शेरदा चले गये. मेरा उनका वर्षों साथ रहा. सचमुच वे अनपढ़ थे. यदि अनपढ़ नहीं होते तो इतनी ताजी उपमाएँ कहाँ से लाते? कहाँ से वह पीड़ा लाते जो उनकी कविता के ‘हरे गौ म्यर गौं’ में व्यंजित है. कहाँ से वह आग निकलती जो उनकी कविता के ‘तू चित जगूने रये, मैं फोंछिन खेलने रऊँ’ में दिखाई देती है. जिसकी तुलना केवल अंग्रेज कवि शेली की कविता ‘मॉब आफ ऐनार्की’ से की जा सकती है. ‘पार्वती को मैतुड़ा देश’ तो कालिदास को भी पीछे छोड़ देती है. इस कविता में ‘पार्वती को मैतुड़ा देश मेरो मुलुक कतु छ प्यार, डानकना में ज्यूनि हँसे छ, स्वर्ग बटी चै रूनी तारा’ ही नहीं अन्य पंक्तियों में भी प्रकृति का मानवीकरण देखने लायक है. Kalidas of Kumaon by Tara Chandra Tripathi
पेट की आग को बुझाने के लिए शेरदा ने गीत नाट्य प्रभाग में नौकरी की. यहीं से जनरुचि की मंचीय कविताओं का सृजन करने से आम जनता उन्हें हास्य रस के कवि मानने लगी. फलतः शेरदा के भीतर छिपा महान कवि मंचीय कविताओं के कुहासे में खो गया. Kalidas of Kumaon by Tara Chandra Tripathi
उनकी कविताएँ कहीं एक जगह पर एकत्र नहीं थीं. कुछ वर्ष पूर्व डा. प्रयाग जोशी के आग्रह पर उन्होंने अपनी कविताओं को खोजना और भूली बिसरी कविताओं को फिर से याद कर संकलित करना आरंभ किया. फलतः उत्तराखंड को ’शेरदा समग्र’ के रूप में उनकी कविताओं का संग्रह उपलब्ध हुआ.
इस ग्रन्थ की पांडुलिपि का आद्योपान्त अध्ययन करने के बाद मुझे लगा कि यह एक ऐतिहासिक अमूल्य संग्रह है पर इसमें शेरदा का मूल कवि मंचीय कविताओं के कुहासे में कहीं खो गया है. अतः मैंने उनसे बार-बार अनुरोध किया कि वे अपनी सबसे प्रिय और चुनी हुई रचनाओं का अलग से संकलन प्रकाशित करें. सौभाग्य से यह संकलन प्रो. शेरसिंह बिष्ट द्वारा लिखित विस्तृत भूमिका के साथ ‘शेरदा संचय’ के नाम से प्रकाशित हुआ. इसमें वे कविताएँ संकलित हैं जो शेरदा को विश्व के प्रथम श्रेणी के कवियों में स्थापित कर सकती है.
वे चले गये. उनके साथ कुमाऊनी कविता का एक युग समाप्त हो गया. वह युग एक गरीब घर के वर्षो तक होटलों में बर्तन मलते रहे, सेना के ट्रकों की ड्राइवरी करते रहे, पेट की आग को बुझाने के लिए बेमन से सरकारी योजनाओं पर कविता लिखने के लिए विवश और रंगमंच की वाहवाही से भ्रमित होकर ‘चपल के ल्याछा यस’ जैसी अनेक कविताओं को लिखने के लिए प्रेरित होने के बाद भी अपनी अस्मिता को बरकरार रखने वाले अनपढ़ व्यक्ति की देन है. Kalidas of Kumaon by Tara Chandra Tripathi
शेरदा और शैलेश मटियानी समान परिस्थितियों से उठ कर साहित्य के आकाश में चमकने वाले ऐसे नक्षत्र हैं जो साहित्य के आकाश में सदा देदीप्यमान रहेंगे.
उनकी स्मृति को शत शत प्रणाम.
-ताराचन्द्र त्रिपाठी
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27 जनवरी 1940 को जिला नैनीताल के ग्राम मझेड़ा में जन्मे तारा चन्द्र त्रिपाठी पेशे से अध्यापक रहे. उत्तराखंड के इतिहास और सामाजिक विशेषताओं के मर्मज्ञ त्रिपाठी जी की अनेक रचनाएं प्रकाशित हैं जिनमें प्रमुख हैं – उत्तराखंड का ऐतिहासिक भूगोल, मध्य हिमालय: भाषा लोक और स्थान-नाम, कोहरे के आर पार, टोक्यो की छत से, महाद्वीपों के आर पार, और आधी रात के सोर. फ़िलहाल हल्द्वानी में रहते हैं और उनकी इस आयु में भी उनकी रचनात्मक ऊर्जा और सक्रियता युवाओं की ईर्ष्या का विषय बन सकती है.
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