ज़रा सोचिए, गुरुदत्त और पंडित रविशंकर टहलने निकले हों और उन्हें सामने से आते सुमित्रानंदन पंत नजर आ जाएँ जो शाम की रिहर्सल के लिए गीत लिखकर लाए है. खुले मंच पर ज़ोहरा सहगल और उनकी फ्रेंच डांसर मित्र सिम्की को उस्ताद अलाउद्दीन खान गाने का रियाज़ करवा रहे हों और सामने से सिगार पीता कोई दढ़ियल अंग्रेज़ यूं गुज़र जाए जैसे उसने कुछ देखा-सुना ही नहीं. बाद में पता चले कि वह तो अर्ल ब्रूस्टर की स्नो व्यू कॉटेज में मेहमान बन कर रह रहा लेडी चैटर्ली की कहानी लिखने वाला विख्यात लेखक डीएच लॉरेंस था. नोबेल जीतने वाले गायक-कवि बॉब डिलन के अनेक बार कसारदेवी आ चुके होने की गवाही गेस्टहाउसों के रजिस्टरों देते हैं.
(Kasar Devi Almora Uttarakhand)
कसारदेवी की सड़कों-पगडंडियों पर यूं ही टहलते मुझे कई दफ़ा यह इलहाम होता है कि सामने दिखाई दे रहे नंदादेवी, त्रिशूल और पंचचूली के धवल शिखरों को घंटों ताकते हुए बॉब डिलन के मन में कितने सारे गीतों की कितनी सारी पंक्तियाँ उभरी होंगी. कसारदेवी और उसके आस-पास के चार-छह किलोमीटर के दायरे में कुछ तो बात है कि यहाँ पिछले अस्सी-नब्बे सालों से लगातार दुनिया भर के जीनियसों की आवाजाही लगी हुई है. इनमें से अनेक की तो यहाँ आकर जीवन-दिशा ही बदल गई. कुछ मील लंबी एक तकरीबन सीधी रिज पर बसा हुआ कसारदेवी अपनी अनोखी भौगोलिक स्थिति की वजह से पहली ही निगाह में भा जाने वाला स्थान है.
एक तरफ़ निगाह डालने पर पहले अल्मोड़ा नगर दिखाई देता है जिसके आगे एक-दूसरे पर पसरी हरे-नीले-सलेटी पहाड़ों की अनगिनत लड़ियाँ हैं. सुबह और शाम इन पर बादलों और कोहरे का तिलिस्म चला करता है. दूसरी तरफ़, पहाड़ों की ऐसी परतों के आगे हिमालय का विराट विस्तार नज़र आता है. अगर साफ़ दिन हो और आसमान नीला, तो गढ़वाल की चौखम्भा-केदार चोटियों से लेकर सुदूर नेपाल की आपी-नाम्पा तक फैला हुआ नगाधिराज का विशाल साम्राज्य सामने होता है. कसारदेवी का जंगल वाला हिस्सा हर मौसम में सौ रंग बदलता है. प्रकृति ऐसी खूबसूरती बहुत कम जगहों को बख्शती है.
मुझे यह कल्पना करना अच्छा लगता है कि 1930 के दशक के आख़िरी वर्षों में नृत्य-सम्राट कहे जाने वाले उदयशंकर ने जब कसारदेवी से सटे सिमतोला में अपनी डांस एकेडमी बनाई, उस समय यह छोटा-सा हिस्सा कैसी-कैसी देशी-विदेशी प्रतिभाओं से अटा रहा होगा.
जर्मन विद्वान अर्न्स्ट लोथार होफ़मान ने बाकायदा बौद्ध धर्म अपना लिया था और लामा की पदवी हासिल कर लामा अंगरिका गोविंदा के नाम से जाने जाने लगे थे. उन्होंने बम्बई में रहने वाली रैटी पैटी नाम की एक पारसी फोटोग्राफर महिला से शादी की और उन्हें ली गौतमी नाम दिया. इन दोनों ने मिलकर 1940 की दहाई के आख़िरी सालों में कसारदेवी में आर्य मैत्रेय मंडल की स्थापना की. उन दिनों तिब्बत में चीन की घुसपैठ शुरू हो चुकी थी. गौतमी और गोविंदा ने तिब्बती शरणार्थियों के लिए एक आश्रम की स्थापना भी की. उन्होंने अपनी रसोई में एक तिब्बती रसोइये को नियुक्त किया जिसकी सन्ततियां आज उनके घर में रहती हैं.
