मैती शब्द का शाब्दिक अर्थ यूं तो मायके वाला होता है पर इस शब्द का एक विशिष्ट अर्थ अत्यंत प्रिय या दिल के क़रीब रहने वाला भी होता है. इस बार गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री से सम्मानित कल्याण सिंह रावत भी उपनाम मैती लिखते हैं और मैती के नाम से खूब लोकप्रिय भी हैं. कल्याण सिंह रावत की ख्याति एक पर्यावरणविद् के रूप में है खासकर उनके द्वारा शुरू किए गए मैती आंदोलन को लेकर. गौरतलब ये कि मैती को आंदोलन कल्याण सिंह रावत ने स्वयं कभी नहीं कहा. आंदोलन जैसा कुछ करना उनका अभीष्ट भी नहीं था. वन-अधिकारी के घर में चमोली में नौटी-बैनोली के सुरम्य हरित-अंचल में जन्म लेने से वन व प्रकृति से उन्हें स्वाभाविक अनुराग था. छात्र जीवन में ही उन्होंने विश्वप्रसिद्ध चिपको आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था. Kalyan Singh Rawat
गढ़वाल-कुमाऊँ के संधिस्थल ग्वालदम में शिक्षक रहते हुए उन्होंने अपने छात्र-छात्राओं में भी अपने अनुराग के संस्कार विकसित करना प्रारम्भ किया. ग्वालदम में ही 1995 में उनके द्वारा मैती आंदोलन की शुरुआत की गयी. इसके लिए उन्होंने कई एंगल्स से काम किया जिनमें से एक एंगल ये भी था कि विवाह के अवसर पर दुल्हन अपने पति के साथ मिलकर, यादगार-स्वरूप एक पौधे का रोपण करे. दुल्हन की अविवाहित सहेलियां उस पौधे की देखभाल करें और दुल्हन के पति के द्वारा सहेलियों को एक छोटी सी धनराशि एक बड़े उद्देश्य के लिए दी जाती है. बड़ा उद्देश्य अर्थात पर्यावरण-संरक्षण जो इस तरह के छोटे-छोटे प्रयासों से ही पूर्णता प्राप्त करता है. मैती नाम से लोकप्रिय ये पहल देखते ही देखते पूरी पिण्डर घाटी के विवाह समारोह का आवश्यक अंग बन गयी और बाक़ायदा शादी के कार्ड में इसका उल्लेख भी होने लगा. धीरे-धीरे मैती-पौधरोपण की ये खूबसूरत, समाजोपयोगी रस्म देश-प्रदेश के साथ विदेशों में भी खूब लोकप्रिय हुई और अंगीकृत भी की गयी.
मैती-पौधरोपण रस्म ने जूता-चुराई रस्म का एक तार्किक और भावुक विकल्प भी प्रदान किया. जहाँ जूता-चुराई में दूल्हा बेमन से मजबूरी के भाव में दुल्हन की सहेलियों को उनकी डिमांड के हिसाब से पैसे देता था वहीं मैती-पौधरोपण और देखभाल के लिए वो स्वेच्छा से उदारतापूर्वक आभार प्रकट करते हुए खुशी-खुशी, सहेलियों को पैसे देकर, गर्व और संतोष की अनुभूति के साथ दुल्हन संग वैवाहिक जीवन शुरू करने लगा. मैती आंदोलन को मायके तक ही सीमित नहीं रखा गया है बल्कि दुल्हन के ससुराल में भी जलस्रोत पूजन के अवसर पर भी नवदम्पति के हाथों एक पौधा रोपित किया जाता है. इसका लाभ ये है कि जलस्रोत पूजन जहाँ रस्मी तौर पर ही हो रहा था वहीं पौधारोपण से प्राकृतिक स्रोतों के रिचार्ज होने की संभावना भी बढ़ रही है. मैती के प्रणेता कल्याण सिंह रावत बताते हैं कि हर दम्पति चाहता है कि उनकी संतति को उनकी तरफ से बेहतरीन उपहार मिले. शुद्ध प्राणवायु से बढ़कर और क्या उपहार हो सकता है जिसकी सुनिश्चितता दम्पति दो घरों में पौधरोपण करके कर देते हैं. Kalyan Singh Rawat
2015 तक मैती आंदोलन के तहत दो दशकों में ढाई लाख से अधिक पौध रोपित हुए जो वृक्षों के रूप में पल्लवित हो चुके हैं. विवाह-संस्कार से अलग पृथक रूप से मैती वनों की स्थापना भी मैती सदस्यों के द्वारा की गयी है. इनमें प्रमुख रूप से पिछली दो नंदा राजजातों के अवसर पर नंदासैंण में दस हजार बाँज व अन्य चैड़ी पत्ती वाली प्रजातियों के पौधों का रोपण कर श्रीनंदा मैती वन की स्थापना की गयी है. रामधार तथा बैनोली गाँवों में मैती पितृ वन तथा बधाणगढ़ी में कारगिल शहीदों की स्मृति में शौर्य वन की स्थापना भी की गयी है. आंदोलन को समाज से और गहराई से जोड़ने के उद्देश्य से मेलों से भी सफलतापूर्वक जोड़ा गया है. जहाँ सरकार सहायता से आयोजित मेलों को औद्योगिक एवं विकास मेलों के रूप में आयोजित होते थे वहीं टीम मैती की पहल पर इन्हें पर्यावरण व विकास मेला का नया सार्थक नाम मिला. ऐसे मेलों में पर्यावरण व विकास मेला नंदासैंण चमोली, श्रावणी पर्यावरण मेला असेड़-सिमली चमोली, पर्यावरण मेला हंसकोटी चमोली, इन्दिरा गांधी पर्यावरण, खेलकूद एवं सांस्कतिक मेला राजगढ़ी उत्तरकाशी, पर्यावरण-स्वच्छता मेला कोट भ्रामरी, डंगोली बागेश्वर प्रमुख हैं.
