ऑफिस से घर पहुँच कर दरवाजा खोलते ही वैवाहिक निमंत्रण कार्ड पड़ा मिला. पते की लिखावट वह एकदम से पहचान गया. नीलू ओह! तो नीलू की लड़की की शादी का निमंत्रण पत्र है. बहुत देर तक दीवान पर पसर कर सुदेश निमंत्रणपत्र को खोले बगैर केवल पते की लिखावट को ही निहारता रहा. निहारते-निहारते नीलू की यादों में खो गया. अतीत में चौबीस वर्ष पीछे चला गया जब वो कालेज का विद्यार्थी था.
(Haar Story Nikhilesh Upadhyay)
नीलू उसके मामा के गाँव में रहती थी, उन दिनों वह भी वहीं रहकर पढ़ाई कर रहा था नीलू हाईस्कूल पास करने के बाद कालेज नहीं गई थी या भेजी नहीं गई थी. बहरहाल प्राईवेट इण्टरमीडिएट कर रही थी. उन दिनों मामा के परिवार में भी उसका आना-जाना होता रहता था. सुदेश तो गाँव में रहते हुये भी शहरी बना रहता, सुबह कालेज जाना शाम को यार दोस्तों के साथ गपियाते देर से ही घर पहुँचता था. थोड़ा बहुत घर का काम. पढ़ाई, खाना फिर सोना और सुबह. नीलू पर वह विशेष ध्यान भी नहीं देता था लेकिन एक दिन जब नीलू ने मौका पाकर उससे पूछा था, “कालेज में पढ़ने वाली लड़कियों में कोई खास बात होती है न!” तो वह चौंका था और उसके बाद के दिनों में उसने नोट किया कि नीलू के साथ अफेयर की पूरी संभावनायें हैं. शुरू में तफरीबाजी के मूड में उसने नीलू के साथ घनिष्ठता बढ़ाई लेकिन नीलू की व्यावहारिकता और समझदारी से भरपूर बातों से ज्यादा विश्वास से लबालब उसके प्रेम ने उसे उसका दीवाना बना दिया. उसने अपने उन्हीं कालेज के दिनों में ही उससे विवाह करने के इरादे बना लिये थे. नीलू ने उसे जीत ही लिया था.
सोचते-सोचते सुदेश के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई, उसे नीलू की सहेली गरिमा की कही बात याद जो आ गई. दरअसल नीलू उसे एक दिन शहर में मिल गई थी. सुदेश उसे अपने एक दोस्त के कमरे में ले गया था, दोस्त तो उन दोनों को अकेला छोड़कर चला गया था. लेकिन उनके तीन चार घंटे कब बीते, उन्हें पता ही नहीं लगा. एक दूसरे की बाहों में एक दूसरे को निहारते, बातें करते, दीवानगी का चरम.
कहते हैं प्यार की बातें सहेली या दोस्त को बताये बगैर चैन नहीं मिलता नीलू ने भी यह बात अपनी सहेली गरिमा को बताई जब गरिमा ने कहा- असली बात तो बताई ही नहीं तो नीलू के मना करने पर उसे विश्वास ही नहीं हुआ. लम्बी-चौड़ी कसमें खाने के बाद जब उसे विश्वास हुआ तो बोली- वो डर गया होगा, डरपोक मर्द…
(Haar Story Nikhilesh Upadhyay)
सुदेश जब भी नीलू से कहता- हम अवश्य शादी करेंगे तो वो कहती हमारी शादी नहीं हो पायेगी क्योंकि हमारी जाति अलग-अलग है. सुदेश गुस्से में कहता- मैं नहीं मानता जाति-वाति, मैं घरवालों के विरोध के बावजूद तुमसे विवाह करूँगा. शादी करोगे, घरवालों से नाराजी लेकर, घर से निकाल देंगे तो कहाँ रहोगे, क्या खिलाओगे महाराज जी!” नीलू के उलाहने पर वो कहता- पढ़ाई किसलिये कर रहा हूँ नौकरी करूँगा, अरे! तुझको तो तेरे एक दर्जन बच्चों सहित पालने की काबिलियत है मुझमें.” “ठीक है राजा साहब, नौकरी लग जायेगी तो कर लेना घरवालों से विद्रोह करके भी शादी. फिर कहती वैसे मेरा भी एक सपना है, अगर हमारी आपस में शादी नहीं हो पाई तो फिर मैं अपनी लड़की की शादी जरूर तुम्हारे बेटे से करूँगी. तब तक थोड़ा जमाना बदल जायेगा. अपने मियाँ को कैसे भी मैं राजी कर लूँगी, तुम तो तैयार ठैरे ही अपनी पत्नी को भी राजी कर ही लोगे. क्यों?” सुदेश तब गम्भीरता से मुस्करा भर पाया था.
सुदेश ने मामा के यहाँ रहकर बी.ए. किया, बाद में वो दिल्ली चला गया. कमबख्त परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि नीलू से सम्पर्क ही समाप्त हो गया. पत्र भेजने की कोई गुंजाईश तो थी ही नहीं और आज की तरह तब घर-घर टेलीफोन लगे नहीं थे. खैर वह कम्पटीशन की तैयारियां करता रहा और एक दिन जब वह नौकरी लगने के बाद मामा के घर मिठाई लेकर गया तो पता लगा कि नीलू की तो शादी भी हो गई है. उसका मन व्यथित हो गया. खैर उसे नीलू का वर्तमान पता किसी तरह मिल गया, उसे आश्चर्य हुआ कि नीलू भी उसी शहर में रह रही थी, जहाँ वह स्वयं नौकरी कर रहा था.
