Featured

एक गाँव से बैसी-जागर का आँखों देखा हाल

आजकल कई गांवों में बैसी-जागर टाईप का कुछ पूजा-नृत्य गांव की धूनियों में हो रहा है. बाहर बसे परदेसी भी गांव में आकर खूब श्रद्वा भाव दिखाने में मग्न हैं. धूनी को चमका रखा है. बाकायदा बैसी-जागर की लाइव तस्वीरों के साथ ही वीडियो की मदद से बाहर बसे मित्रों को अवगत कराया जा रहा है. युवा वर्ग भी काफी खुश हो हर काम करने पर आमदा है. देवगणों की सेवा-टहल में कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही है. बैसी-जागर में बैठे देवगण युवा और बुजुर्ग महिलाओं के लिए आदर-श्रद्वा के पात्र हैं. उन्होंने भगवान तो नहीं देखे लेकिन देवगणों के नृत्य-प्रवचनों से वो उन्हें ही भगवान मान हाथ जोड़ शीश नवाए उनके चरणों में बैठे हैं. देवगणों के सामने वृद्व महिलाएं अपने को ही पापी मान अपने किए की माफी मांगने में जुटी पड़ी हैं.

अब वो अलग बात है कि ये ही देवगण जब बैसी-जागर से मुक्त हो अपने में आते हैं तो घर-वालों की नजरों में उनसे बड़ा असुर कोई नहीं होता.

गांव के रास्ते-नौले-धारे कूड़े से पटे पड़े हों. गांव में भले ही कोई सार्वजनिक शौचालय न हो, रात में गांव की गलियां अंधेरे में ही क्यों न डूबी हों, गरीब परिवार का भरण-पोषण कैसे हो पा रहा है, ये सब किसी को नहीं दिखाई देता है. सभी को बस अपने भगवान को चमकाने की ही धुन है. आजकल कुछ ऐसा ही हमारे गांव में भी धूनी में बैसी-जागर की पूजा हो रही है. इस बीच पता चला कि इस विधान को शुरू करने से पहले देवताओं समेत उनके देवगणों को हरिद्वार में नहलाकर पवित्र कराया जाएगा. तो एक बस बुक कर ली गई जिसे उन्हें दिन-रात एक करके दो दिन में नहलाकर वापस लाना था. क्योंकि वापसी तक सभी को भूखे रह महाव्रत का पालन करना था.

गांव की सीमा से बस निकली तो बम-बम के जयकारे गूंज उठे. जो कि काफी देर तक चलते रहे. चालक महोदय भी श्रद्वा में लीन बस को चलाने में मग्न थे. आधेक घंटे बाद बम-बम के जयघोष के सांथ ही बस धुंएं से भर उठी तो हड़बड़ाहट में चालक ने बस रोक देखा कि कहीं आग-वाग तो नहीं लग गई. बमुश्किल धुंआं छटा तो उन्हें पता चला कि देवता के ये गण चिलम से सीधे ही प्रभु से लिंकअप में जुटे पड़े हैं. देवता और उसके गणों के बीच आपसी मिलन को समझ हैरान-परेशान चालक ने उन्हें डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा और बस दौड़ा दी. रास्ते में चालक और उसके परिचालक ने ही भोजन लिया, बा कीजन भक्तिमय हो धुंएं के आगोश में मग्न रहे. वापसी में चालक ने देवगणों को गांव पहुंचाने की जल्दी में अपना भी व्रत रख लिया. वह भी देवगणों से जल्द से जल्द मुक्त होना चाहता था. 

दसेक साल पहले की ही एक बात याद आ गई. गांव में बचपन का मेरा एक मित्र लंबे वक्त से बीमार था. हाल ये था कि पाथर से बने दो मंजिला मकान के गोठ में उसने अपने आप को ही कैदी बनाके रख लिया था. बिस्तर में वह कंबल से मुंह ढका रहता था. खाना-पीना लगभग सब छोड़ दिया था. परेशान घरवालों ने तंत्र-मंत्र वालों के वहां शरण ली तो उन्हें तुरंत जागर लगाने की सलाह दे दी गई. इस पर उन्होंने हमसे भी गांव में जागर में जरूर आने को कहा. तय तारीख पर बागेश्वर से तब हमारी माताजी भी परिवार से अपनी हाजिरी जागर में लगाने के लिए गांव चल दी. जागर से किस तरह मित्र ठीक होता है कि जिज्ञासा के चलते शाम को मैंने भी गांव को दौड़ लगा दी.

