समाज

आज जानिये जी.आई.सी. पिथौरागढ़ स्कूल का इतिहास

1925 के आस पास पहली बार पिथौरागढ़ में उच्च माध्यमिक स्कूल खोलने का विचार सूबेदार मेजर भवान सिंह सौन के मन में आया. उन्होंने कुमाऊं बटालियन के ऑफिसरों का ध्यान इस ओर दिलाया.बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर ने बटालियन द्वारा इक्कठा किये 10,000 रुपये स्कूल के लिये दिये. (History of G.I.C. Pithoragarh)

इस संबंध में दो सभायें 1926 और 1928 में हुई. 1926 में शिक्षा विभागीय निरीक्षक बृजवासी लाल पहले अध्यक्ष हुए और 1928 में द्वितीय निरीक्षक इसके अध्यक्ष हुए. 1928 की सभा में स्कूल निर्माण को लेकर स्पष्ट रूप-रेखा तैयार हुई. दोनों सभा में पिथौरागढ़ के लोगों ने अपूर्व उत्साह के साथ भाग लिया.

दूसरी सभा में शिक्षा निरीक्षक ने खडकसिंह पाल, देवी दत्त पुनेठा, गंगा दत्त पुनेठा, कैलाश चन्द्र त्रिवेदी, कृष्णानन्द उप्रेती, कांग्रेस कार्यकर्ता, फारेस्ट पंचायत ऑफिसर और डिप्टी कलक्टर से परामर्श कर अगली रणनीति निश्चित की. इसी दिन इलाके के लोगों से आवश्यक धन चंदेके रूप में लेकर एक बड़ी धनराशि एकत्रित करने की बात सामने आई. जिसके बाद कुमाऊं कमीशनर की संरक्षता में एक चंदा कमेटी बनाई गई.

कांग्रेसी कार्यकर्ता कृष्णानन्द उप्रेती के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल बर्मा गया जिसमें रिटायर्ड सूबेदार प्रताप सिंह खड़ायत भी शामिल थे. बर्मा में पिथौरागढ़ के  चन्द्र शेखर जोशी और जमन सिंह वल्दिया आदि ने चंदा कमेटी को बहुत सहायता दी.

इस दौरान पिथौरागढ़ में रह रहे सरकारी कर्मचारियों ने ख़ुशी ने अपने एक महिने की तनख्वा चन्दे में दी. इस सभी के मिले जुले प्रयास से 1930 तक चंदा कमेटी के पास 56,000 रुपये जमा हो चुके थे. इसमें सबसे बड़ा अंश सैनिक और सेनाधिकारियों की ओर से 42,000 रूपये था. पंडित अम्बादत्त कुटियाल ने 16,00, पूर्णानंद पुनेड़ा और किशन सिंह चन्द ठेकेदार ने 15,00, कुंवर खडक सिंह पाल, बेनीराम पुनेठा और प्रेम वल्लभ खर्कवाल ने 1,000 रूपये चन्दे में दिये थे.

स्कूल का सपना पूरा करने में कमिश्नर, कुमाऊं, डिप्टी कमिश्नर अल्मोड़ा, रायबहादुर रामशरण मिश्र (विद्यालय निरीक्षक), कैलाश चन्द्र त्रिवेदी, खंड मंडलाधीश, पिथौरागढ़, गंगाराम पुनेठा वकील, सूबेदार मेजर भवान सिंह सौन, देव सिंह बिष्ट मालदार और देवी दत्त जोशी के सक्रिय योगदान को नहीं भुलाया जा सकता.

8 जुलाई, 1930 को त्रिवेदी जी द्वारा इस स्कूल का शुभारम्भ पिथौरागढ़ हाईस्कूल नाम से हुआ. शुरुआत मेंयह बाजार में किराये के भवन चला और सातवीं और आठवीं की कक्षा खोली गयी. स्कूल के पहले प्रधानाध्यापक चंचलावल्लभ पन्त नियुक्त हुए. स्कूल में इस समय 25 बच्चों ने प्रवेश लिया.

त्रिवेदी जी द्वारा 12 एकड़ नजूल भूमि घुड़साल में निर्मूल्य स्वीकृत कराई गयी जहां 1932 में विद्यालय भवन निर्माण कार्य शुरू हुआ. स्कूल के निर्माण का ठेका अल्मोड़ा के श्याम लाल शाह को मिला. 1933 में स्कूल किराये के भवन से अपने निजी भवन में आ गया.

1933 में स्कूल का पहला बैच परिषदीय कक्षाओं में शामिल हुआ. इसमें आठ छात्रों ने भाग लिया और आठों पास भी हुये. इसके बाद स्कूल में लगातार बच्चों की संख्या बढती चली गयी. 1942 में 7वीं कक्षा में दूसरा सैक्सन शुरू हुआ 1945 तक सभी कक्षाओं के दो-दो सैक्सन खुल चुके थे. 1938 में इस स्कूल का नाम बदल कर किंग जॉर्ज सिक्स्थ कौरोनेशन हाईस्कूल रखा गया था.

इसके बाद स्कूल में इंटरमीडियेट और निम्न कक्षाओं को खोलने की मांग उठी. 1945 में ही तीन से छः तक की कक्षायें स्कूल के पास एक भवन किराये में लेकर खोली गयी. 1 जुलाई 1945 को सरकार ने स्कूल को अपने हाथ ले लिया.

16 अक्टूबर, 1948 को स्कूल में नये प्रधानध्यापक कलानिधि पांडेय नियुक्त हुए. इंटर की कक्षाओं को खोलने की मांग के कारण निचली कक्षाएं धीरे-धीरे बंद की गयी. इन नई कक्षाओं को खुलवाने में कै. भवानी सिंह शाही का सहयोग विशेष रहा.

इसी बीच सेनापति जनरल करिअप्पा 1950 में पिथौरागढ़ आये. उनके प्रयासों से स्कूल में विज्ञान और कला की इंटर की कक्षायें 9 जुलाई, 1951 से शुरू हुई.

पहाड़ पत्रिका के 2016-17 अंक में छपे नन्द बिहारी पन्त के लेख शिक्षा का एक प्रकाश स्तंभ से साभार.

-काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago