कभी हिमालयी गड़रियों का अन्वाल थौड़ अब मुनस्यारी और उत्तराखण्ड की शान बन चुका विख्यात पर्यटन स्थल है. खलिया बुग्याल उच्च हिमालयी क्षेत्र का बुग्याल है. यह मुनस्यारी हिल टाउन से 13 किमी की दूरी पर स्थित है. जिसमें सात किमी सड़क मार्ग व 6 किमी का पैदल ट्रैक कर पहुंचा जाता है. सड़क मार्ग से पंचाचूली पर्वत श्रृंखलाओं का आनन्द लेते हुए आप सात किमी दूर ईको पार्क तक पहुँचते हैं जहां पास में ही खलिया स्वागत द्वार भी है. (Khalia Top Munsyari)
इसके बाद शुरू होती है आपकी शारीरिक व मानसिक दृढ़ता और हिमालय प्रेमी होने का कठिन परीक्षा. खलिया जाने का एक अन्य पैदल मार्ग कालामुनी मन्दिर से भी है. बलाती बैंड खलिया द्वार से चार किमी की खड़ी चढाई वाला यात्रा मार्ग है. बांज, बुराँश, तिलोज, चिनार, अयार आदि के घने जंगलों से होते हुये यात्रा मार्ग के खडंजे पर चलते हुये बलाती आलू फार्म व मुनस्यारी शहर का नैसर्गिक नजारा मिलता है. पैदल मार्ग से आप भुजानी अल्पाइन रिजॉर्ट पहुँचते हैं, जो सदियों से अन्वाल थौड़ (चरवाहों का उत्क्रमण में किये जाने वाले पड़ाव स्थान) है.
वर्तमान में यहां सरकार द्वारा सुविधाजनक रिजॉर्ट, होटल का निर्माण कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है. अमूमन पहाड़ी गडरिये ही सच्चे हिमालय प्रेमी व प्रहरी होते हैं. हम आज की आभासी दुनिया से समय निकालकर भले अपनी हाजिरी लगाकर सेल्फी लिया करते हैं लेकिन पहाड़ी चरवाहों की तरह हिमालय प्रेमी व प्रहरी नहीं बन पाए हैं.
अलौकिक है मुनस्यारी का थामरी कुण्ड
जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती रहती है जलवायु के अनुसार वनस्पतियों में भी परिवर्तन होते रहते हैं. यह परिवर्तन आप खलिया यात्रा में भी महसूस करेंगे. भुजानी के बाद वनस्पति ना के बराबर ही देखने को मिलती है. यहाँ पर रातपा नस्ल के बुराँश के पेड़ पाये जाते हैं. ये अत्यधिक बर्फबारी की वजह से सीधे तने होने के बजाय झुके रहते हैं. इन पेड़ों में लाल-नीले बुराँश के छोटे फूल खिलते हैं. भुजानी के बाद टेढ़े-मेढ़े रास्ते से बुगी घाशो का दीदार शुरू होता है. उसके बाद आप अचैन ढुङ्ग (मांस काटने में प्रयोग होने वाला लकड़ी का गुटका) का दीदार कर उसमें चढ़कर कर फोटो व सेल्फी ले सकते हैं. इस जगह से आप मुन्स्यारी, तल्ला जोहार व कलामुनि मन्दिर के दर्शन करेंगे. यहां से खलिया बुग्याल की ओर रुख करने पर एक हिमालय मन्दिर मिलता है जहाँ पर यात्रियों, गडरियों द्वारा देवी माँ के सम्मान में अर्पित अगरबत्ती, नायच बाती व दाती ढुङ्ग (सफेद पारदर्शी पत्थर) दिखाई देते हैं. यहीं से शुरू होता है खलिया बुग्याल दर्शन, जो लगभग दस किमी के दायरे में फैला हुआ है. कैम्पिंग करने के लिहाज से सुविधाजनक क्षेत्र टाटी है. यह आज भी हमारे तल्ला जोहार व मुनस्यारी क्षेत्र और जिला बागेश्वर के गडरियों का पसंदीदा अन्वाल थौड़ है. यहां पानी व जलावन की लकड़ी भी नजदीक ही मिल जाते हैं. टाटी में कैम्पिंग के लिये एक साथ चालीस से पचास टैंट लग सकते हैं. टाटी से तीन किमी की दूरी पर है जीरो प्वाइंट. यहां से तल्ला जोहार के बिर्थी, गिरगाँव, डोर, क्वीटी, शामाधुरा आदि गाँवों का मनमोहक नजारा दिखाई देता है. जीरी प्वाइंट के बाद मंगरखली कुण्ड है, उससे लगा भीमबाड़ा. मान्यता है कि यहां भीम ने अज्ञात वास में अनाज की खेती की थी.
जाड़ों में यहां स्कीइंग का लुत्फ भी लिया जा सकता है. दिसम्बर से मई के दूसरे सप्ताह तक बर्फीले बुग्याल का आनन्द ले मिलता है. खलिया से पँचाचूली, हन्सलिंग, नन्दादेवी, नंदाकोट, मैकतोली अन्य हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं का नैसर्गिक सौन्दर्य का दीदार कर सकते हैं. उच्च हिमालयी बुग्याल होने के कारण यहां मोनाल, लौंग चुखर आदि पक्षी भी दिखाई देते हैं. वन्य जीव-जन्तुओं में घुरड़, कांकड़, भरल व शरद में हिम तेंदुआ भी दिखाई देता है. सफेद पूँछ वाली लोमड़ी,सेही, चुतरौल और हिमालयी चूहों का घर भी यहां है. (Khalia Top Munsyari)
जोहार घाटी में मिलम के करीबी गांव जलथ के रहने वाले प्रयाग सिंह रावत वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार में सेवारत हैं. हिमालय और प्रकृति के प्रेमी प्रयाग उत्तराखण्ड के उत्पादों और पर्यटन को बढ़ावा देने के कई उपक्रमों के सहयोगी हैं.
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1 Comments
ललित त्यागी
बहुत अच्छी जानकारी