रात में करीब आठ बजे तक मैं भी गांव पहुंच गया. तब तक मित्र के घर में जागर की तैयारियां शुरू हो रही थी. गांव की बाखलियों से होते हुए मैं भी मित्र के घर पहुंचा. गांव के बच्चे-बुजुर्ग भी पेटपूजा कर अब इस जागरपूजा में आ रहे थे. दो मंजिले के मिट्टी के चाख में डंगरिये, जगरिये समेत गोलज्यू, वैष्णों देवी, नरसिंहा के देवदूतों ने अपने आसन सजा लिए. धूप बत्ती के बाद जगरिये और डंगरिये ने आसन में बैठे तीनों देवदूतों को एक-एक कर उनकी कहानियां सुनानी शुरू कर दी.

पहला नंबर गोलज्यू का ही आया और वो जगरिये द्वारा आह्वान किए गए छंदो पर झूमने लगे. जगरिये ने हुड़के की थाप दी तो गोलज्यू ने मुठ्ठीभर चावल दरवाजे की देहली की ओर फेंके. नीचे गोठ में कंबल में दुबके मित्र को ऊपर बुलाने के इस तरीके पर जागर देखने वाले सभी भक्तों के हाथ खुद-ब-खुद जुड़ने के साथ ही सिर भी श्रद्वा से झुक से गए. मित्र के परिजन उसे जागर, देवता का हवाला दे उप्पर चलने की मिन्नते कर रहे थे और मित्र ने नहीं आना था तो वो नहीं आया. चावलों का फेंका जाना बीच-बीच में जारी था.

परिजनों की मुश्किलें समझ मैं गोठ गया और मित्र को अपना हवाला दे कंबल से मुंह निकालने को कहा. वो नहीं चेता. मेरा ध्यान कमरे में जहां-तहां खैनी, गुटका तंबाकू के पुड़ियों पर गई तो मुझे लगा कि मित्र के बीमार होने का मामला दूसरा ही है. मैं उसकी तखत के बगल में ही बैठ गया और मैंने बचपन के अपने किस्सों, खेल, खुराफात की कहानियां छेड़ दी और एक तरीके से उससे बीच-बीच में, ‘क्यों तुझे याद है!’ आदि कहता रहा. मेरी मेहनत रंग लाई और मेरे किसी किस्से पर वो कंबल के अंदर ही थोड़ा सा हंसा. फिर मैं उसे वर्तमान में ले आया और परिवार के खातिर, मन रखने के लिए ही सही ऊपर जागर में चलने के लिए मना ही लिया.

वह बमुश्किल बिस्तर से उठा. बहुत कमजोर दिख रहा था. उसके मुंह में खैनी देख मैंने उसे थूकने को कहा तो उसने पैकेट भर खैनी मुंह से हाथ में रख नीचे फेंक दी. सहारा दे मैं उसे जागर के मैदान में ले गया और जगरिये की बगल में ही बैठा दिया. मित्र को वहां देख गोलज्यू और जगरिये के प्रति भक्तजनों की श्रद्वा और ज्यादा उमड़ गई. अब गोलज्यू और जगरिये ने मित्र के अंदर बैठी दूसरी आत्मा से वार्तालाप करने की कोशिश शुरू कर दी. बकौल दोनों, मित्र के अंदर किसी दुष्ट आत्मा ने पनाह ले रखी है. मित्र की आत्मा और दूसरी आत्मा ने न कुछ बोलना था और न ही वो दो आत्माएं बोली. बूढ़े गोलज्यू चुप हो गए थे.

