उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के नैनीताल जिले का एक छोटा सा क़स्बा है भवाली. यह क़स्बा समुद्र तल से 1,654 मीटर की उंचाई पर बसा है. भवाली कुमाऊँ मंडल का एक महत्वपूर्ण क़स्बा है. यह कुमाऊँ की सबसे बड़ी मंडी हल्द्वानी से पहाड़ी क्षेत्र को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है. नैनीताल से 11 किमी के दूरी पर अवस्थित भवाली सातताल, नौकुचियाताल, भीमताल, रामगढ़, मुक्तेश्वर, अल्मोड़ा, रानीखेत और बागेश्वर शहरों को जोड़ने वाला जंक्शन भी है.
भवाली की आबोहवा को बीमार और असक्तों के लिए बहुत मुफीद माना गया है. वातावरण को स्वास्थ्यकर पाने की ही वजह से 1912 में यहाँ टीबी के रोगियों के लिए सेनीटोरियम की स्थापना भी की गयी. उन दिनों टीबी उतनी ही जानलेवा बीमारी हुआ करती थी जितनी आज कैंसर और एड्स हैं. कमला नेहरू ने भी यहाँ अपना खासा वक़्त गुजारा और स्वास्थ्य लाभ लिया.
भवाली में भारतीय वायु सेना का एक महत्वपूर्ण स्टेशन भी है. 2004 में यहाँ उत्तराखण्ड न्यायिक एवं विधिक अकादमी (Uttarakhand Judicial and Legal Academy) की भी स्थापना की गयी है. यहाँ अकादमी का प्रशिक्षण केंद्र व हॉस्टल है. इसमें जजों तथा अन्य न्यायिक विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जाता है. इसके अलावा यहाँ जजों के लिए कई तरह के ट्रेनिंग प्रोग्राम तथा सेमीनार भी आयोजित किये जाते हैं.
घोड़ाखाल शब्द का अर्थ है –घोड़ों के लिए पानी का कुंड. घोड़ाखाल भवाली कस्बे से 4 किमी की दूरी पर है. घोड़ाखाल एक जमाने में रामपुर के नवाब की स्टेट हुआ करता था. समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊँचाई पर बसा घोड़ाखाल अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य व ठंडी आबो-हवा के लिए जाना जाता है. घोड़ाखाल के नयनाभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य की वजह से 1958 में तब के प्रख्यात फिल्म निर्माता, निर्देशक बिमल रॉय ने इसे वैजयंती माला, दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म मधुमती की शूटिंग के लिए चुना था.
इस फिल्म का ख़ासा फिल्मांकन घोड़ाखाल, भवाली और आसपास के इलाके में ही हुआ था. हाल ही में बिमल रॉय की बेटी रिंकी रॉय भट्टाचार्य ने मधुमती के निर्माण पर ‘बिमल रॉयस मधुमती: अनटोल्ड स्टोरीज फ्रॉम बिहाइंड दा सीन्स’ किताब भी लिखी एवं प्रकाशित की है. इसके लिए उन्होंने इस पूरे इलाके में कई दफा भ्रमण कर बहुत सारे लोगों से मुलाकात भी की. प्रख्यात फिल्म निर्देशक बासु भट्टाचार्य की पत्नी रिंकी जानी-मानी डाक्यूमेंट्री फिल्ममेकर, लेखक तथा पत्रकार होने के साथ ही चिल्ड्रेन्स फिल्म सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की पदाधिकारी भी रह चुकी हैं. रिंकी ‘बिमल रॉय मेमोरियल एंड फिल्म सोसायटी’ का भी सञ्चालन करती हैं.
यहाँ पर सैनिक स्कूल सोसायटी (Sainik School Society) द्वारा संचालित सैनिक स्कूल भी है. सैनिक स्कूल घोड़ाखाल (Sainik School Ghorakhal.) रक्षा मंत्रालय के अधीन संचालित होने वाला यह स्कूल देश भर के विभिन्न राज्यों में संचालित किये जाने वाले 26 सैनिक स्कूलों में से एक है. सैनिक स्कूलों की इस अवधारणा को 1961 में तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके मेनन के द्वारा अमली जामा पहनाया गया था.
सैनिक स्कूल विभिन्न राज्यों से सेना के लिए योग्य अफसर तैयार करने की गरज से शुरू किये गए थे. इन स्कूलों की स्थापना का उद्देश्य सेना के विभिन्न घटकों के अफसरों के बीच क्षेत्रीय तथा वर्गीय संतुलन को दुरस्त करना था. सीबीएसई पाठ्यक्रम के तहत 6 से 12वीं तक की पढ़ाई करवाने वाले सैनिक स्कूलों में छात्रों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) में चयन के लिए तैयार किया जाता है.
500 एकड़ में में फैले सैनिक स्कूल घोड़ाखाल की स्थापना 21 मार्च 1966 में की गयी. यह सैनिक स्कूलों की श्रृंखला की शुरुआत में बनाये गए सैनिक स्कूलों में से एक है. इस स्कूल ने सेना को कई काबिल अफसर दिए हैं.
ग्वल, बाला गोरिया, गौर भैरव आदि नामों से भी पहचाने जाने वाले गोलू देवता उत्तराखण्ड की जनता के इष्ट देव हैं. गोलू पहाड़ में लगने वाली जागरों में अवतरित होने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय देवता हैं. यहाँ के हर गाँव में गोलू देवता के थान स्थापित हैं. गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है और इनके कई मंदिर दुनिया भर में मशहूर हैं.
चम्पावत, ताड़ीखेत, चितई तथा घोड़ाखाल में स्थापित गोलू देवता के मंदिर देश-विदेश में लोकप्रिय हैं. ये मंदिर श्रद्धालुओं की अर्जियों और मन्नत पूरी होने के बाद चढ़ाई गयी घंटियों से लकदक रहते हैं. यहाँ पर श्रद्धालु सादे कागज व स्टाम्प पेपर पर लिखकर मन्नत मांगते हैं और न्याय की गुहार लगाते हैं. कामना पूरी होने पर यहाँ घंटी-घड़ियाल चढ़ाने की परंपरा है.
गोलू देवता के घोड़ाखाल मंदिर में चढ़ाई गयी सैंकड़ों घंटियों में से एक है नेपाल के तत्कालीन प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोईराला द्वारा चढ़ाई गयी एक बड़ी सी घंटी. जिस पर –नेपाल का घंटा, विक्रम सम्वत 2056 आश्विन 22 गते, रविवार, तद्नुसार सन 1955, अक्टूबर को नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री गिरिजा प्रसाद कोईराला के कर-कमलों द्वारा श्री परमेश्वर गोलू बाबा के चरणों में अर्पित किया– अंकित किया गया है. 2006 में विवाह फिल्म के कई महत्वपूर्ण दृश्य भी यहीं फिल्माए गए थे.
घोड़ाखाल के गोलू देवता के मंदिर के बारे में कहावत है कि महरागांव की महिला को अपने ससुरालियों द्वारा सताया जाता था. एक दिन महिला अपने चम्पावत स्थित मायके के गाँव पहुँच गयी और गोलू देवता से न्याय की गुहार लगाई. गोलू इस महिला के साथ यहाँ आये और तभी से यहाँ विराजमान हैं. मंदिर में घोड़े पर सवार गोलू देवता की संगमर से बनी मूर्ति स्थापित है. मंदिर के गर्भगृह में दुर्गा की मूर्ति भी विराजमान है.
मंदिर में रोजाना ही श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है. नवरात्रियों में दर्शनार्थियों की यह भीड़ खासी बढ़ जाती है. श्रावण मास में गोलू देवता का सैकड़ों लीटर दूध से जलाभिषेक किया जाता है और इस दूध को इकट्ठा करने के बाद बनायी गयी खीर का प्रसाद भक्तों के बीच बांटा जाता है.
अर्जिया, मन्नत की प्रार्थनाओं की चिठ्ठियों और घंटियों के अलावा घोड़ाखाल मंदिर में सादगी भरे विवाह संस्कार भी कराये जाते हैं. पहले यहाँ घंटियाँ-घड़ियाल अर्पित किये जाने के साथ ही पशुबलि का भी खूब प्रचालन था. बाद में पशुबलि पर रोक लगा दी गयी.
—सुधीर कुमार
गोलू देवता के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें हमारी अन्य पोस्ट: गोलू देवता की कहानी
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घोड़ाखाल गोल्ज्यू महाराज का मंदिर चंद राजा बाजबहादुर चंद द्वारा निर्मित है
I am a product of this famous Sainik School Ghorakhal, a paradise on earth. This school has very dedicated teaching and administrative staff, who have moulded physical, mental and social life of nearly 3500 young indians boys in last 53 years with constructive & patriotic character along with nation building qualities in all good careers of life......it was nice to read about the school and its surroundings......Jai Golu Devta...
It's a very nice initiative to know our sate and locale.. Appreciated ?