1780 का साल रहा होगा. गढ़वाल और कुमाऊं दोनों जगह राजगद्दी को लेकर आंतरिक संघर्ष जारी था. कुमाऊं में ललितशाह अपनी दुसरी पत्नी के बड़े बेटे प्रदुम्नशाह को शासक नियुक्त कर चुके थे. ललितशाह की मलेरिया से मौत के बाद श्रीनगर की गद्दी उनकी पहली पत्नी क्यूंठली के बड़े बेटे जयकीर्ति शाह के हाथ लग चुकी थी.
(Joshiyani Kand History of Uttarakhand)
गद्दी को लेकर दोनों ही भाइयों के हृदय में एक-दूसरे के लिये सिवा द्वेष के कुछ न था. प्रद्युम्नशाह ने जयकीर्ति शाह पर उसके गद्दी पर बैठने के कुछ वर्षों बाद ही आक्रमण कर दिया था. कपरौली के युद्ध में प्रद्युम्न शाह ने जयकीर्ति शाह को पराजित किया था. सिरमौर के राजा जगतप्रकाश की मदद से जयकीर्ति शाह ने जैसे-तैसे अपनी गद्दी संभाल ही ली पर उससे यह गद्दी ज्यादा दिन तक संभल न सकी.
जयकीर्ति शाह द्वारा कुमाऊं को गढ़वाल साम्राज्य हिस्सा मानकर प्रद्युम्न शाह से कर मांगने पर भाइयों का यह द्वेष खुलकर सामने आ गया. प्रद्युम्न शाह गढ़वाल दरबार में होने वाली छोटी से छोटी जानकारी रखने लगा. इससे पहले की जयकीर्ति शाह कुमाऊं पर आक्रमण की तैयारी करते प्रद्युम्न शाह ने हर्षदेव जोशी के साथ मिलकर गढ़वाल पर धावा बोल दिया.
(Joshiyani Kand History of Uttarakhand)
प्रद्युम्न शाह ने पहले देवलगढ़ पर आक्रमण किया फिर श्रीनगर पर. देवलगढ़ और श्रीनगर में हुए इस युद्ध में भारी लूट खसोट हुई. प्रद्युम्न शाह अपनी ही पैतृक राजधानी को हर्षदेव जोशी और उसकी सेना लुटवाया. गढ़वाल इतिहासकारों ने इस लूट खसोट को भीषण विध्वंस बताया है. लूट खसोट की यह घटना आज भी गढ़वाल के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है.
गढ़वाल के इतिहास में यह घटना ‘जोश्याणी कांड’ नाम से दर्ज है. एक ऐसा कांड जहां गद्दी के लिये एक भाई ने अपनी ही पैतृक राजधानी को लुटवाया.
(Joshiyani Kand History of Uttarakhand)
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