आध्यात्मिक खोज में कसारदेवी आने वालों में दो बड़ी हस्तियाँ और थीं -एक थे डेनमार्क से आए अल्फ्रेड सोरेन्सन और दूसरे इग्लैंड से आए रोनाल्ड निक्सन. ये दोनों असल मायने में साधु थे और दोनों ने हिन्दू धर्म को अपनाकर अपने नाम भी क्रमशः शून्यता बाबा और श्रीकृष्ण प्रेम रख लिए थे.
श्रीकृष्ण प्रेम ने बाद के वर्षों में जागेश्वर से कुछ दूर स्थित मिरतोला नाम की जगह पर एक आश्रम बनाया जहाँ उनके शिष्य अलेक्जेंडर फिप्स या स्वामी माधव आशीष ने आध्यात्म के अलावा खेती और पर्यावरण को लेकर बेहतरीन प्रयोग किए जिसकी वजह से उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया.
(Kasar Devi Almora Uttarakhand)
कसारदेवी का नाम दरअसल दूसरी शताब्दी में बनाए गए कसारदेवी मैय्या के एक मंदिर के कारण पड़ा है. कश्यप पर्वत पर बने इस पुराने मंदिर को लेकर एक अनुमान यह भी है कि ईसा से नौ सौ वर्ष पूर्व पश्चिमी एशिया से आये प्राचीन कासाइट सम्प्रदाय के अनुयायियों ने इस मंदिर की स्थापना की थी.
इसी समुदाय के नाम पर कसारदेवी का नाम पड़ा बताया जाता है. बताते हैं इसी मंदिर में साधना करते हुए स्वामी विवेकानंद को ज्ञान की रोशनी हासिल हुई.
इसी मंदिर के परिसर में विचार करते हुए हार्वर्ड और कैलिफोर्निया जैसे विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान पढ़ाने वाले बागी प्रोफेसर टिमोथी लियरी को मानवीय चेतना का आठ सर्किटों वाला मॉडल सूझा जिसके प्रसार-प्रचार के लिए उन्होंने साइकेडैलिक ड्रग्स के इस्तेमाल की पैरवी की. उनकी इस विचारधारा पर अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने यहाँ तक कहा कि टिमोथी लियरी अपने समय में अमेरिका का सबसे खतरनाक इंसान था.
टिमोथी लियरी को मानव चेतना का अन्तरिक्ष यात्री बताने वाले बीटनिक कवियों एलेन गिन्सबर्ग और गैरी स्नाइडर ने कितनी ही दफा कसारदेवी का रुख किया. मनोविज्ञान के ही क्षेत्र से दो बहुत बड़े नाम–राल्फ़ मैट्सनर और आरडी लैंग–भी कसारदेवी से लगातार जुड़े रहे.
दुनिया आए और वहां हॉलीवुड न आए. हो नहीं सकता. डैनी-के से लेकर नील डायमंड जैसे सितारों के जीवन में कसारदेवी मौजूद रहा है. डैनी-के की लड़की डीना ने तो कसारदेवी के ऐन बगल में स्थित डीनापानी में एक हस्पताल तक बनवाया. इस दौर की सुपरस्टार उमा थर्मन के शुरुआती बचपन का हिस्सा कसारदेवी में बीता है जहाँ उनके पिता रॉबर्ट थर्मन लामा अंगरिका गोविंदा के साथ ध्यान करते आते थे.
शुरुआत से ही स्थानीय लोगों की निगाह में कसारदेवी आने वाले गोरी चमड़ी वाले ज्यादातर लोग सैलानी थे जिन्होंने यहाँ आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले चरस और गांजे के आकर्षण में आना शुरू किया. ये नशीले पदार्थ 1960 के दशक के हिप्पी आन्दोलन की प्राणवायु का काम किया करते थे. ग्रामीणों की बातों में एक सीमा तक सच्चाई भी है. ऐसा नहीं कि यहाँ आने वाला हर विदेशी ज्ञान की तलाश में ही आया हो.
