गुडी गुडी डेज़
(स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में है…)
अमित श्रीवास्तव
न गर्मी न जाड़े के गुदगुदे से दिन थे गुडी गुडी में. सुबह के ठीक सात बजे थे. देवकीनंदन पाण्डे अपना गला खंखार चुके थे. पहले वाक्य का आधा यानि ‘आकाश…’ तक ही पहुंचे थे कि रेडियो में किर्र-किर्र सी वाणी हुई और जाने कहाँ का सिग्नल पकड़ लिया. एक अजीब सी तरन्नुम में लिपटी वार्तालाप सुनी थी हम सब मुहल्ले वालों ने. तुम्हें याद हो के न याद हो गुडी गुडी मुहल्ले में एक थाना खुला था और कारण या निवारण के पचड़ों से असम्पृक्त वहां अपराध बढ़ने लगे थे और स्कॉटलैंड यार्ड से बॉबी चा को एक्सपर्ट के रूप में बुलाया गया था. ये वार्तालाप सम्भवतः बॉबी चा और थाने के हेड मुहर्रिर लल्लन पांडे उर्फ़ ललपा के बीच हुआ था. तरन्नुम निकाल कर वो वार्तालाप यादाश्त के आधार पर यहां प्रस्तुत है. सुनिए. आप भी मुआमला गुनिये-
– ट्रिन-ट्रिन… हैलो किर्र किर्र हैलो हैलो किर्र पांडे… हां बोलो
– बोलना क्या सर शहर के लोगों को शब्दों के झुनझुने से बहलाना पड़ा
बिना ऊपरी आदेश के कर्फ्यू लगवाना पड़ा
अब कार्यवाही सुसुप्ताचरण में है
स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में है
हमसे कोई ग़लती तो नहीं हुई
– किर्र ओए नहीं-नहीं तुमसे ग़लती हो सकती है कहीं? किर्र-किर्र पर ये शब्दों का झुनझुना क्या बला है
– आप तो उस्ताद हो सर सब जानते ही हो कि ये सालों का सिलसिला है
हमें विरासत में मिला है
जब ज़रूरत हल्की हो तो सब सामान्य दिखाते हैं
सौ पर चवालीस की घात चढ़ाते हैं
पर अगर ज़रूरत बल्की हो तब बिसात ज़रा बड़ी बिछाते हैं
शांति की पीठ कर्फ्यू की कुहनियों पर टिकाते हैं
– किर्र ललपा ओ लल्लन… किर्र किर्र इतना डीप न जाओ
ज़रा असल कारण तो बताओ
इधर तू बात के बतंगड़ में है
उधर स्थिति तनावपूर्ण किंतु नियंत्रण में है
– तो सुनिए
सिर धुनिये
दो धर्मों में पंगा
पंगा, तो दंगा
दंगा, तो हलचल
हलचल, तो अफवाही दलदल
अफवाहें, तो फिर से तनाव
तनाव, तो मनचलों की कांव-कांव
कांव-कांव, तो मन के जूते पर शक की पॉलिस
शक, तो धारा एक सौ चवालीस
एक सौ चवालीस, तो शहर का दिमाग जाम
जाम, तो सुगबुगाहट का बाम
सुगबुगाहट, तो मैं-मैं तू-तू
तू-तू, मैं-मैं, तो कर्फ्यू
हुजूर, असल कारण तो अभी मंत्रण में है
और स्थिति तनावपूर्ण किंतु नियंत्रण में है
– किर्र अजीब किर्र… हालात हैं
क्या नीति नियंत्रक हमारे साथ हैं
– कैसी बात कर दी हुज़ूर उन्ही का तो हाथ है
– किर्र क्या शांति बनाने में
– ना उठाने, बिठाने, झाड़ पोछ कर बिछाने में
उनका अद्भुद सहयोग है
ये अजब हठयोग है
वो सूरज सा जला कर चन्दन मलते हैं
पहले वो घाव करते हैं फिर मलहम धरते हैं
– किर्र किर्र पर तुमने तो जड़ में इसके बताया जातिगत तनाव, क्षेत्रवाद, धार्मिक उन्माद हैं
– हां, पर ये खुद तो संकीर्ण राजनीति के फोड़ों का मवाद हैं
धरम अपने लिए खुद नहीं आता जाति खुद नहीं बोलती
महाराष्ट्र हो, बिहार हो या एम पी, धरती कहीं नहीं डोलती
वो कौन है जो मूरत में सूरत चढ़ाता है
