उत्तराखंड की खूबसूरती से हर कोई परिचित है देश-विदेश के लोग यहां की नैसर्गिक सुंदरता से आकर्षित होकर यहां घूमने आते हैं. हिंदी सिनेमा जगत भी यहां के आकर्षण से बच नहीं पाया है. हिंदी सिनेमा के आरंभ से ही यहां के हिमालय क्षेत्रों में कई हिंदी फिल्मों की शूटिंग हुई और क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले यहां पर किस फिल्म की शूटिंग हुई? वर्ष 1958 में सबसे पहले यहां पर विमल रॉय की फिल्म मधुमति की शूटिंग हुई अदाकार दिलीप कुमार, वैजयंती माला भी यहां के सौंदर्य से प्रभावित रहे. (Column by Rekha Silori)
फिल्म मधुमति की शूटिंग यहां हुई और जब दूसरे निर्माता निर्देशकों की नजर उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों पर पड़ी तो उन लोगों ने भी कई फिल्मों की शूटिंग यहां की. इन कलाकारों निर्माता-निर्देशकों को शुरू से ही नैनीताल अल्मोड़ा और रानीखेत के विभिन्न स्थान शूटिंग करने के लिहाज से उत्तम लगे.
रानीखेत के पहाड़ी क्षेत्रों में, गोल्फ ग्राउंड और गोल्फ ग्राउंड की रोड पर कई फिल्मों के दृश्य फिल्माए गए हैं, जैसे आशा पारेख और शम्मी कपूर अभिनीत फिल्म दिल दे के देखो, लीना चंद्रावरकर और अनिल धवन की फिल्म हनीमून, ऋषि कपूर, काजल किरण और तारिक अहमद की फिल्म हम किसी से कम नहीं की शूटिंग यहां पर हुई. इसके अलावा भारत भाग्य विधाता, मधुमति, कटी पतंग, वक्त, गुमराह, शगुन, भीगी रात, अनीता, एक कली मुस्काई, दिल दे कर देखो, कलाबाज, अभी तो जी ले, माशूक, हिमालय पुत्र, सिर्फ तुम, कोई मिल गया, बाज़ द बर्ड इन डेंजर, जूली, प्यार जिंदगी है, विवाह, चांद के पार चलो, सतरंगी पैराशूट जैसी कई फिल्में इनमें शामिल हैं जिन की शूटिंग अल्मोड़ा, हल्द्वानी, नैनीताल, रानीखेत, गोल्फ ग्राउंड, चौबटिया जैसे स्थानों पर हुई है.
इन्हीं फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल है गोविंद मूनिस निर्देशित फिल्म बंधन बाहों का. इस फिल्म की खास बात यह है कि इस फिल्म की अधिकतर शूटिंग नैनीताल जिले के भवाली स्थित घोड़ाखाल, नैनीताल, भूमियाधार और उसके आसपास के इलाकों में हुई है. बंधन बाहों का फिल्म का नाम करिये छिमा रखा गया था और बाद में बदल कर बंधन बाहों का रख दिया गया. फिल्म की कहानी के हिसाब से इस फिल्म का नाम करिये छिमा ही होना चाहिए था लेकिन पता नहीं क्यों ये नाम बदल दिया गया. इस फिल्म के पहले दृश्य में भूमियाधार के पास नैनीताल मार्ग पर अभिनेत्री को उनके जीजा के साथ उनके घर जाते हुए दिखाया गया है. फिल्म बंधन बाहों का में मुख्य भूमिका में अभिनेता राजकिरण और अभिनेत्री स्वप्ना हैं. इसके अलावा राजेश पुरी ब्रह्मचारी और कई सारे स्थानीय कलाकार भी इसमें आपको देखने को मिलेंगे.
फिल्म के संगीत की बात की जाए तो इस फिल्म के गीतों में लोक संगीत का पुट देखने और सुनने को मिलता है. फिल्म का गीत ‘हे नारायणा’ मुख्य रूप से गोलज्यू को समर्पित एक गीत है. इस गीत को फिल्म का शीर्षक गीत कहा जा सकता था अगर इस फिल्म का नाम करिये छिमा होता, क्योंकि इस गीत में ईश्वर को पुकार पुकार कर करिये छिमा (माफ़ कर दो) बोला जाता है. गीत का फिल्मांकन गोलू देवता के मंदिर घोड़ाखाल का है और इस गीत में घोड़ाखाल मंदिर में रखी गोलज्यू की प्रतिमा के दर्शन भी आप कर सकते हैं, फिल्म में यह गीत दो बार गाया गया है एक बार अभिनेत्री स्वप्ना पर और एक बार अभिनेता राजकिरण पर. अभिनेत्री स्वप्ना ने फिल्म में हीरावती उर्फ़ हीरू का किरदार निभाया है और अभिनेता राजकिरण में लाल साहब उर्फ़ लाल बाबू की भूमिका निभाई है.
