हरतालिका तीज के दिन महिलायें खासकर शादीशुदा महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. यह तीज ब्राह्मणों के एक खास वर्ग तिवारी, त्रिपाठी, बमेटा आदि, के लिए बहुत ही महत्व रखती है क्योंकि उनके द्वारा इस दिन अपनी जनेऊ बदली जाती है जबकि बाकी अन्य सभी लोगों द्वारा जनेऊ श्रावण पूर्णिमा अर्थात जनेऊ पुण्योव के दिन बदली की जाती है. (Hartalika Teej Festival of Uttarakhand)
एक मान्यता के अनुसार जब सभी लोग श्रावण पूर्णिमा के दिन जनेऊ बदलने से पहले सरोवर में स्नान कर रहे थे तभी तिवारी की जनेऊ सियार (स्याव) उठा कर ले गया. फलस्वरूप तिवारी जिनका गौतम गोत्र है वे जनेऊ न बदल सके. जोर-शोर से जनेऊ को ढूंढने का अभियान चला तब कहीं जाकर 18 दिनों के बाद हरतालिका तीज के दिन तिवारी की जनेऊ मिली और उनके द्वारा सभी विधि-विधान से हरतालिका के ही दिन जनेऊ बदली गयी.
एक मान्यता यह है कि सभी ऋषि जिनके नामों से गोत्र का सृजन है श्रावण पूर्णिमा के दिन जनेऊ पहनने की तैयारी में थे, तो यह तय न हो पाया कि सभी को कौन यज्ञोपवीत संस्कार विधि-विधान से पूर्ण करायेगा व जनेऊ धारण करायेगा. फिर भारद्वाज ऋषि के सुझाव पर गौतम ऋषि इसके लिए तैयार हुए उनके द्वारा विधि-विधान से सभी ऋषियों को जनेऊ पहनायी गयी जब तक और कोई अन्य ऋषि गौतम को जनेऊ पहनवाता मुहूर्त खत्म हो गया. इसके बाद का मुहूर्त फिर हरतालिका तीज को ही था अतः गौतम ऋषि इसी दिन जनेऊ पहन सके. आज भी गौतम गोत्र वाले इसी दिन हरतालिका को जनेऊ पहनते हैं.
कुछ जानकारों के अनुसार गौतम गोत्र वाले सामवेदी होते हैं. अर्थात सामवेद के ज्ञाता होते हैं. गौतम ऋषि द्वारा सामवेद का वृहत अघ्ययन किया गया था अन्य सभी यजुर्वेदी हैं. चूंकि सामवेद शिक्षा, संगीत व कला से सम्बन्घित है अर्थात सामवेदी सरस्वती के उपासक हैं. इसी कारण हस्त नक्षत्र प्रारम्भ होने पर हरतालिका तीज के दिन को ही शुभ मुहूर्त मानते हुए इसी दिन जनेऊ धारण करते हैं.
हालांकि आज के वैज्ञानिक युग में उपरोक्त मान्यताओं का कोई अर्थ नहीं है लेकिन मान्यताएं हैं तो हैं.
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हल्द्वानी निवासी सतीश चन्द्र बल्यूटिया एम. बी. जी. पी. जी. कॉलेज से स्नातक तथा कुमाऊं विश्वविद्यालय अल्मोड़ा परिसर से विधि में स्नातक हैं. फिलहाल हल्द्वानी में ही प्रैक्टिस करते हैं.
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हर जगह वैज्ञानिकता नहीं देखी जाती। ऐसे ही नजरिये से देखने लगेंगे तो फिर कोई भी त्यौहार मनाना अर्थहीन लगेगा आपको देश तो कभी का आज़ाद हो गया फिर भी कुछ तो होगा ही कि इस दिन को सभी धूमधाम से मनाते हैं।
अर्थहीन तो आपका पूरा लेख हो गया आखरी की बेतुकी की लाइन की वजह से।