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नहीं रहे नैनीताल के हनुमान प्रसाद

नैनीताल की जमीन पर कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने नैनीताल के लिये और अपने समाज के लिये बहुत कुछ किया पर कभी भी अपने किये हुए कामों का ढिंढोरा दुनिया के बीच नहीं पीटा और शायद इसलिये गुमनामी के साये में ही वो इस दुनिया से विदा हो गये और लोगों की याददाश्त से गायब भी हो गये.

ऐसे ही एक शख्स थे हनुमान प्रसाद. हनुमान प्रसाद को पुरानी पीढ़ी के लोग तो अच्छे से जानते हैं पर नई पीढ़ी के कम ही लोग होंगे जो हनुमान को जानते हों और हनुमान के इस दुनिया को विदा कर देने के बाद तो शायद कोई उनके बारे में इस पीढ़ी के लोगों को कोई बतायेगा भी नहीं.

लम्बी और गठीली कद काठी जो कि बढ़ती उम्र के साथ थोड़ी झुकने लगी थी. कंधे तक बिखरे कुछ सफेद कुछ काले बाल काला रंग जिस पर मैल की परत चढ़ते-चढ़ते और भी ज्यादा काला हो गया और शरीर ढकने के लिये जो मिल गया वो पहन लिया और फिर वो कभी उतारा ही नहीं गया. देखने से तो हनुमान के बारे में ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है पर समाज के लिये बिना किसी स्वार्थ के जो काम उन्होंने किये वो हनुमान को एक महान इंसान बना देते हैं.

हनुमान की पैदाइश नैनीताल में ही हुई थी. सन् 1930 के दौरान हल्द्वानी रोड में पिछाड़ी बाजार के पास उनके पिता मिट्ठन लाल की जूतासाज की दुकान थी. हनुमान के पिता की मृत्यु जब वो छोटे थे तब ही हो गयी और पिता की मृत्यु के बाद वो दुकान को चला नहीं पाये और हनुमान को घोर गरीबी का सामना करना पड़ा. यहाँ तक की उन्हें अपनी पढ़ाई तक छोड़नी पड़ी. उस समय में नैनीताल का लगभग हर बच्चा ही तैराकी किया करता था इसलिये हनुमान भी झील में तैरना सीखने लग गये थे और कुछ ही समय में बहुत ही अच्छे तैराक बन गये.

जैसे-जैसे उम्र बढ़ी हनुमान की तैराकी में और निखार आ गया और अपने इस हुनर का इस्तेमाल उन्होंने झील में डूब रहे लोगों की जान बचाने में किया. झील में फंस गयी लाशों को निकालने का भी वो काम करते थे और कई बार तो जो लाशें लावारिश होती थी वो उनका अंतिम संस्कार भी किया करते थे.

हालांकि हनुमान की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी पर फिर भी उन्होंने अपने इस हुनर का भी कोई आर्थिक इस्तेमाल नहीं किया और मुफ्त में ही ये काम किया करते थे. अपने जीवन में उन्होंने 350 से ज्यादा लाशें झील से निकाली जिसमें से 50 से ज्यादा लोगों के तो उन्होंने अंतिम संस्कार भी किये. लोगों की सेवा करने के संस्कार उनके बचपन से ही रहे.

राजनीति की समझ जब बनने लगी तो हनुमान कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये और आजीवन कांग्रेस पार्टी में ही रहे. शुरूआती दौर में उन्होंने कांग्रेस के लिये जी-जान से काम किया. एक सच्चे सिपाही की तरह वो कांग्रेस पार्टी के लिये काम करते रहे. स्व. नारायण दत्त तिवारी के वो बहुत करीबी थे और स्व. तिवारी हमेशा कहा करते थे – हनुमान प्रसाद मेरा सच्चा हनुमान है. इसके रहते हुए मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हो सकती है. नारायण दत्त तिवारी के इतना करीबी होने के बावजूद भी हनुमान ने कभी उनसे किसी तरह की कोई आर्थिक मदद नहीं मांगी. उस दौर में पूरा प्रशासनिक अमला और बड़े-बड़े नेता तक उन्हें जानते थे और पसंद भी करते थे पर हनुमान अपना जीवन घोर गरीबी और फकीरी के साथ जीते रहे.

आपातकाल खत्म होने के बाद जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को जेल जाना पड़ा उस समय नैनीताल नगरपालिका के अध्यक्ष स्व. बालकिशन सनवाल भी 19 दिन के लिये बरेली सेंट्रल जेल में रहे तब हनुमान भी उनके साथ 19 दिन तक बरेली सेंट्रल जेल में रहे.

अपनी दो समय की रोटी का जुगाड़ करने के लिये उन्होंने रिक्शा चलाया. रिक्शा चला के भी वो जो रुपया कमाते थे उसे समाज सेवा में ही खर्च कर देते. ये बात शायद बहुत कम लोग जानते होंगे की हनुमान गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी उठाते थे और कई सारे लावारिस कुत्तों को भी पालते थे. उनके आगे-पीछे हमेशा कुत्तों का झुंड उनके बाॅडीगार्ड की तरह चला करता था और वो जहाँ पर भी बैठते थे चारों ओर से कुत्ते आकर उन्हें घेर लिया करते थे.

उम्र के बढ़ने के साथ ही जब वो बीमार भी रहने लगे तो रिक्शा चलाना छोड़ना पड़ा. तब उन्होंने अपना जीवन चलाने के लिये कभी अंडे बेचे तो कभी मूंगफली बेची और कभी मछलियों को खिलाने के लिये झील के किनारे बैठ के ब्रैड भी बेची. इस बात का थोड़ा अफसोस भी है कि कांग्रेस के वो इतने कट्टर कार्यकर्ता रहे पर कांग्रेस ने भी उनकी कभी कोई आर्थिक सहायता नहीं की और उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ दिया.

रहने का उनके पास अपना कोई ठौर ठिकाना नहीं था इसलिये वो तल्लीताल रिक्शा स्टेंड के पास एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे जिसे नगरपालिका ने उन्हें दे दिया था पर जब उच्च न्यायालय नैनीताल ने नालों की सफाई करने के लिये अवैध निर्माण हटाने के निर्देश दिये तब हनुमान की झोपड़ी भी इसकी चपेट में आ गयी और हनुमान एक बार फिर बेघर हो गये. वो तो शहर के लोगों ने ही मदद करके रिक्शा स्टेंड के पास ही उनके लिये प्लास्टिक की पन्नी की झोपड़ी बना दी. अपने अंतिम समय तक अपने कुत्तों के साथ हनुमान इसी झोपड़ी में रहे.

अपने अंतिम दिनों में हनुमान निमोनिया से ग्रसित हो गये और कुछ दिन बी.डी. पांडे चिकित्सालय में रहने के बाद उन्हें सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी ले जाया गया जहाँ उन्होंने 72 वर्ष की आयु में इस दुनिया को और अपने नैनीताल को हमेशा के लिये विदा कह दिया.

शहर के लोगों ने मिलकर उनका अंतिम संस्कार पाइंस के शमशान घाट में किया. हनुमान ने हमेशा अपना जीवन फकीरी और फक्कड़ी में जिया. उन्होंने जितना भी कमाया वो सब लोगों की सेवा करने में खर्च कर दिया. नैनीताल, नैनीताल के वाशिंदे और नैनी झील हमेशा हनुमान की ऋणी रहेंगे.

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विनीता यशस्वी

विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.

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Girish Lohani

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