मैती आंदोलन की अन्य प्रमुख उपलब्धियों में –
1. वन अनुसंधान संस्थान के शताब्दी वर्ष (2006) के अवसर पर ऐतिहासिक सम्मान समारोह आयोजित किया गया. इसमें प्रदेश के बारह लाख बच्चों द्वारा पर्यावरण संरक्षण संकल्प हस्ताक्षरित दो किमी लम्बे हरे कपड़े से संस्थान के मुख्य भवन को आवृत किया गया.
2. टोंस घाटी में स्थित एशिया के सबसे ऊँचे चीड़ वृक्ष के टूटने पर उसी प्रजाति की नयी पौध रोपित की गयी तथा जनसहभागिता से टूटे वृक्ष का जलाभिषेक कराया गया.
3. टिहरी बाँध के कारण जलमग्न पुरानी टिहरी शहर के 35 ऐतिहासिक स्थलों से मिट्टी को एकत्र कर गढ़वाल विश्वविद्यालय परिसर बादशाहीथौल टिहरी में पौधरोपण हेतु बनाए गए गड्ढों में स्थानान्तरित किया गया. इस तरह पुराने शहर से भावनात्मक लगाव रखने वाले लोगों को उसकी जीवंत व चिरस्थाई्र यादगार दिलायी गयी.
4. वन्य जंतु संरक्षण के उद्देश्य से वन्य जीव ज्योति यात्राओं का आयोजन वन विभाग के सहयोग से किया गया. इन यात्राओं में कार्बेट-नंदादेवी, नंदादेवी-देहरादून, असकोट-देहरादून व पुरोला-देहरादून वन्य जीव ज्योति यात्रा प्रमुख हैं. ु विभिन्न जगहों पर वन्य जंतु संरक्षण शिविर भी आयोजित किए गए हैं.
5. उत्तरकाशी स्थित राजगढ़ी व चमोली स्थित ग्वालदम में देवदार व अन्य प्रजाति की नर्सरी तैयार कर स्थानीय लोगो को चालीस हजार से अधिक पौध वृक्षारोपण हेतु निःशुल्क प्रदान की गयी हैं.
6. बदरीनाथ मन्दिर की उपरी ढलान पर माणा गाँव की मैती महिलाओं के सहयोग से 5000 भोजपत्र की पौध रोपित की गयी.
7. नंदा राजजात आयोजन के पश्चात वेदिनी बुग्याल में कैम्प लगाकर यात्रियों द्वारा छोड़े गए प्लास्टिक व अन्य कूड़ें को एकत्र कर निस्तारित किया गया.
8. वर्ष 1995 में गढ़वाल तथा कुमाऊँ विश्वविद्यालयों के रजत स्थापना समारोह के अवसर पर नैनारथ व नंदारथ यात्राओं का आयोजन किया गया. मैती संगठन के नेतृत्व में दोनों विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने परस्पर एक-दूसरे के विश्वविद्यालय परिसर में वृक्षारोपण किया.
9. 25 जुलाई 2010 को श्रीदेव सुमन जयंती के अवसर पर उŸाराखण्ड सरकार के साथ मिलकर एक घण्टे के अन्तर्गत पूरे राज्य में बारह लाख उनसठ हजार पौधौं का ऐतिहासिक रोपण किया गया.
10. त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों से विजय के उपलक्ष में वर्ष 2007 में सम्बंधित प्राथमिक विद्यालय में विकास के संकल्प के साथ राज्य भर में एक हजार छः सौ पौध रोपित किए गए.
11. पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों के लिए 1998 में मैती सम्मान प्रारम्भ किया गया. अद्यतिथि तक डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों को मैती सम्मान दिया जा चुका है.
इसी 3 अप्रैल को मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत को राष्ट्रपति भवन के विज्ञान भवन में पद्मश्री से सम्मानित किया जाना प्रस्तावित था. फिलहाल कोरोना वायरस प्रकोप के कारण ये कार्यक्रम स्थगित किया गया है. पद्म पुरस्कारों के इतिहास में पहली बार चुनिंदा पुरस्कृतों पर दूरदर्शन द्वारा डाक्यूमेंट्री भी बनायी जा रही है जिनका प्रदर्शन पुरस्कार वितरण के समय किया जाएगा. कुछ ही दिन पहले मुम्बई से आयी दूरदर्शन की टीम ने देहरादून व मैती से जुड़े अन्य पहाड़ी स्थलों पर शूटिंग की है. कल्याण सिंह रावत का पैतृक गांव बैनोली की ख्याति, गढ़वाल की राजधानी चाँदपुर के समय से ही काष्ठ-शिल्पकारों के लिए सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक रही है. अब इस गाँव के खाते में पद्मश्री सम्मान भी आ गया है पर निर्जीव काष्ठ के लिए नहीं बल्कि पौधरोपण और वन-संरक्षण के जरिए धरती के हरियाले आँचल के विस्तार के लिए. ये भी गौरतलब है कि कल्याण सिंह रावत को ये सम्मान मैती आंदोलन की स्थापना के रजत जयंती वर्ष में मिल रहा है. Kalyan Singh Rawat
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1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी अंगरेजी में परास्नातक हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं.
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