसी की मांग पर अड़े रहते हैं, तो वह अपनी सेनाएं भेजकर उनके राज्य पर हमला कर उसे मिट्टी में मिला देंगे.
इस बात से राजा मानशाह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने चंपावत पर हमले के लिए अपनी सेना को तैयार किया. चंपावत पहुंचकर राजा मान शाह और राजा लक्ष्मी चंद की सेनाओं के बीच बड़ी घमासान लड़ाई हुई, जो कि कई दिनों तक चली. पूरी धरती रक्त और मृत शरीरों से पट गई. बाघ और सियार लाशों को खा रहे थे. युद्ध के सातवें दिन चंपावत के राजा लक्ष्मी चंद युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गए.
अपने पति की कायरता की इस बात को सुनकर चंपावत की रानी ने सेना की कमान संभाली. उस महिला ने वीरांगनाओं की तरह कई दिनों तक लड़ाई लड़ी. अंत में दुश्मन सेनाओं ने उस पर विजय प्राप्ति कर ली. रानी ने आत्मसमर्पण कर दिया, और सुरजू डंगवाल को गढ़वाल के राजा मान शाह को सौंप दिया.
राजा मान शाह रानी चंपावत की वीरता का सम्मान करते हुए सुरजू डंगवाल को साथ लेकर अपने राज्य गढ़वाल वापस लौट आया.
(पादरी ई एस ऑकले एवं तारा दत्त गैरोला की पुस्तक ‘हिमालयन फोकलोर’ से बैगा हुड़किया द्वारा कही गयी कुमाऊँ के वीरों और वीरांगनाओं से सम्बंधित कहानियों में से एक. अंग्रेजी से अनुवाद : कृष्ण कुमार मिश्र)
लखीमपुर खीरी के मैनहन गांव के निवासी कृष्ण कुमार मिश्र लेखक, फोटोग्राफर और पर्यावरणविद हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहने वाले कृष्ण कुमार दुधवालाइव पत्रिका के संपादक भी हैं. लेखन और सामाजिक कार्यों के लिए पुरस्कृत होते रहे हैं.
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