गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता था. भारत में उस दौरान अंग्रेजों का शासन था. कोटद्वार-भाबर क्षेत्र का अधिकांश भाग चारों और से जंगल से घिरा हुआ था, इसलिए इस क्षेत्र को खाम स्टेट कहा जाता था.
(History of Kotdwar Uttarakhand)
कोटद्वार के सिद्धबली मंदिर के पास खाम स्टेट का मुख्यालय हुआ करता था. जिसका खंडर आज भी वहां मौजूद है. उसके ठीक नीचे ग्रास्टनगंज जिसे पुराना कोटद्वार कहते हैं, बसा हुआ था. बताया जाता है कि ग्रास्टनगंज किसी अंग्रेज के द्वारा बसाया गया नगर था. उसी के नाम पर इसका नाम ग्रास्टनगंज पड़ा.
खाम क्षेत्र, वर्तमान कोटद्वार सनेह क्षेत्र से लेकर भाबर तक का क्षेत्र था. भाबर के अंतिम छोर पर कुंभीखाल क्षेत्र वर्तमान में रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में हैं. जहां घना जंगल है. लेकिन खाम स्टेट के दौरान यहां लोग रहते थे. पांच साल पहले करीब जब हम खाम क्षेत्र के कुंभीखाल क्षेत्र में गए तो वहां के एक स्थानीय निवासी की मदद से हमें उस क्षेत्र की जानकारी मिली. जहां अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया एक कुंआ भी मिला. जो आज भी वैसे ही है.
कुंआ उस समय क्षेत्र के लोगों की प्यास बुझाता था. साथ ही कुंए से कुछ दूरी पर ही कंडी मार्ग है, जो हरिद्वार से लेकर कोटद्वार और कालागढ़ होते हुए कुमाऊं के लिए प्रमुख मार्ग होता था. इसी मार्ग पर बैलगाड़ियों से आवाजाही होती थी. लोग अंग्रेजों के बनाए इस कुएं से पानी पीते थे लेकिन अब यह क्षेत्र लैंसडौन वन प्रभाग में आता है और अब यहां लोग नहीं रहते हैं, लेकिन कुआं आज भी मौजदू है. यह कुआं अब जंगली जानवरों के लिए मौत का कुंआ बन गया है. जिसमें कई जंगली जानवर गिरकर मर गए. कई लोग भी कुएं में आत्महत्या करने की बात सामने आ चुकी है. बाद में कंडी मार्ग भी बंद हो गया और कुमाऊं व गढ़वाल की सांस्कृतिक दूरियां भी बढ़ गई. अग्रेंजों के जमाने में बना यह कुंआ आज भी मौजूद है.
(History of Kotdwar Uttarakhand)
1901 में कोटद्वार को नगर का दर्जा मिला. तब यहां की आवादी कुल 396 थी. जिसके कारण सन 1921 में इसे फिर गांव घोषित किया गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नगर का काफी विकास हुआ. सन 1897 में कोटद्वार में रेलवे लाइन बन गई थी. जिससे यह दिल्ली और अन्य प्रमुख बड़े नगरों से जुड़ पाया. 1951 में कोटद्वार नगर पालिका की स्थापना हुई. इसी समय कोटद्वार खाम क्षेत्र को भी तहसील में विलय किया गया.
कोटद्वार के शिक्षक और संस्कृति के जानकार पदमेश बुडाकोटी ने बताया कि खाम क्षेत्र का डीएफओ लेबल का अधिकारी कोटद्वार में बैठता था. जिसे खाम सुपरटेंडेंट कहां जाता था. खाम क्षेत्र का विलय होने के बाद नगर क्षेत्र लैंसडौन तहसील में आ गया और यह क्षेत्र सिविल में चला गया. बाद में पृथक कोटद्वार तहसील अस्तित्व में आई. कोटद्वार यूपी की सीमा से लगा क्षेत्र है, इसे गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. लेकिन अपना समृद्ध इतिहास समेटे कोटद्वार क्षेत्र आज विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट गया. आज खाम क्षेत्र के बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है. खाम क्षेत्र के लिखित इस्तावेज वन विभाग के पास हैं, या नहीं. कोई नया अधिकारी इस बारे में जानकारी देगा या नहीं. जानकारी कोटद्वार के पुराने लोगों से पूछताछ और कुछ पुराने दस्तावेजों पर आधारित है.
(History of Kotdwar Uttarakhand)
–विजय भट्ट की रपट

पेशे से पत्रकार विजय भट्ट देहरादून में रहते हैं. इतिहास में गहरी दिलचस्पी के साथ घुमक्कड़ी का उनका शौक उनकी रिपोर्ट में ताजगी भरता है.
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