मन्दिर में मस्जिद, मस्जिद में मन्दिर दिखाता है
ये किसकी रोटी किसकी दस्तार है
ये कौन ठेकेदार है
ये किसके पास सबकी आहत भावनाओं का ठेका है
किसने भविष्य के आईने से इतिहास में घुस के देखा है
सारा खेल ही इसके सामाजिक अभियन्त्रण में है
पर सर स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में है
– किर्र पांडे किर्र बातों के इतने भी न झोल बताओ
अब ज़रा पुलिस का सही-सही रोल बताओ
– हम तो कुत्ता भगाने की लकड़ी हैं दरवाज़े के पीछे टिके हैं
बड़े सस्ते में बिके हैं
जब मालिक चाहे तब कुत्ता भगाते हैं
वगरना खाली पीली गुर्राते हैं
ये बात भी खासी मजेदार है
कि लकड़ी कुत्ते से ज़्यादा वफादार है
– किर्र पर कहते तो ये हैं कि किर्र किर्र कानून के हाथ लम्बे हैं
– ये सब बातों के वो तुम्बे हैं
जो बस पानी पिलाने के काम आते हैं
कड़वे इतने कि ज़ुबान जलाते हैं
पर जो अपने अहाते में उगाते हैं
उनकी ख़ातिर कतई पिलपिले हो जाते हैं
– किर्र हमने तो सुना है यहाँ रूल ऑफ़ लॉ है
– हमने भी बस सुना है
नून यहाँ से जा चुका है
अब रूल ऑफ़ ‘का’ है
और जिस`का’ है सब उस`का’ है और खूब मिट्ठा है
– किर्र दिल तो दे ही दिया किर्र किर्र अब क्या ईमान लेगा
खुलासा तो कर अब क्या बच्चे की जान लेगा
इधर तू बातों के मांझे, भावनाओं के लंगड़ में है
उधर स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियन्त्रण में है
– किर्र बता ज़रा क्या कर्फ्यू दंगों की फैक्ट्री का जाम है?
– ना, ऑयल है, ग्रीज़ है, बाम है
– किर्र सियासी घोड़े को लगाम है?
– ना, बुलेट ट्रेन इन क्लासिक लुकिंग ट्राम है
– किर्र जाहिल सीनों की खंखार है?
– ना, बासी कढ़ी को नशीली बघार है
– किर्र उदासी की रौनक है?
– ना, सियासी तलवारों की चमक है
– किर्र समाज के दिल का अंदरूनी घाव है?
– ना, उसके चेहरे पर खिंचा तनाव है
तनाव कोई भी ला सकता है नियन्त्रण किसी का भी हो सकता है
पर जो तनाव में आता है आटा उसी का पिसता है
तनाव पहले आया या नियन्त्रण बताना ज़रा मुश्किल
– किर्र अरे रुको… किर्र अरे थामो… किर्र किर्र जस्ट चिल बडी जस्ट चिल… किर्र… इयम् आकाशवाणी, सम्प्रति वार्ताः श्रूयन्ताम्, प्रवाचकः बलदेवानन्दसागरः… ओह्ह! एक किर्र के साथ वो अजीब वार्तालाप कट गया और रेडियो ने अपना राग पकड़ा. लेकिन तब तक लोगों में बेचैनी बढ़ गई थी. मुहल्ले में तनाव बढ़ गया था. रहीम चाचा ने फिर से पूछा है इतना सन्नाटा क्यों है भाई. भाई, भाई सुनाई नहीं देता. भाई, भाई दिखाई नहीं देता क्योंकि जो दिख रहा था वो ये कि अहमद मियाँ की बहुत उखड़ी हुई सांस है क्योंकि उनके हाथ में पकड़ा गया मास है. डंडे, पत्थर, झंडे सब तैयार हैं. कुछ भावनाएं भी हैं जो आहत होने को बेकरार हैं. सान है, तलवार है बस नारों, फब्तियों, गालियों का इंतज़ार है. पटाक्षेप अब इनके आमन्त्रण में है. कुल मिलाकर स्थिति तनावपूर्ण किंतु…
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.
अमित श्रीवास्तव
उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता).
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