कल कुमाऊं में लोकपर्व खतड़वा मनाया जायेगा. आज भादो का आखिर दिन है. वर्षा ऋतु के बाद अब शरद ऋतु का आगमन होगा. स्वभाव से सरल कुमाऊं के लोग खतड़वा के दिन अपने गोठ में जानवरों के लिए हरी नरम घास बिछाकर पशुओं को पकवान खिलाते हैं.
(Khatarua Festival 2023 Kumaon Uttarakhand)
राज्य गठन के बाद ‘खतड़ुवा’ को लेकर एक प्रकार की बहस छिड़ी रहती है. इस बहस में लोकपर्व खतड़वा को एक ऐतिहासिक घटना से जोड़कर बताया जाता है. लोकपर्व खतड़वा को गढ़वाली और कुमाऊनी के बीच विवाद के रूप में देखे जाने के कारण सरकारें इस लोकपर्व से पल्ला झाड़ने की कोशिश करती दिखती हैं.
लोकपर्व ‘खतड़ुवा’ से जुड़ी बंशीधर पाठक “जिज्ञासु” की कविता की कुछ पंक्तियाँ की लम्बे समय से चली आ रही इस बहस पर विराम लगाने को काफ़ी हैं.
अमरकोष पढ़ो, इतिहासा पत्र पल्टी
खतड़सींग नि मिल, गैड़ नि मिल!
कथ्यार पुछिन, पुछ्यार पुछिन-
गणत करै, जागर लगा-
बैसि भैट्यूं, रमौल सुणौं भारत सुणौं-
खतड़सींग नि मिल, गैड नि मिल।
स्याल्दे बिखैति गयूं, देवधुरै बग्वाव गयूं,
जागसर गयूं, बागसर गयूं
अल्मोडै कि नंदेबी गयूं
खतड़सिंह नि मिल, गैड़ नि मिल!
तब मैल समझौ
खतड़सींग और गैड़ द्वी अफवा हुनाल!
लेकिन चैमास निड़ाव
नानतिन थैं पत्त लागौ-
कि खतडुवा एक त्यार छ-
उ लै सिर्फ कुमूंक ऋतु त्यार.
(Khatarua Festival 2023 Kumaon Uttarakhand)
खतड़ुवा से जुड़ा एक लोकगीत भी खूब गाया जाता है. जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़े इस लोकपर्व के दौरान गाये जाने वाले लोकगीत में मंगलकामना करते हुए कहा जाता है –
मैं तेरे लिए अच्छे-अच्छे पौष्टिक आहार जंगलों व खेतों से ढूंढ कर लाऊंगी. तू भी दीर्घायु होना और तेरा मालिक भी दीर्घायु रहे .तेरी इतनी वंश वृद्धि हो कि पूरा गोठ (गायों के रहने की जगह) भर जाए और तेरे मालिक की संतान भी दीर्घायु हों.
मूल कुमाऊनी में इस लोकगीत के बोल कुछ इस तरह हैं –
औंसो ल्यूंलो, बेटुलो ल्योंलो,
गरगिलो ल्यूंलो, गाड़-गधेरान है ल्यूंलो,
तेरी गुसै बची रओ, तै बची रये,
एक गोरू बटी गोठ भरी जाओ,
एक गुसै बटी त्येरो भितर भरी जौ…
(Khatarua Festival 2023 Kumaon Uttarakhand)
खतड़ुवा लोकपर्व पर एक अन्य लेख पढ़िए – उत्तराखंड के लोकपर्व ‘खतड़ुवा’ पर एक महत्वपूर्ण लेख
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