हरु की मां का नाम कालीनारा था. कालीनारा राजा निकदर की बेटी थी. मकर संक्रांति के मौके पर देव, जोगियों और भक्तजनों को कुम्भ स्नान के लिए जाता हुआ देख उसके मन में भी गंगा स्नान की इच्छा पैदा हुई. उसने अपने सभी परिजनों से इसकी अनुमति चाही लेकिन सबने उसे अकेले स्नान के लिए जाने से मना कर दिया.
(Kalinara Mother of Haru Saim)
आखिर में वह अपने छोटे भाई की पत्नी के पास गयी और कहा उसने भी उत्तर दिया- नानिज्यू! पुरुष यात्रियों के साथ यात्रा मार्ग पर अगर पापाचरण हुआ तो अनर्थ हो जाएगा. तब राजकुमारी कालीनारा ने उसे आश्वासन दिया कि मैं बूढों को बुबू, उनसे छोटों को बौज्यू, अपने से बड़ों को दाज्यू और छोटों को भाई कहूंगी. ऐसे मैं किसी प्रकार का पापाचरण नहीं होगा. इस पर घर की छोटी बहू ने उसे यात्रा पर जाने की अनुमति दे दी.
कालीनारा ने डनेरुओं (पालकी धोने वालों) को बुलाया और डांडी में बैठकर गंगास्नान के लिए चल पड़ी. दुर्भाग्य से हरिद्वार पहुँचने पर वह रजस्वला हो गयी. पांचवें दिन वह कमर तक के गहरे गंगाजल में स्नान कर रही थी. उसी समय सूर्योदय हो गया और सूर्य की किरणों से वह गर्भवती हो गयी.
कालीनारा को लगा कि अनजाने ही मुझसे यह पाप हो गया है, अब मैं कौन सा मुंह लेकर घर वापस जा सकूंगी. इसलिए यही जीवन ख़त्म कर देना जरूरी है. उसने गंगाजी में छलांग लगा दी, लेकिन गंगा दो फाटों में बंट गयी. इसके बाद उसने एक पहाड़ की चोटी से कूदकर जान देने की कोशिश की लेकिन धरती की गोद ने उसे संभाल लिया. अब वह जंगली जानवरों का ग्रास बनने के लिए जंगलों की तरफ चल दी. लेकिन किसी भी हिंसक जानवर ने उसे आंख उठाकर तक नहीं देखा.
(Kalinara Mother of Haru Saim)
भटकते हुए वह बाबा गोरखनाथ के आश्रम पहुंच गयी. उस समय बाबा गोरखनाथ समाधि पर थे. आश्रम की धूनी ठंडी पड़ी हुई थी और फुलवारी सूख गयी थी. कालीनारा ने धूनी सुलगाई और फुलवारी कू सींचकर हरा-भरा कर दिया. समाधि पूरी होने की बाद बाबा यह देखकर बहुत खुश हुए. बाबा सोचने लगे कि इस वक़्त ऐसे भक्तिभाव वाले व्यक्ति की हर इच्छा में पूरी कर दूंगा.
इसी समय कालीनारा उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी और कहा — बाबा आप कृपालु हो, इसलिए मुझे मृत्यु का वरदान दो. मैं पापिन इस कलंकित जीवन से मुक्ति पाना चाहती हूं. बाबा गोरखनाथ ने ध्यान-योग की ताकत से सारा मामला देख-समझ लिया था. उन्होंने कालीनारा से कहा — तूने कोई पाप नहीं किसी है. ये सब देवों की योजना है.
बाबा गोरखनाथ ने कालीनारा के लिए अलग से एक पर्णकुटी बनवा दी. कालीनारा नियमों का पालन करती हुई वहां रहने लगी.
गर्भ का समय पूरा होने के बाद गर्भ में ठहरा बालक कालीनारा से बोला — मां मैं किस रास्ते से बाहर आऊँ? मां ने उसे सृष्टि के सामान्य नियम का पालन करने को कहा. इस पर हरिचंद ने कहा कि मेरा आना सृष्टि की सामान्य प्रकिया नहीं है अतः मैं उस नियम का पालन नहीं करुंगा. उसने अपनी माता से दाहिना हाथ ऊपर उठाने को कहा. तब अयोनिज रूप से कुक्षी मार्ग से हरिचंद का जन्म हुआ.
(Kalinara Mother of Haru Saim)
शिशु के जन्म के बाद माता बाबाजी से शिशु का ध्यान रखने की बात कहकर छयाला स्नान के लिए गंगाजी में चली गयी. उस गंगा घाट पर लटुआ मसान रहता था. जब बालक हरिचंद को लगा कि मसान उसकी मां को खा जाएगा तो वह भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा. घाट पर पहुंच जब कालीनारा प्रसव के वस्त्र धो रही थी तो मसान ने उस पर हमला कर दिया. यह देखकर बाला हरु उछलकर मसान की गर्दन पर सवार हो गया. उसने मसान के लम्बे बालों को पकड़कर घोड़े की तरह इधर-उधर घुमाया और मार दिया. नहाने और कपड़े धोने के बाद कालीनारा बालक को लेकर आश्रम की ओर चल पड़ी.
उधर आश्रम में बालक का ध्यान आने पर बाबा ने देखा कि वह गायब है. तब गोरखनाथ ने कुशा घास के तिनके को अमृत में भिगोकर एक शिशु को निर्मित कर दिया.
जब कालीनारा हरु को लेकर आश्रम पहुंची तो वहां भी एक बालक को देखकर हैरान रह गयी. उसने बाबा से बालक के बारे में पूछा तो बाबा ने कहा — यह भी तेरा ही पुत्र है. जो जन्म से ज्येष्ठ है वह ‘हरु’ कहलायेगा और कर्म का श्रेष्ठ ‘सैंम.’
(Kalinara Mother of Haru Saim)
कालीनारा ने 6 महीने तक मन लगाकर दोनों बच्चों का लालन-पालन किया और उसके बाद उन्हें बाबा के संरक्षण में छोड़कर खुद इंद्र की सेवा में चली गयी.
बाबा गोरखनाथ ने उन्हें सभी विद्याओं में पारंगत किया और एक दिन उन्हें सोया छोड़कर तपस्या करने निकल पड़े. सुबह बालकों को जब गुरु दिखाई नहीं दिए तो वे उन्हें जंगल-जंगल धुन्धने लगे. थक-हारकर दोनों बालक शाम को भूखे-प्यासे ही सो गए. रात को सपने में उनकी माता कालीनारा ने उन्हें अपनी बहन के वहां हंसुलीगढ़ के लिए निकलने को कहा. दोनों भाई वहां जाकर अपनी मौसी के वहां रहने लगे.
(Kalinara Mother of Haru Saim)
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)
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