भवाली स्थित घोड़ाखाल में तब के, यानी कि वर्ष 1988 और अब के घोड़ाखाल मंदिर में बेहद बदलाव है यह आप फिल्म देख कर ही जान पाएंगे. फिल्म बंधन बाहों का, को फिल्म का सबसे सुंदर गीत कह सकते हैं और यह कह सकते हैं कि संगीतकार रविंद्र जैन ने इस गीत में अपने संगीत और शब्दों के जरिए पूरे कुमाऊं को एक गीत में इकट्ठा कर दिया है. संगीतकार रविंद्र जैन को पहाड़ों से और पहाड़ी धुन से अत्यंत प्रेम था उनका यह प्रेम उनकी संगीतबद्ध की हुई हर फिल्म के एक ना एक गीत में अवश्य ही सुनने को मिलता है, और इस गीत की तो बात ही कुछ और है गीत के बोल हैं—
ना कोई अकबर ना कोई बाबर ना यहां शाह हुमायूं.
सब है यहां दिल के शहज़ादे ये है देश कुमाऊं.
कुमाऊं की इतनी ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति आज तक किसी अन्य गीत में देखने को नहीं मिली. गीत के पहले अंतरे में कुमाऊं के प्रसिद्ध मंदिरों का संगीतमय जिक्र है जिनमें नैनीताल की नैना देवी, अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम, अल्मोड़ा की नंदा देवी, बागेश्वर के सरयू के संगम की बात, गंगोलीहाट के पाताल भुवनेश्वर, चितई मंदिर की न्याय के देवता गोलज्यू का शामिल है. इस गीत के दूसरे अंतरे में यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन है जिसमें यहां के पेड़ देवदार,चीड़, बांज और यहां के पक्षी न्योली, घुघुती का जिक्र है. नदी झरनों के बारे में भी बताया गया है, यहां के राज्य वृक्ष बुरांश का वर्णन भी अप्रतिम है. गीत की तीसरे अंतरे में पहाड़ में हो रहे पलायन की बात है और उन लोगों को नादान बोला गया है जो पहाड़ की स्वच्छ वातावरण यहां की स्वच्छ हवा यहां की मनमोहक नजारों को छोड़कर यहां से रोजी-रोटी की तलाश में बाहर निकल जाते हैं. इस बारे में यह संदेश दिया गया है कि क्यों ना यहां रहकर प्रकृति की अनमोल खजानों को बचाया जाए और स्वयं पर गर्व किया जाए कि आप कुमाऊं से हैं. आप गर्व करो कि आप यहां की मिट्टी में जन्मे हैं और आप खुद ही अपने दिल की शहज़ादे हैं आप पर कोई और बादशाहत नहीं कर सकता. गीत को यशुदास और हेमलता ने अपनी मखमली आवाज से जीवंत कर दिया है, जिसे आप सुनकर महसूस कर सकते हैं. फिल्म का गीत उजियारा भोर का बहुत ही मीठा गीत है इस गीत में पार्श्व गायिका हेमलता ने अपनी आवाज़ दी है. इस गीत में बेडू पाको बरमासा की धुन भी रविंद्र जैन साहब ने प्रयोग की है जो सुनने में अपनेपन का एहसास दिलाती है.
पारे भिड़े की बसंती छोरी रुमा झुमा
शायद ही कोई कुमाऊनी होगा जिसने पारे भिड़े की बसंती छोरी गीत ना सुना हो इस लोकगीत को प्राचीन समय से अब तक कई लोग गायकों ने गाकर वाहवाही लूटी है. इस गीत की मधुरता सदैव ही सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है अपनी ओर खींचती है. इस फिल्म में इसका संगीत तैयार किया था संगीतकार रविंद्र जैन ने और गीत की रचना भी रविंद्र जैन साहब की ही है. इस गीत को गायक जसपाल सिंह और हेमलता ने अपनी खूबसूरत आवाज़ों से नवाजा है. यह गीत फिल्म का वह गीत है जिसमें रविंद्र जैन साहब ने यहां के लोक वाद्य, यहां के लोक संगीत और लोक नृत्य का बेहद ही अच्छा प्रयोग किया है. रविंद्र जैन साहब ने फिल्म के पहाड़ी परिवेश को समझते हुए बेहद ही खूबसूरत संगीत तैयार किया. रविंद्र जैन साहब की खास बात यह थी कि वह जब भी जिस भी फिल्म में संगीत देते थे सबसे पहले उस फिल्म के परिवेश को जान लेते थे. लोक संगीत की जानकारी भली-भांति ले लेते थे और संगीत में किस-किस तरह के लोग वाद्यों का प्रयोग किया जाता है, गीत में किस लोक वाद्य का प्रयोग कर्णप्रिय लगेगा यह जानकारी लेना संगीतकार रविंद्र जैन की खासियत थी. वहीं अगर उस स्थान विशेष की प्रसिद्ध चीज़ों जगहों तीर्थ स्थलों को अपने गीतों में शामिल करना रविंद्र जैन साहब नहीं भूलते थे. गीत पारे भिड़े की बसंती छोरी संगीतकार रविंद्र जैन जब तैयार कर रहे थे तब उन्होंने कुमाऊं अंचल में प्रचलित लोक वाद्य जौया मुरुली (अलगोजा) यानी कि 2 बांसुरी का प्रयोग किया.