बहुत सारे ऐसे नशेड़ी भी थे जो महीनों तक गाँवों में कमरे किराए पर लेकर आनंद किया करते थे. कुछ अंग्रेज़ों ने तो स्थानीय लड़कियों से शादी तक कर ली और स्थाई रूप से कसारदेवी में ही बस गए. उनमें से कुछ अब भी दिखाई देते हैं कुछ पता नहीं कहाँ चले गए. जो भी हो इन लोगों ने कसारदेवी और उससे सटे माट, मटेना, गदोली, पपरसैली और डीनापानी जैसे कितने ही गाँवों की आबादी के लिए स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ का काम किया.
हिप्पी आन्दोलन के चलते कसारदेवी को एक ज़माने में हिप्पी हिल का नाम मिला, फिर उसे क्रैंक्स रिज कहा जाने लगा. 1970 से लेकर 2000 तक यह एक ऐसा अड्डा बना रहा जिसमें दुनिया भर के कलाकार, लेखक, कवि, संगीतकार, दार्शनिक और पत्रकार लम्बे अंतराल गुज़ारते थे. इनकी नागरिकता स्वीडन से लेकर अल्जीरिया और ऑस्ट्रिया से लेकर जापान तक कहीं की भी हो सकती थी. तमाम अड्डों पर चलने वाले उनके बहस-मुबाहिसों का स्तर किसी बड़े विश्वविद्यालय के वातावरण का अहसास दिलाता होगा.
मेरा एक जर्मन दोस्त था एरिक. वह साल में छह महीने कसारदेवी रहता था. यहाँ आने से पहले वह एक चक्कर बनारस के एक कारीगर के घर का लगाता था जिसे सितार बनाने में महारत थी. वह उस कारीगर से सितार बनाने के बाद बच गए तुम्बों के बेकार टुकड़ों को सस्ते दामों पर खरीद लाता था. कसारदेवी में उन छह महीनों में वह इन तुम्बों और पीतल-तांबे से तारों की मदद से एक या दो अफ्रीकी वाद्य यंत्र बनाया करता. वापस जाकर वह इन्हें जर्मनी में बेच आता जिससे अगले साल की कसारदेवी यात्रा का खर्च निकल आता.
(Kasar Devi Almora Uttarakhand)
कसारदेवी के चाय-कॉफ़ी के अड्डों पर अक्सर दिखाई दे जाने वाला पोलैंड का एक और आदमी है जिसका असल नाम क्रिस्टोफ़ स्ट्रेलेकी है. मोटरसाइकिल पर अक्सर दिखाई दे जाने वाला और सदा काले चमड़े की पतलून-जैकेट पहनने वाला यह कोई पचास साल का हैंडसम आदमी खुद को अनादि के नाम से सम्बोधित किया जाना पसंद करता है. वह अपनी मोटरसाइकिल पूरी मरम्मत खुद करता है और उसे मशीनों की बातें करना अच्छा लगता है.
जैसे-जैसे वह आप के साथ खुलने लगेगा आप हैरान होते चले जाएंगे वह जीवन के गूढ़तम रहस्यों पर कैसी आसानी से और कितने पुख्ता तरीके से बोलना शुरू करता है. बाद में आपको पता चलेगा अनादि की दर्ज़न भर किताबें प्रकाशित हैं और उसका अपना कल्ट है, पूर्वी एशियाई देशों में जिसके अनुयायियों की संख्या लाखों में है.
कोई पच्चीस साल पहले, जब कसारदेवी की बाज़ार में बस कुछ चाय के खोखे और गिनती की दुकानें हुआ करती थीं, मैंने सड़क किनारे एक चबूतरे पर उकडूँ बैठे एक बूढ़े अंग्रेज़ को छोटी बच्चियों के साथ गुट्टे खेलते देखा. बूढ़े ने कुर्ता-पाजामा पहना हुआ था और उसकी लम्बी सफ़ेद दाढ़ी थी. मैंने जिज्ञासा प्रकट की तो मेरे स्थानीय मित्र ने कहा, “बिनसर में रहता है बुढ्ढा! कभी-कभी कसारदेवी की तरफ भी आ जाता है. ख़ब्ती है!”
