गढ़वाल की लोक गाथाओं एवं देवगाथाओं (घड़ियाला/जागर) के अनुसार सिदुआ, बिदुआ नामक भाइयों को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है. ये दोनों भाई रमौला (सेममु-खेम) के गंगू रमौला के पुत्र थे. दोनों भाई गुरु गोरखनाथ के अनुयायी होने के साथ-साथ महान वीर और तांत्रिक भी थे. इनमें सिदुआ भगवान कृष्ण का भक्त था.
गढ़वाल के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी डोरूं-थाली बजाकर घड़ियाला लगाया जाता है. सिदुआ, बिदुआ से सम्बंधित गाथाओं में कहा जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण जब केदारखंड की यात्रा करते हुए रमौली पहुंचे तो उन्हें यह जगह बहुत पसंद आ गयी. उन्होंने जमींदार गंगू रमौला से कहा कि उन्हें यह जगह बहुत रमणीक लग रही है, वे यहाँ रहना चाहते हैं. इस पर गंगू रमौला ने उन्हें स्थान देने की बात करते हुए शर्त रखी कि यदि वे सैम-मुखेम में रहने वाली राक्षसी का वध कर दें तो उन्हें रहने की जगह दे दी जाएगी.
श्रीकृष्ण ने अपने अनन्य भक्त सिदुआ के साथ मिलकर उस राक्षसी का वध कर डाला. इसी ख़ुशी में सिदुआ ने डोर-थाली बजायी और श्रीकृष्ण ने उसकी धुन में नृत्य किया. (तुल, सिदुआ बजौ डोरथाली, श्रीकृष्ण करत अनमन भांति को नाच)
गढ़वाल में प्रचलित लोकश्रुति के अनुसार यह भी माना जाता है कि ये सैम-मुखेम के बुड़ घांगु गंगू रमौला के पुत्र थे. घांगु नागदेवता का परम भक्त था, किन्तु उसके कोई संतान न थी. नागराजा की कृपा से ही उसके ये दोनों पुत्र हुए थे. घांगु की 120 बकरियां थीं और उन्हें चराने का काम सिदुआ के जिम्मे था. सिदुआ का विवाह कौलों की बहन बिजोरा से हुआ था. उसकी भी दो संतानें हुईं, श्रीनाथ तथा श्रीनाथी. कालू वजीर ने उनका अपहरण कर लिया था. सिदुआ ने कालू की सेना पर आक्रमण करके उसे हराया और अपने बच्चों को छुड़ा लिया.
उत्तराखण्ड के चरवाहों, पशुपालकों में इन्हें पशुरक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है. पशुओं के बीमार होने पर भी स्वास्थ्य लाभ के लिए इनकी पूजा-आराधना की जाती है. कुमाऊं में इनके जागर भी लगाये जाते हैं. इन्हें महामाया गड़देवी का धरमभाई भी माना जाता है.
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डीडी शर्मा, के आधार पर)
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2 Comments
Anshul Kumar Dobhal
सेम-मुखेम को तो सही लिख लो,
एडिटिंग भी तो हो सकती है।
लेख में में कई अशुद्धियाँ हैं, जो सरासर प्रिंटिंग मिस्टेक लगती हैं।
कहानी भी सही से नहीं लिखी गयी है।
Anshul Kumar Dobhal
उपरोक्त कमेंट में प्रिंटिंग का मतलब टाइपिंग है।