आज शेविंग करते हुए ना जाने ध्यान बंट गया या फिर वही जल्दबाजी हुई कि गाल में एक बड़ा सा कट लग गया. मुझे शेविंग करना शुरू से ही पसंद नहीं रहा है. खून साफ करते-करते आज फिर सुधीर की याद आ गई. हां सुधीर! सुधीर बमेठा जिसे मैं प्यार से बम्बू कहता. कितना स्वच्छंद स्वभाव था उसका. बात-बात में मजाक करना और फिर जोर-जोर से हंसना. एक दिन मॉर्निंग वॉक पर मेरे कटे हुए चेहरे को देख कर बोला ”अबे! ये क्या तूने तो अपना पूरा चेहरा ही छील रखा है.” “हां यार मुझ से ढंग से शेव बनती ही नहीं, कट ही जाता है. “यू हैव वेरी रफ शेव बट हाउ डू यू मैनेज ऑल देट.” “मैनेज वैनेज क्या करना बे! आई अप्लाई शेविंग क्रीम फाइव टू सिक्स मिनिट्स देन शेव देट्स सिंपल और क्या.” (Hindi Story by Pushkar Raj)
यह ऐसा शेविंग का गुरु मंत्र था जो उसने मुझे दिया था. नई-नई दाढ़ी आई थी, मुझे तो बस क्रीम लगानी होती और ब्लेड चलानी होती थी और नतीजा कटा-फटा, खून से सना चेहरा. उस दिन के बाद मैंने उसके कहे अनुसार ही शेविंग शुरू की और फिर मेरा चेहरा नहीं छीला.
सुधीर और मैं नैनीताल में पढ़ते थे. नैनीताल से ही ग्रेजुएशन करने के बाद सुधीर हल्द्वानी में रहकर आगे कंपीटिटिव एग्जाम्स की तैयारी कर रहा था. नैनीताल में रहने के कारण हल्द्वानी में हमारे कम ही दोस्त थे, लिहाजा मेरा और सुधीर का एक दूसरे के ही घर आना जाना था. मैं एमबीए की तैयारी कर रहा था. फिर मॉर्निंग वॉक का सिलसिला भी शुरू हो गया. सुधीर सुबह पांच बजे मेरे घर आता फिर हम दोनों आठ दस किलोमीटर लंबी सैर को निकल पड़ते. सुधीर को पता नहीं कब सिगरेट पीने की लत लग गई थी. मैं वापसी में उसके घर होते हुए आता. जब तक आंटी चाय बनाने का जतन करती हम सीधे उसकी छत पर चले जाते. सुधीर जल्दी-जल्दी सिगरेट सुलगा लेता. मैं इधर-उधर नजर डालते हुए उसको टोकते हुए कहता “अबे! तू अपनी छत पर खुलेआम सिगरेट पीता है कोई देखेगा तो क्या सोचेगा.” “अबे साले इन लोगों को क्या लेना देना मैं अगर कल कुछ बन जाऊंगा तो यही लोग सलाम ठोकेंगे” सुधीर जोर-जोर से हंसते हुए कहता.
फिर एक दिन सुधीर का फोन आया कि वह दिल्ली जा रहा है उसका भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता में सलेक्शन हो गया साथ में अपना एक और सहपाठी निलेश मिश्रा भी है (निलेश मिश्रा आजकल 92.7 एफ .एम में यादों का इडियट बॉक्स सहित अन्य लेखन कार्यों में सक्रिय है.) “अच्छा है यार बहुत बहुत बधाई” मैंने बोला था .
फिर लंबे समय तक सुधीर से मुलाकात नहीं हो पाई क्यों कि मैंने भी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के एमबीए पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया था. दो साल बाद मैंने दिल्ली का रुख किया. एक दिन हल्द्वानी में अचानक सुधीर से मुलाकात हो गई. “अबे साले तू तो गायब ही हो गया.” अपने पुराने अंदाज में वो मुझे गले लगाते हुए बोला. फिर दोनों ने एक रेस्तरां में बैठ कर खूब बातें की.