मुझे उस बूढ़े से बातें करनी चाहिए थी क्योंकि कुछ साल बाद मुझे पता लगा वह बूढ़ा और कोई नहीं फ्लोरेंस का रहने वाला मशहूर इटैलियन पत्रकार-लेखक तिज़ियानो तरजानी था जो जीवन के आख़िरी वर्षों में जीवन का रहस्य तलाशने कसारदेवी-बिनसर आ बसा था.
एक पत्रकार के बतौर चालीस सालों तक एशिया के चप्पे-चप्पे में घूम चुके इस शानदार खब्ती इंसान ने एक से एक किताबें लिखीं. वह जहाँ-जहाँ रहा उसने वहां के जीवन-भोजन-वस्त्र को अपना लिया और बेहतरीन रिपोर्टिंग की.
रूसी महासंघ के छिन्न-भिन्न होने को विषय बनाकर लिखा गया संस्मरण ‘गुडनाइट मिस्टर लेनिन’ उसकी शैली का एक शानदार नमूना है. अपनी आख़िरी किताब ‘द एंड इज़ माय बिगिनिंग’ में वे अपने बेटे से कहते हैं, “असली गुरु न किसी वन में होता है न किसी झोपड़ी में, न हिमालय की किसी बर्फीली गुफा में. वह हमारे भीतर होता है.”
(Kasar Devi Almora Uttarakhand)
पिछले कुछ वर्षों में कसारदेवी को लेकर एक अलग तरह की बात इंटरनेट पर प्रचारित की जाने लगी है. कई बार इस बात को नासा के हवाले से बताया जाता है कि कसारदेवी पृथ्वी के एक विशाल चुम्बकीय क्षेत्र के ऊपर बसा हुआ है जिसे धरती की ‘वान एलेन बेल्ट‘ कहा जाता है.
ये भी कहा जाता है कि इस वजह से इस समूचे इलाके में एक अद्वितीय कॉस्मिक ऊर्जा का संचार होता है जिसकी मिसाल दुनिया में सिर्फ दो और जगहों पर मिलती है – इंग्लैंड के स्टोनहेंज में और पेरू के माचूपिच्चू में.
वैसे सच ये है कि इस बाबत न तो नासा की वेबसाइट में कोई ज़िक्र मिलता है, न ही ये पता चलता है कि यह अफ़वाह सबसे पहले किसने उड़ाई. यह और बात है कि कसारदेवी की बात करने वाली हर पर्यटन-वेबसाइट में इस तथाकथित तथ्य को खूब बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है.
मैं पिछले तीस सालों से कसारदेवी जा रहा हूँ. हर दफा किसी न किसी बुज़ुर्ग, ग्रामीण या पर्यटक से कोई न कोई ऐसी कहानी मिल जाती है जिसे मैंने पहले सुना नहीं होता.
(Kasar Devi Almora Uttarakhand)
–अशोक पांडे
अशोक पांडे का यह लेख बीबीसी हिन्दी से साभार लिया गया है.
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बहुत ही मनमोहक स्थान है शांत प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को यहां की शीतल पवन द्वैत को अद्वैत बनाने की क्षमता रखती हैं। दैविक शक्तियों को ही दैविक शक्तियां अपनी ओर आकर्षित करती हैं।ये स्थान मां का वरदान है।
मां कसार देवी को शत् शत् नमन । 🙏🙏🙏🙏🙏
कसारदेवी मेरा भी प्रिय स्थान है। एक साल पप्परसली रहा हूं। मुक्ति दत्ता के दीनापानी हॉस्पिटल में काम करता था।जीवन के रहस्य को खोजने वालों को इस स्थल से सहायता मिलती है,ऐसा में भी मानता हूं। तभी तो विवेकानंद यहां रुके थे।
अल्मोड़ा से मैंने एक जुड़ाव अनुभव किया है। इसकी एथनीसिटी से हमारी संस्कृति की सुगंध आती है।
पांडे जी आपका लेखन प्रभावित करता है।