केदारखंड के तल्ला नागपुर पट्टी के कान्दी गांव में प्राचीन भगवान कौलाजीत का मंदिर है. कौलाजीत एक प्राचीन ऋषि थे. इस मंदिर की प्राचीन काल से मान्यता है कि यहां सर्प दंश पीड़ित को कुछ समय के लिए मंदिर में रखने पर वह ठीक हो जाता है. (Kaulajit Temple)
वर्तमान रुद्रप्रयाग जिला के क्यूजा घाटी के कान्दी गांव में भगवान कौलाजीत का ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर की पूजा का अधिकार गांव के ही भट्ट ब्राह्मणों को है. केदारखंड प्राचीन काल से ही ऋषि और मुनियों की भूमि रही है. बताया जाता है कि प्राचीन काल में ये ऋषि और मुनि यहां तपस्या करने आए थे. जिसमें उन्होंने शिक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. लोगों का मानना है कि ये ऋषि 12 भाई थे, जबकि कुछ लोगों का मानता है कि ये बारह आदित्य हैं. इसमें सबसे बड़े ऋषि कौलाजीत हैं. जिनके नाम से ही गांव का नाम कान्दी पड़ा. ऐसे ही अगत्य ऋषि जिनके नाम से अगत्यमुनी नाम का शहर है. ऋषि अगस्त्य के बारे में कई पुराणों में उल्लेख है. स्कंद पुराण के केदारखंड में भी उनका उल्लेख है. ऐसे ही सिल्ला गांव में साणेश्वर महाराज का मंदिर, पिल्लू गांव में कर्माजीत का मंदिर, रैड़ी गांव में रणजीत सहित कुल बारह ऋषि और मुन्नि हैं. ऐसे ही प्रत्येक गांव में एक देवी का मंदिर शक्ति के रुप में है. जैसे कान्दी गांव में कन्यासैण, कुमड़ी गांव में कुमासैण आदि मंदिर है.
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पहाड़ में जब चिकित्सा की समूची व्यवस्था नहीं थी और लोगों का भगवान कौलाजीत के प्रति अटूट विश्वास था. तो सांप के काटने का लोग इलाज नहीं करवाते थे. वह मंदिर में सर्प दंश पीड़ित को रख देते थे. बताते हैं कि मंदिर में जिस सांप ने पीड़ित को काटा है, वह अपना जहर उतार देता है. अटूट आस्था के चलते डंडी पर आने वाला पीड़ित भी कुछ समय बाद अपने पांव पर चलकर जाता था. लेकिन धीरे-धीरे अब यह घटनाएं कम हो रही है. चिकित्सा सुविधा और पहाड़ में सांप के काटने के केस भी कम हो रहे हैं. पहाड़ में भी महिलाओं की दशा में भी सुधार आ रहा है.
क्षेत्र के लोगों का भगवान कौलाजीत पर अटूट आस्था है. कहते है कि भगवान कौलाजीत की कृपा से लोगों को सांप काटने का भय कम रहता है. मंदिर के पुजारी और गांव के लोग भी सांप को मारते नहीं है. उसे जंगल में या दूर छोड़ दिया जाता है. लेकिन आस्था प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी है. लेकिन इन ऋषि और मुनियों को शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन काल में विशेष योगदान रहा है. अगस्त्य ऋषि के कई वैज्ञानिक खोजों के बारे में भी पुराणों में स्पष्ट उल्लेख है. कौलाजीत मंदिर प्राचीन काल से लेकर गोर्खा आक्रमण और बिटिश काल के भी ऐतिहासिक साक्ष्यों को संजोया हुआ है. गोर्खाओं के आक्रमण के समय के कई निशानियां मंदिर में हैं. लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज और अपनी प्राचीन संस्कृति और परंपराओं को संजोए रहने वाले मंदिर आज उपेक्षित हैं. (Kaulajit Temple)
वरिष्ठ पत्रकार विजय भट्ट देहरादून में रहते हैं. इतिहास में गहरी दिलचस्पी के साथ घुमक्कड़ी का उनका शौक उनकी रिपोर्ट में ताजगी भरता है.
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