केरल वर्तमान में बाढ़ की तबाही से जूझ रहा है. अब तक 370 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. 8000 घर पूरी तरह बह चुके हैं. 2600 घरों को नुकसान हुआ है. 7.8 लाख लोग वर्तमान में विस्थापित शिविर में हैं. केरल सरकार को 19,512 करोड़ का नुकसान हुआ है. 8000 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हो चुका है. सवाल है इतने भयानक नुकसान के लिये क्या केवल प्रकृति जिम्मेदार है?
केरल में अब तक बाढ़ से सर्वाधिक नुकसान 1924 में हुआ था. 1924 में 3,368 मिमी बारिश हुई थी जिसके कारण 1000 लोगों ने अपनी जान गवाई थी. 2018 में अभी तक केरल में 2,068 मिमी की बारिश हुई है जो पिछले वर्षों की वार्षिक औसत वर्षा से 30% अधिक है.
केरल बाढ़ से सर्वाधिक तबाही जिस जिले में हुई है वह इडुक्की जिला है. इडुक्की जिला पश्चिमी घाट के अत्यंत नजदीक है. इडुक्की जिले में कुल 12 बाँध हैं. जिनमें प्रमुख बाँध पेरियार नदी पर बने इडुक्की रिजर्व वायर के अंतर्गत आने वाले इडुक्की बाँध, चेरुथेनी बाँध और कुलामावु बाँध हैं. केरल में बाढ़ की शुरुआत इडुक्की रिजर्व वायर स्थित चेरुथेनी बाँध के पांचों गेट खोलने के साथ शुरू हुई.
केरल में बहने वाली कुल 44 नदियों में तीन नदियों को छोड़ अन्य सभी नदियां पश्चिमी घाट से निकलती हैं जिनमें 41 नदियां अरब सागर की ओर बहती हैं. केरल में स्थित नदियों में कुल 44 बाँध हैं. बाँध में रोके गये जल को अधिक बारिश होने के कारण इन बांधों से जल छोड़ा गया और बाढ़ की स्थिति उत्त्पन्न हो गयी. बाँध बनने से पूर्व इन नदियों का जल पश्चिमी घाट से होता हुआ अरब सागर में चला जाता था लेकिन अब बांध में रुका रहता है. बांधों के जल का उपयोग गर्मियों में किया जाता है.
तीन दशक पूर्व केरल में 8 लाख हेक्टेयर भूमि धान की खेती की जाती थी. वर्तमान में लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर भूमि में ही धान की खेती की जाती है. नदियों का जो जल पहले धान के खेत सोख लेते थे अब वह भूमि के उपर ही बह जाता है. बांधों के खराब प्रबंधन ने इस समस्या को अधिक जटिल बना दिया.
बिहार और बंगाल के बाद केरल जनसंख्या घनत्व के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है. केरल में जनसंख्या घनत्व 859 प्रति वर्ग किलोमीटर है. जो कि भारत के जनसंख्या घनत्व का लगभग दो गुना है. पिछले तीन दशक में केरल में नगरीकरण के तीव्र रूप से बढ़ने के कारण पेड़ो का भारी कटाव किया गया. बढ़ते नगरीकरण के कारण केरल में नदियों का रुख बदल दिया गया. खेती के क्षेत्रफल में आयी भारी कमी के कारण पानी सीधा बहने लगा. केरल में अचानक बड़ी बारिश का कारण जंगलों का भारी कटान है. जंगलों के भारी कटान जलवायु परिवर्तन का एक मुख्य कारण है. केरल में नगरीकरण किस खराब स्तर का हुआ है उसका अंदाजा बाढ़ क्षेत्र से पानी निकलने के बाद कचरे के ढेरों से पता चलता है.
2011 में पश्चिमी घाट के संबंध में बनी गाडगिल कमेटी ने पश्चिमी घाट पर अधिक बांध न बनाने की सलाह दी गयी थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ख़राब तरीके से बढ़ते नगरीकरण की आलोचना की थी. पश्चिमी घाट को पर्यावरण दृष्टिकोण से अत्यधिक संवेदनशील मानते हुए गाडगिल कमेटी ने पूरी तरह से मानवीय गतिविधियों को समाप्त करने की सलाह दी थी. कमेटी की सलाह को केंद्र और राज्य सरकारों ने सिरे से खारिज कर दिया था. इसके बाद कस्तूरी रंगन की रिपोर्ट के आधार पर पश्चिमी घाट क्षेत्र के 37% हिस्से को संरक्षित घोषित किया गया.
केंद्र सरकार ने केरल बाढ़ को गंभीर आपदा घोषित कर दिया है. जब किसी आपदा को गंभीर आपदा घोषित किया जाता है तो राज्य सरकार को राष्ट्रीय स्तर का समर्थन प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त केंद्र एनडीआरएफ़ की सहायता भी प्रदान करता है. केरल में 2.12 लाख महिलाओं और 12 साल से कम उम्र के एक लाख बच्चों सहित 10.78 लाख विस्थापित लोगों को 3,200 राहत शिविरों में आश्रय दिया गया है.
आज जिन कारणों को केरल में बाढ़ के लिये गिनाया जा राह है ठीक यही कारण कुछ साल पहले चेन्नई में बाढ़ के दौरान भी गिनाये जा रहे थे. क्या हमने चेन्नई बाढ़ से कुछ सीखा? क्या हम केरल की त्रासदी से कुछ सीखेंगे?
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