इस पर जगरिये ने मैदान में नरसिंहजी को उतारने के लिए अपन हुड़का और आसन जमा लिया, उधर नरसिंह जी भी अपनी बारी के इंतजार में सतर्क हो गए थे. अब यहां जो कहानी छंदों में सुनाई गई उससे मेरे कान खड़े हो गए. प्रहलाद की जगह ध्रुव को हिरणाकश्यप का लड़का बताकर हुड़के की थाप तेज कर दी गई. हुड़के की थाप के साथ बज रही थालियों पर नरसिंहजी ने ज्यादा इंतजार नहीं कराया और वे मित्र के अंदर दूसरी दुष्ट आत्मा पर पिल पड़े. काफी देर बाद उन्होंने यह मामला वैष्णो देवी की अदालत में डाल दिया. जगरिया फिर शुरू. वैष्णो माताजी ने भी ज्यादा वक्त नहीं लगाया और कुछ कोशिश करने के बाद उन्होंने यह मामला गोलज्यू की अदालत में सरका दिया.

दरअसल वैष्णो अवतरित होने वाली महिला वृद्व थी और इस उम्र में वे मित्र के भीतर की परमात्मा को ज्यादा डांट-फटकार भी नहीं सकती थी. जगरिये ने आसन बदल गोलज्यू की ओर देखा और कुछ पलों में ही मामला फिर से नरसिंह के दरबार में दे दिया. नरसिंहजी बीड़ी की फूंक में मस्त थे. और गांव-घरों में बीड़ी पीने को आम माना जाता है. कई घर-परिवारों में तो बूढ़ी आमा के साथ बच्चे भी बीड़ी के सुट्टे मारते रहे हैं. ये सब आम दिनचर्या का एक अघोषित हिस्सा बन गया ठैरा. 

अपनी बारी देख हड़बड़ाते हुए नरसिंहजी ने बीड़ी बुझाई और नृत्य करते हुए बैचेन सी नजरों से इधर-उधर अपने साथियों की ओर देखना शुरू किया तो जगरिये ने चीजों को समझ मामला अपने हाथ में ले लिया और तीनों देवात्माओं और भक्तगणों से रायशुमारी करनी शुरू कर दी. बकरी, मुर्गा देने की बात उठी.

अंत में सभी ने इस मामले पर छह माह तक के लिए ‘करार और बिट’ बांधने की एकमत राय बना ली. जगरिये ने फिर धीरे-धीरे सभी देवताओं को वापस उनके द्वार पहुंच दिया. आसन से मुक्त होते ही गोलज्यू ने फिर से बीड़ी सुलगा ली और जोर से कश मार राहत की जैसी सांस ली.

बाहर आंगन में चाय बनी. भक्तगण चाय पी धीरे-धीरे अपने दड़बों को सरक लिए. मैंने जगरिए से नरसिंह के अवतरण में प्रहलाद की जगह ध्रुव को घसीटने पर पूछा तो वो बड़ी ही मासूमियत से बोला, ‘मेरे बाबू मुझे यही सिखा गए तो मैंने तो वहीं करना हुआ न … कुछ उल्टा-सीधा हो गया तो देवता नाराज हो जाने वाले ठैरे हो…’

उसकी मासूमियत पर मैं सिर्फ मुस्करा ही सका. वह पांचवीं तक ही पढ़ा जो था.

दूसरे दिन मैंने मित्र के परिजनों को सलाह दी इसका इलाज करवाओ यह नशे का एडिक्ट हो गया है. उन्होंने मेरी बातों को अनसुना कर दिया. उनका मानना था कि जब उनके बेटे को देवता ने चावल फेंक खाट से हिला ऊपर तक बुला दिया तो वह ही ठीक करेगा.