“यार पत्रकारिता में आगे जाने का मेरा मन नहीं था तुझे तो पता है राजेश (कारगिल शहीद महावीर चक्र विजेता मेजर राजेश अधिकारी) और दूसरे दोस्तों के डिफेंस सर्विसेज में सलेक्शन के बाद मेरा भी डिफेंस में जाने का बहुत मन है.” “हां यार राजेश अधिकारी को कौन भूल सकता है कितना प्यारा इंसान था, कैसे हम डीएसबी नैनीताल की कैंटीन में बैठकर उसके गानों पर मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे मेजें थपथपाते थे.” मैंने बोला था. “मैं डिफेंस सर्विसेज के लिए अभी भी कोशिश कर रहा हूं, इस बार इंटरव्यू तो ठीक था पर फिजिकल में कुछ गड़बड़ हो गई, मैंने जिसके खिलाफ अपील की थी और अब मुझे दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल में फिजिकल टेस्ट दोबारा देने को कहा गया है.” वह गंभीर स्वर में बोला.
“तो तेरा फिजिकल में क्या चल रहा है?” मैंने पूछा. “कुछ नहीं यार कल से फिर से चलता है क्या सुबह जब तक तू यहां है.” उसने जिज्ञासा भरे लहजे में पूछा. “ठीक है” मैंने जवाब दिया. फिर दूसरे ही दिन से दौड़ने और एक्सरसाइज का दौर शुरू हो गया. मैं सिर्फ उसका साथ देने की कोशिश करता. लेकिन सिगरेट उसकी एक समस्या थी “तू सिगरेट नहीं छोड़ेगा तो फिटनेस टेस्ट कैसे पास करेगा भाई?” मैं कहता.
“ठीक है कल से पैसे नहीं रखकर लाऊंगा पैसे नहीं होंगे तो कौन सुबह-सुबह उधार देगा” वह जोर-जोर से हंसते हुए बोला.
“ओ भाईसाहब! क्या बात आज रुके नहीं?” ये आवाज उन दुकानदार भाई साहब की थी जहां से सुधीर रोज सुबह सिगरेट लेता आज हम जानबूझ कर आगे निकल गए फिर सुधीर कहे अनुसार पैसे भी रखकर नहीं लाया था. “आज पैसे नहीं हैं दाज्यू” हमने दूर से ही जवाब दिया. “अरे! तो क्या हुआ मेरी बोहनी हो गई है, आओ पैसे कहां भागे जा रहे हैं.” दुकानदार आत्मीयता भरे लहजे में बोला. “यार ऊपर वाले को भी मंजूर नहीं कि तू सिगरेट छोड़े और इतनी मेहनत के बाद वह तेरी जब इस इच्छा को पूरी कर रहा है तो तेरा सलेक्शन भी जरूर होगा.” सुधीर को सिगरेट सुलगाते देख मैंने हंसते हुए कहा. कुछ दिन बाद सुधीर ने बताया कि उसके फिजिकल टेस्ट की डेट आ गई है कल ही उसे दिल्ली निकलना है. मैंने शुभकामना देते हुए उससे विदा ली .
“अबे साले मेरा सलेक्शन हो गया है जल्दी से मेरे घर आ, मैं बीएसएफ कमांडेंट बन गया.” सुधीर फोन करके बोला. मैं सीधे उस के घर पहुंचा. वह आज बहुत खुश था. “बधाई भाई अब तो तू छत पर कुछ भी कर सकता है” मैंने हंसकर कहा. फिर हम दोनों जोर-जोर से हंस पड़े .
मैं कुछ माह के लिए कैलिफोर्निया चला गया, इस बीच कभी-कभी सुधीर से बात हो जाती थी. तभी पता चला कि मई में उसकी शादी होनी तय है. मैं भी अप्रैल के लास्ट तक वापस इंडिया आ गया. उसकी ससुराल मेरे घर के पास थी. सभी दोस्त उसकी शादी में शामिल हुए, दोस्तों से बहुत दिनों के बाद मुलाकात हुई. आनंद और धूमधाम से उसकी शादी संपन्न हुई.
