लॉक डाउन के चलते आजकल पहाड़ी अंचलों में निवासरत लोग एक खास प्रकार के मसरूम को ढूंढते नजर आ रहे हैं. काफी महंगा बिकने वाला यह मसरूम आसानी से नहीं मिलता इसे ढूंढने के लिये काफी मेहनत की जरूरत है. हालांकि जो लोग कई सालों से यह काम कर रहे हैं उन्हें ज्यादा समस्या नहीं मगर इसकी कीमत को देखते हुए अपने घरों को वापस लौटे युवा भी परिवार के साथ इस मसरूम को ढूंढने और एकत्र करने की जुगत में लगे हैं.
(Himalayan Morel Mushrooms)
जी हां हम बात कर रहे हैं मोरल मसरूम की जिसे पहाड़ में लोग गुच्ची या च्यूं नाम से जानते हैं. इस मसरूम से जुड़ी किवदंती है कि जब पहाड़ पर आकाशीय बिजली चमकती है व मौसम में ठंडक ज्यादा नहीं होती यानी गर्मियों के मौसम शुरू होने की दस्तक होती है तो यह धरती पर अचानक निकल आते हैं. क्षेत्र में आजकल बंजर पड़े खेतों पर ये आसानी से दिखाई दे रहे हैं यद्यपि लोगों को इस बारे मे पूर्ण जानकारी नहीं है फिर भी लोग इसकी खोज मे जंगल, खेत छानते नजर आ रहे हैं.
आपको बताते चलें की इस मशरूम को बाहरी राज्यों से आने वाले लोग ऊंची किमतों में खरीदते हैं. यही नहीं कुछ तो ऐसे भी हैं जो कई वर्षों से अक्सर इस मसरूम को खरीदने आते हैं यानी लोगों के परमानेंट कस्टमर हैं. बहरहाल इनदिनों लॉक डाउन की वजह से लोग आ नहीं पा रहे, मगर वे फ़ोन पर एकत्र कर रखने की बात जरूर कह रहे हैं.
एक एनजीओ से जुड़े युवक अमित सिंह की बात मानें तो धारी, रामगढ़, ओखलकांडा सहित तमाम अन्य जगहों मे 7 हज़ार (7000) से 10 हज़ार (10,000) रुपये किलो तक बिक जाता है. इसकी अंतराष्ट्रीय कीमत काफी ज्यादा है और काफी डिमांड भी रहती है फाइव स्टार रेस्त्रां सहित कई दवाई कंपनियों मे इनकी सप्लाई होती है.
(Himalayan Morel Mushrooms)
क्षेत्रवासी बुजुर्ग टीका राम ने बताया कि वे खुद काफी समय से इन्हें इक्कठा कर बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि ये खास मशरूम बारिश और गर्मी की वजह से एक बेहतर वातावरण तैयार हुआ है जो इनकी उपज के लिए काफी बढ़िया है, हालाँकि उन्होंने ये भी कहा की इस मशरूम की सही जानकारी होना जरुरी है वरना जंगल मे कई अन्य मशरूम भी हैं जिन्हें खाने से आदमी की मौत भी हो सकती है.
वहीं होटल व्यवसायी दीपक, प्रदीप, विवेक के मुताबिक इन मशरूमों को गुच्ची भी कहते हैं और होटलों में इनका सूप, पुलाअ, तंदूर व्यंजन बनाने में प्रयोग किया जाता है जो कि काफी पौष्टिक होता है. वहीं इसका स्वाद कुछ ही लोगों को पसंद आता है जिसे फ्लेवर डाल के भी इस्तेमाल किया जाता है. रेस्त्रा में आपसे इसकी अच्छी खासी कीमत अदा करनी होती है.
वहीं इस मसरूम के गुणों को लेकर मुक्तेश्वर स्थित केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ राज नारायण ने बताया कि यह एक काफी पौष्टिक आहार तो है ही साथ ही इसका उपयोग दवाई बनाने वाली कई कंपनियां भी करती हैं. इससे विटामिन डी, इम्म्युनो एसिड तो मिलता ही है साथ ही इसमें एक ख़ास विटमिन इम्यूनोएसिड (सीआईएस 3 – एमिनो – एल – प्रो लाइन) जो की एंटी वायरल और ट्यूमर जैसी गंभीर बिमारियों के इलाज में काम आता है.
यही नहीं दिल सम्बन्धी बीमारी, थकान-शिथिलता, स्तन कैंसर आदि की दवाई बनाने में भी काम आता है. इसमें आयरन, जिंक, पोटैशियम, सिलेनियम अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, इन्हें कई नामों से जाना जाता है जैसे – गुच्ची, मोरेल आदि पर इसका वैज्ञानिक नाम मोर्चेल्ला एस्कुनेलेटा है और पहाड़ी या कुमाउनी भाषा में इसे च्यू, गुच्ची आदि कहते हैं.
(Himalayan Morel Mushrooms)
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
चौली की जाली मुक्तेश्वर: जहां शिवरात्रि में होती है संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण
हल्द्वानी में रहने वाले भूपेश कन्नौजिया बेहतरीन फोटोग्राफर और तेजतर्रार पत्रकार के तौर पर जाने जाते हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…