बहरहाल वह वापस अपनी नौकरी पर पहुँच कर उससे मिलने गया था. नीलू ने घर आये मेहमान का स्वागत किया, पुरानी कोई बातें ही नहीं हुई, उसने उसे विवाह की बधाई दी उसने उसको नौकरी लगने की. बातचीत में ही उसे यह भी पता लगा कि नीलू का पति प्राईवेट फैक्ट्री में काम करता है. चाय समाप्त कर वह जाने लगा तो नीलू ने रोका, वह सोचने लगा शायद जो बातें अभी तक नहीं हो पाई हैं नीलू उन्हीं का सिलसिला शुरू करेगी. लेकिन नीलू ने कहा, “सुनो! तुम दुबारा यहाँ कभी मत आना” सुदेश अचकचाया और बोला ठीक है लेकिन एक शहर में रहते हुये मिलने का मन तो करेगा ही. उसने कहा- मुझे मालूम है, अपना पता बता दो मैं स्वयं मिल लिया करूंगी.
(Haar Story Nikhilesh Upadhyay)
तीन चार वर्ष गुजर गये, नीलू वार-त्यौहार उससे मिलती, कुछ बनाकर लाती और हमेशा एक ही बात कहती- शादी कब कर रहे हो? शादी कर लो ना! हाँ वह स्वयं इस बीच एक बच्ची की माँ भी बन गई थी. अचानक एक दिन उसे लोकल अखबार के माध्यम से पता लगा कि नीलू के पति की दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. वह तत्काल उसके घर गया वह बेचारी बड़ी ही असहाय स्थिति में पड़ गई थी.
बहरहाल समय-स्यन्दन का चक्र रूकता थोड़ी है दुनिया चलती रहती है. कुछ दिनों बाद नीलू ने उसे बुलाकर अपने पति के बीमे के कागज दिखाये और कहा- मुझे तो कुछ जानकारी नहीं है, ये बीमे के कागज हैं, कार्यवाही करके कुछ मिल सकता है क्या? सुदेश कागजों को लेकर घर आ गया, बीमे की पॉलिसी कालातीत हो चुकी थी किश्तें ही जमा नहीं हुई थी. सुदेश के दिमाग में एक विचार कौंधा, वो नीलू की सहायता करना चाहता था लेकिन जानता था कि वो सहायता लेगी नहीं. उसने योजनानुसार नीलू को जाकर बताया कि पॉलिसी के अनुसार तुम्हें हर माह एक निश्चित रकम जीवनयापन के लिये मिलती रहेगी ऐसा करो तुम बैंक में जाकर अपना खाता खुलवा लो. इसके अलावा उसने प्रयास करके नीलू को पास के ही एक प्राईवेट स्कूल में टीचर की नौकरी पर भी लगवा दिया.
अब सुदेश हर माह चुपचाप नीलू के बैंक खाते में अपनी तनख्वाह मिलते ही एक निश्चित रकम जमा करता रहता, उधर नीलू सोचती कि बीमा विभाग से उसके खाते में पैसा आ रहा है, उससे उसका खर्च व बचत दोनों हो जाती छोटी सी नौकरी भी थी ही, उसका समय भी कट जाता. सुदेश से मुलाकातें पहले की तरह ही कभी-कभार होती दिन-महीने-साल गुजरते रहे. नीलू की बेटी ‘दिति’ बड़ी होती गई.और आज उसके विवाह का कार्ड भी आ गया.
ओह! सुदेश एकदम से वर्तमान में आ गया. उसी शाम को वह नीलू के घर गया. उसके गाँव के लोग भी आ गये थे. पता लगा कि इधर का ही दक्षिण भारत में बस गया परिवार है जो अपनी संस्कृति संस्कारों में पली-बढ़ी लड़की चाहता था. नीलू के पति के बिरादरी के ही एक व्यक्ति ने यह रिश्ता करवाया था. लड़के वाले विवाह के लिये यहीं आये हुये थे. खैर बगैर लम्बे-चौड़े तामझाम के सादगी पूर्ण तरीके से दिति के हाथ पीले हो गये.
विदाई के बाद सुदेश तो चला गया था. नीलू के घर पर यह चर्चा चली कि नीलू ने बहुत छोटी नौकरी में अपना गुजारा करते हुये किसी तरह अपनी बेटी का विवाह भी कर ही दिया. इस पर नीलू बोली- मैने क्या? सबकुछ तो उसके पापा का ही किया धरा है, उनके बीमे के पैसों से ही यह सब हो पाया, हर महीने बीमे के पैसे आते रहते हैं. लोग चौंके. एक ने तो नीलू से कह भी दिया ऐसा कौन सा बीमा कराया दिति के पापा ने, हमारी तो कुछ समझ में नहीं आया.
बात आई-गई हो गई लेकिन नीलू के मन में अटक गई. उसने बैंक जाकर जानकारी ली तो पता लगा कि उसके खाते में सुदेश नामक व्यक्ति के खाते से चैक द्वारा पैसा ट्रॉसफर होकर जमा होता रहता है. नीलू सन्न रह गई. सुदेश ने विवाह भी नहीं किया बगैर बताये इस तरह मेरी मदद करता रहा. उसके मन में क्या है? उसने यह सब क्यों किया? क्या मिल रहा है उसे यह सब करके? सोचते सोचते नीलू हारने लगी थी. दूर कहीं अतीत में जिस सुदेश को उसने जीता था उससे वो हार रही थी.
(Haar Story Nikhilesh Upadhyay)
-निखिलेश उपाध्याय
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यातायात सहकारी संस्था से लेखाकार के पद से सेवानिवृत्त निखिलेश उपाध्याय मूल रूप से रानीखेत के रहने वाले हैं वर्तमान में रामनगर, नैनीताल में रहते हैं.
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