फिर एक दिन अचानक बाजार में वह अपनी पत्नी गीतांजलि के साथ मिला.
बातों-बातों में उसने बताया कि उसकी माता जी की तबियत बहुत खराब है उन को कैंसर होने का पता चला है. “लेकिन मैं ज्यादा रुक नहीं पाऊंगा क्यों कि अगले हफ्ते पुंछ सेक्टर में मैंने ड्यूटी ज्वाइन करनी है.” उसने उदास होकर बताया . हम दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और विदा ली.
“हेलो मैं भुवन बोल रहा हूं, तुझे पता है क्या सुधीर बमेठा की डेथ हो गई है पुंछ सेक्टर में घुसपैठियों के साथ गोलीबारी हुई जिसमें उसको गोली लग गई” मेरे पड़ोस के दोस्त भुवन तिवारी ने फोन कर मुझे एक सांस में घटना की जानकारी देते हुए कहा. मेरा कलेजा मानो मुंह को आ गया फिर दौड़ कर अखबार लेकर जल्दी-जल्दी खबर ढूंढने लगा. अखबार में लिखा था हल्द्वानी निवासी सुधीर कुमार बमेठा पुंछ सेक्टर में घुसपैठियों के साथ जवाबी कार्यवाही में शहीद. खबर सच थी. मैं कुछ देर अवाक सा खड़ा रहा फिर सीधे सुधीर के घर को चल पड़ा. वहां सन्नाटा पसरा था मेरी हिम्मत घर के अंदर जाने की नहीं हुई लिहाजा वापस लौट आया.
दो दिन बाद सुधीर का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपट कर हल्द्वानी पहुंच गया. सैकड़ों लोग उसके घर पर जमा थे. ये “सब कैसे हुआ” मैंने सुधीर के पार्थिव शरीर के साथ आए एक जवान से पूछा. “साहब बहुत साहसी थे, जैसे ही हमें घुसपैठ का पता चला हम सब ने मोर्चा संभाल लिया लेकिन हम नहीं चाहते थे कि साहब मोर्चे पर आएं क्यों कि वे अभी नए थे लेकिन नहीं माने, फिर दोनों तरफ से गोलाबारी हुई जिसमें घुसपैठियों को मार गिरा दिया गया, लेकिन इसी बीच कुछ गोलियां साहब को भी लग गई और हम उन्हें नहीं बचा सके.” जवान ने बताया.
ताबूत में सुधीर चिर निद्रा में सोया था. इतना शांत मैंने उसे कभी नहीं देखा था. मेरे आंसू छलक पड़े. अंतिम संस्कार स्थल पर सुधीर के शरीर को पंच तत्व में विलीन किया गया उससे पहले उसको अंतिम सलामी दी गई.
मुझे सुधीर की कही एक-एक बात याद आ रही थी कि अगर मैं कुछ बन जाऊंगा तो सभी मुझे सलाम करेंगे और आज उसकी बात सच हो रही थी. उसकी अंतिम विदाई में इतनी भीड़ थी इतने लोग थे कि सुधीर उनमें से बहुतों को तो जानता भी नहीं होगा पर आज सभी उसको नम आंखों से विदाई दे रहे थे.
आज सुधीर का एक बेटा है. जो उसकी शहादत के वक्त गर्भ में था. उसको देखकर उसी चंचल सुधीर की याद आती है. वक्त का जख्मों पर मरहम लगाने का शायद ये भी एक तरीका है. (Hindi Story by Pushkar Raj)
मूल रूप से ग्राम. बडे़त, नथुवाखान के रहने वाले पुष्कर राज सिंह हाल-फिलहाल हल्द्वानी में रहते हुए व्यवसाय एवं स्वतंत्र लेखन करते हैं.
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