कमल जोशी उत्तराखंड के सबसे प्रतिभावान फोटोग्राफरों में से थे. अपने जीवन के अधिकाँश वर्ष उन्होंने कुमाऊँ-गढ़वाल के पहाड़ों को छाना और अपने कैमरे की मदद से उसकी पीड़ा को दर्ज किया. कमल ने फोटोग्राफी के अलावा यात्रावृत्त और कविता लेखन में भी हाथ आजमाया. उनकी अनेक अखबारी रिपोर्ट्स देश के बड़े प्रकाशनों में छपीं और चर्चित रहीं. (Kamal Joshi Uttarakhand Photos)
दो वर्ष पहले कमल की आकस्मिक मृत्यु के कारण समूचा उत्तराखंड स्तब्ध रह गया था. कमल अपने पीछे अपने काम का एक बड़ा जखीरा छोड़ गए जिसमें असंख्य फोटोग्राफ और स्लाइड्स के अलावा उनका बहुत सारा लेखन शामिल है. (Kamal Joshi Uttarakhand Photos)
आने वाली 3 जुलाई को देहरादून में कमल जोशी की पुण्यतिथि के दिन उनके यात्रा वृत्तांतों का संकलन एक पुस्तक ‘ चल मेरे पिठ्ठू दुनिया देखें’ के रूप में प्राकशित होना है. पुस्तक का विमोचन एक समारोह में किया जाने वाला है जिसमें देश भर के अनेक नामी-गिरामी बुद्धिजीवी हिस्सेदारी करने वाले हैं.
पुस्तक का सम्पादन कमल की अन्तरंग सहयोगी रहीं गीता गैरोला ने किया है जबकि प्रकाशन देहरादून के समय साक्ष्य प्रकाशन ने किया है.सामान्य पाठकों के लिए पुस्तक बहुत जल्द बाजार में होगी.
कमल जोशी के यात्रा वृत्तांतों में उत्तराखंड के पहाड़ों की एक अनदेखी तस्वीर उभर कर सामने आती है जिसमें हम सब के साझा दर्द और खुशियों को वाणी मिली है. ‘पहाड़’ संस्था द्वारा किये गए असकोट-आराकोट अभियान हों, चाहे दारमा-व्यांस घाटी के मुश्किल सिन ला दर्रे की चढ़ाई हो या गढ़वाल के दुर्गम और बीहड़ चरागाहों-शिख्स्रों की यात्रा, कमल ने सभी में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने अनुभवों को शब्दों में दर्ज किया. इस लिहाज से कमल की इस पुस्तक ‘ चल मेरे पिठ्ठू, दुनिया देखें’ का प्रकाशन उत्तराखंड के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है.
कमल जोशी को याद करते हुए आज हम आपको उनके द्वारा खींची गयी पहाड़ी चेहरों की फोटो की एक सीरीज दिखा रहे हैं:
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…
देह तोड़ी है एक रिश्ते ने… आख़िरी बूँद पानी का भी न दे पाया. आख़िरी…