आज के समय नैनीताल किसी परिचय का मोहताज नहीं. पर एक समय ऐसा भी था जब लोग नैनीताल की स्थिति को लेकर असमंजस में थे. यह असमंजस अंग्रेजों को अधिक था. स्थानीय लोगों को नैनीताल के विषय में तो खूब जानकारी थी लेकिन अंग्रेज बेचारे बरसों तक ठगे गये.
(History of Nainital Hindi)
आज भले ही यह बात अचरज की लगती है लेकिन इतिहास के पन्नों में नैनीताल को यूरोप के लोगों की नजर से बरसों तक छुपा कर रखा गया. किसी भी यूरोपीय यात्री को पहाड़ियों के बीच एक बड़ी झील होने की उम्मीद न थी. कुमाऊं में ब्रिटिश राज के दशकों बाद तक यह पहाड़ियों के बीच झील होने की दबी रही. धीरे-धीरे यूरोपीय यात्रियों के बीच झील की बातें होने लगी पर किसी को राह न पता चली.
ऐसा माना जाता है कि कुमाऊं के कमीश्नर ट्रेल को अपने शासनकाल के दौरान नैनीताल झील के बाबत पूरी जानकारी थी. कमीश्नर ट्रेल के विषय यूरोपीय यात्री मानते थे कि उनका व्यवहार स्थानीय लोगों के प्रति उदार था. कहा गया कि ट्रेल ने नैनीताल के प्रति स्थानीय लोगों की आस्था को ध्यान में रख इस बात को छुपा कर रखा.
यूरोपीय यात्री भारतीय लोगों को असभ्य और अति अन्धविश्वासी मानते थे. अनेक यूरीपीय यात्रियों ने कुमाऊं के लोगों का परिचय में उनके अति अन्धविश्वासी होने का जिक्र किया है. इस तरह यह अफ़वाह फैलने में भी देर न लगी कि नैनीताल में स्थानीय लोग कोई गुप्त अनुष्ठान करते हैं. एक ऐसा अनुष्ठान जिसे स्थानीय लोग बेहद पवित्र मानते हैं.
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अपनी अल्मोड़ा यात्रा के दौरान पी बैरन नाम के एक शख्स को उसके दोस्त बैटन से सामान्य जानकारी प्राप्त हुई. एक लम्बे समय से पहाड़ में झील की बातें सुन रहे इस अंग्रेज व्यापारी आखिर में ठान ही लिया कि वह किसी भी तरह नैनीताल का रास्ता ढूंढ निकालेगा. पी बैरन से पहले भी कुछ अन्य यूरीपीय यात्री नैनीताल जाने की कोशिश कर चुके थे लेकिन स्थानीय लोग या तो झील के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी होने से मना कर देते या फिर पैसे लेकर बीच राह में रास्ता भूल जाने की बात कह देते.
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पी बैरन एक शातिर शख्सियत थी उसने स्थानीय गाइड से निपटने की एक योजना बना ली. वह अपने तीन साथियों के साथ यह योजना बनाता है. योजना के तहत वह स्थानीय बाज़ार में नैनीताल एक पत्थर पहुंचाने की बात करता है. बात-चीत से बैरन इस बात को लेकर आश्वस्त हो जाता है कि नैनीताल में कोई झील जरुर है. इस विषय पर पी बैरन लिखता है कि
नैनीताल यात्रा में हमारे गाइड का रवैया निहायत असयोगपूर्ण था. वह धोखा न दे सके इसके लिए हमें कुछ जोर-जबर्दस्ती भी करनी पड़ी. रास्ता नहीं पता जैसे बहाने पहाड़ी लोग खूब बनाते हैं. खास तौर पर जब आपको कुछ कुलियों की जरूरत हो, ये बहाना बनाएंगे और घर से बाहर नहीं निकलेंगे. हम हिमालय में इतना घूम चुके थे कि पहाड़ों के बीच झील की मौजूदगी के बारे में हमें बेवकूफ बनाना आसान न था और फिर पहाड़ों से उत्तर रही जल धाराएं हमारा निर्देशन कर रही थीं. गाइड जहां तक संभव था हमें गलत दिशा की ओर ले गया. जब हमें यह आभास हो गया कि वह धोखा दे रहा है तो हमने एक चाल चली. उसके सिर पर एक भारी पत्थर रख दिया और कहा कि मंजिल पर पहुँचने पर की इसे उतारा जाएगा. उसके पास मंजिल तक जाने के अलावा कोई और चारा नहीं था. पहाड़ी लोग आम तौर पर बड़े सोधे होते है और आप बड़ी आसानी से उन्हें बेवकूफ बना सकते हैं. यदि आप ऐसे गाइड के साथ नैनीताल जा रहे हों जो रास्ता नहीं जानने का बहाना बना रहा हो, यह तरकीब बड़े काम की है. एक बड़ा पत्थर उसके सर पर रख कहिए कि इसे नैनीताल तक पहुँचाना है, क्योंकि वहाँ पत्थर नहीं हैं. यह भी बताएं कि पत्थर गिरे या टूटे नहीं और आपको इस पत्थर की नैनीताल में बड़ी जरूरत है. भारी बोझ को ढोने की चिंता में वह जरूर कह बैठेगा कि साहब वहाँ पत्थरों की क्या कमी है और यह बात भला नैनीताल देखे बिना कोई कैसे कह सकता है. हमने भी करीब एक मील चलने के बाद उस भले मानुस के सर का बोझ हटा दिया क्योंकि उसे रास्ता याद आ चुका था.
‘पिलग्रिम्स वंडरिंग्स इन द हिमाला’ का यह अनुवाद आशुतोष उपाध्याय द्वारा किया गया है. यह अनुवाद हिमालयी सरोकारों से जुड़ी प्रतिष्ठित पत्रिका ‘पहाड़’ से साभार लिया गया है
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