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कुमाऊं में सबसे ज्यादा प्रचलित वाद्य हुडके के नाम से कौन परिचित नहीं इस फिल्म के गीतों में इन सबका भरपूर इस्तेमाल किया गया है. फिल्म बंधन बाहों का का गीत पार भिड़े की बसंती छोरी को अगर संगीत और लोक संगीत की दृष्टि से देखा जाए तो कुछ-कुछ यहां के छपेली जैसा प्रतीत होता है. गीत में जीजा-साली की मीठी और तीखी नोंकझोंक मधुरता के साथ देखने सुनने को मिलती है. गीत में खूबसूरती से जीजा-साली के सवाल-जवाब को गीत के रूप में बांधने वाली यह सुंदर रचना देखने, सुनने में खूब लुभाती है. रविंद्र जैन साहब ने गीत में कुमाऊं में लगने वाले मेलों का भी वर्णन गीत में किया है. रविंद्र जैन साहब की संगीत के प्रति गहन सूझबूझ से फिल्म के सभी गीतों में कुमाऊं के लोक गीत और लोक संगीत का भान होता है. इस गीत के नृत्य में भी कुमाऊनी लोक नृत्य की झलक साफ देखने को मिलती है. कुमाऊं के लोक नृत्यों में जो मुद्राएं देखने को मिलती है इस गीत में आपको वही मुद्राएं देखने को मिलेंगी.
फिल्म के गीतों का नृत्य निर्देशन बद्री प्रसाद ने किया है. उन्होंने कुमाऊनी लोक नृत्य में प्रयोग होने वाली सभी मुद्राओं को इस गीत में बखूबी दिखाने की कोशिश की है. इस फिल्म के दो दृश्य ऐसे हैं जिसमें कुमाऊं में प्रचलित पारंपरिक रंगोली पिछौड़ा पहने स्त्रियों को दिखाया गया है. पहला सीन हीरू की बहन की संतान के नामकरण के समय और दूसरी बार जब अभिनेता राजकिरण अभिनेत्री स्वप्ना को पत्नी रूप में स्वीकार करता है.
इस फ़िल्म में कुमाऊं में प्रचलित पोशाकों को कलाकारों को पहने देखा जा सकता है. पुरुष कुर्ता, पायजामा, पहाड़ी टोपी और वास्केट पहने दिखते है तो वहीं महिलाएं घाघरा चोली और दुपट्टे पहनी नज़र आती हैं. कुमाऊं में प्रचलित रंगोली पिछौड़ा हमेशा शुभ, मंगल कार्यों में पहना जाता है. फिल्म में भी दोनों ही समय मंगल कार्यों में पिछौड़ा का प्रयोग किया गया है और आप फिल्म के उस रंगोली पिछौड़ा को देख सकते हैं जो प्राचीन समय में महिलाओं द्वारा पहना जाता था और अपने हाथों से बनाया जाता था. उस समय रंगोली पिछौड़ा को कॉटन के कपड़े को पीले रंग में रंग के सिक्कों से ठप्पे दिए जाते थे यानी कि शुद्ध पारंपरिक. इस फिल्म में मंगल काज (नामकरण) में औरतों के द्वारा शकुन गाते हुए भी दिखाया गया है. फिल्म बंधन बाहों का में राजकिरण और अदाकारा स्वप्ना खन्ना की अदाकारी ने फिल्म को बेहद ही लोकप्रियता दिलाई. फिल्म का गीत-संगीत और कहानी बहुत ही सुंदर है और कुमाऊं को समर्पित जो गीत फिल्म में है ये गीत पूरी फिल्म की कहानी का निचोड़ है.
आकाशवाणी, अल्मोड़ा में कार्यरत रेखा सिलोरी संगीतकार हैं और कुमाऊं विश्विद्यालय से उत्तराखण्ड के लोक संगीत पर शोध कर रही हैं.
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