मैं वापस लौट आया. हफ्ते भर में ही मित्र के परिजनों का फोन आया कि बेटा ज्यादा बीमार हो गया है, मदद करो. इस पर मैंने अपने मित्र महेश जोशी जी को फोन कर उन्हें परेशानी बताई तो वो भी सहर्ष गांव में आने को तैयार हो गए. महेशदा उस वक्त अल्मोड़ा में थे और मैं बागेश्वर से कोसी पहुंचा तो इंतजार करते मिले. गांव पहुंचे तो अंधेरा घिर आया था. सीधे मित्र के ही घर गए. एकबार उसे फिर पुरानी यादों में बहला-फुसला कर हल्द्वानी में इलाज के लिए मना ही लिया. दूसरे दिन बमुश्किल उसे हम सड़क तक की चढ़ाई में पैदल लाए. मेरी पीठ में उसने बैठने से मना कर दिया तो चचेरा भाई राजू और महेशदा ही उसे सहारा देकर सड़क तक लाए.  उसे लेकर हल्द्वानी गया और करीब चालीसेक दिन के इलाज के बाद वह स्वस्थ और प्रसन्न दिखने लगा. उसका नशा छूट गया था. उसे गांव पहुंचा, उसके परिजनों को मैं हंसते हुए सख्त हिदायत दे आया कि इसे नशे से दूर रखना नहीं तो फिर जागर लगानी पड़ेगी. 

अब ईजा-बाबू उसके रहे नहीं. उसकी ईजा जंगल से गाय-बैलों को घर ला रही थी तो एक संकरे से रास्ते में गाय बिदक गई और गाय के पांवों से बुरी तरह कुचल जाने पर वह बच नहीं सकी. दो-एक साल बाद गरीबी से तंग आ उसके पिता ने भी अपने जीवन से मुक्ति पा ली. उसकी पत्नी आंगनवाड़ी में है जिससे घर का खर्च चल जाने वाला हुआ. काफी लंबे वक्त से गांव जाना नहीं हो सका तो ज्यादा मालूम नहीं कि अब उनके हाल कैसे हैं. सिर्फ इतना ही पता चला कि उसकी बड़ी बेटी नर्सिंग में कहीं जॉब कर रही है. अब परिवार की दरिद्रता कुछ कम हो गई है.

वैसे मैं बैसी-जागर के पक्ष-विपक्ष में नहीं हूं, लेकिन जब आम समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हों तो यह सब तो बाद में भी हो सकने वाला हुआ. बैसी-जागर में बैठने वाला देवगण पूजा खत्म होने के बाद फिर अपने ही रौद्र रूप में लौट आने वाला हुआ. ज्यादातर के परिवारों में सिर्फ बैसी-जागर के दिनों तक ही शांति बनी रहने वाली हुई. देवगणों के धूनी से उठ वापस अपना चोला पहना नहीं कि घरों की छतें कांपनी शुरू हो जाने वाली हुई. 

परिवारजन बस ये सोचते रह जाते हैं, “काश! ये बैसी-जागर जिंदगी भर लगी रहती….”

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं. केशव काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

केशव भट्ट के अन्य यात्रा वृतांत यहां पढ़ें :

हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 1 बागेश्वर से लीती और लीती से घुघुतीघोल
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 2 गोगिना से आगे रामगंगा नदी को रस्सी से पार करना और थाला बुग्याल
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 3 चफुवा की परियां और नूडल्स का हलवा
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 4 परियों के ठहरने की जगह हुई नंदा कुंड
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 5 बिना अनुभव के इस रास्ते में जाना तो साक्षात मौत ही हुई
हिमालय की मेरी पहली यात्रा- 6 कफनी ग्लेशियर की तरफ
हिमालय की मेरी पहली यात्रा- 7 संतोषी माता का दिन और लालची मीटखोर
जिसकी तबीयत ठीक नहीं उसे ट्रेक का गाइड बना दो

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • पहाड़ से हु ।पहाडियत अभी तक समझ नही आई । लेखक का जगरिये ओर डंगरिये का मौन संवाद जागर का होना ओर न होना की तरफ एक व्यंग तो नही ।
    प्रबुद्ध पाठक कृपया अपने विचार व्यक्त करे क्या इन सब पर विस्वास किया जाय या न किया जाय ?

  • लेखक का अनुभव सत प्रतिसत हमारा भी है और मेरा इसमें विश्वास है कह नही सकता।

Recent Posts

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

10 hours ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

13 hours ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

5 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

7 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago