समाज

आज है लोकपर्व ‘खतड़ुवा’: मान्यता और मिथक

अमरकोश पढ़ी, इतिहास पन्ना पलटीं,
खतड़सिंग नि मिल,गैड़ नि मिल.
कथ्यार पुछिन, पुछ्यार पुछिन, गणत करै,
जागर लगै,बैसि भैट्य़ुं, रमौल सुणों,
भारत सुणों,खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल.
स्याल्दे-बिखौती गयूं, देविधुरै बग्वाल गयूं,
जागसर गयूं, बागसर गयूं,अलम्वाड़ कि
नन्दादेवी गयूं, खतड़सिंग नि मिल,गैड़ नि मिल. 

बंशीधर पाठक “जिज्ञासु”
(Khatarua Festival Uttarakhand)

बंशीधर पाठक “जिज्ञासु” की उक्त्त पंक्तियाँ लोकपर्व ‘खतड़ुवा’ की पर चली आ रही लम्बी बहस पर विराम लगाने को काफ़ी हैं. जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़े इस लोकपर्व के साथ जबरन जोड़े गये ऐतिहासिक दंभ को लोकगीतों में गाई जाने वाली मंगलकामनाओं के साथ छोड़ा जाना चाहिये:

औंसो ल्यूंलो , बेटुलो ल्योंलो , गरगिलो ल्यूंलो , गाड़- गधेरान है ल्यूंलो,
तेरी गुसै बची रओ, तै बची रये,
एक गोरू बटी गोठ भरी जाओ,
एक गुसै बटी त्येरो भितर भरी जौ…

इस लोकगीत में आज के दिन महिलायें अपने जानवरों के कुशलता के लिये गीत गाकर कह रही हैं. पशुओं की दुःख-बीमारियों को दूर रखने के लिए प्रार्थना करते हुये वह कह रही हैं –

मैं तेरे लिए अच्छे-अच्छे पौष्टिक आहार जंगलों व खेतों से ढूंढ कर लाऊंगी. तू भी दीर्घायु होना और तेरा मालिक भी दीर्घायु रहे .तेरी इतनी वंश वृद्धि हो कि पूरा गोठ (गायों के रहने की जगह) भर जाए और तेरे मालिक की संतान भी दीर्घायु हों.
(Khatarua Festival Uttarakhand)

भादों मास के अंतिम दिन गाय की गोशाला को साफ कर उसमें हरी नरम घास बिछाकर पशुओं को पकवान इत्यादि खिलाने की यह परम्परा इस पूरे क्षेत्र के लोगों के जीवन की सरलता की अभिव्यक्ति है.

नीचे दिये गये लिंक में जाकर पढ़िये कसी मनाया जाता है लोकपर्व ‘खतड़ुवा’:  आज है जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़ा पर्व खतड़ुवा

 ‘खतड़ुवा’ पर एक अन्य महत्वपूर्ण लेख यहां पढ़िये:

उत्तराखंड के लोकपर्व ‘खतड़ुवा’ पर एक महत्वपूर्ण लेख
(Khatarua Festival Uttarakhand)

काफल ट्री डेस्क

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