हैडलाइन्स

आज पकवानों की सुंगध बिखरेगी हर पहाड़ी परिवार में

आज सावन के महीने की आखिरी रात है. आज की रात पहाड़ियों के घर पकवानों की ख़ुशबू से महक उठते हैं. पूड़ी, उड़द की दाल की पूरी व रोटी, बड़ा, पुए, मूला-लौकी-पिनालू के गाबों की सब्जी, ककड़ी का रायता आदि पकवानों को घी के साथ आज के दिन खाया जाता है.
(Ghee Sankranti Festival Uttarakhand 2021)

पहाड़ियों का जीवन उनके ही जैसा सादा होता है और उनके त्यार भी बिना किसी अनुष्ठान के परिवार वालों के बीच ही मनते हैं. घ्यू त्यार भी पहाड़ियों की सादगी से जुड़ा ऐसा ही एक त्यार है. रात को पकवान के बाद अगली सुबह घी डालकर खीर खायी जाती है.

पहाड़ के त्यारों का अपना प्राकृतिक महत्त्व भी खूब है. घ्यू त्यार तक पहाड़ों में खूब झड़ (बारिश) लगा रहता है. लगातार लगे इस झड़ में काम तो छोड़ा नहीं जा सकता है सो कच्यार हो या उफनते नाले पहाड़ियों को दोगनी मेहनत से काम करना होता है.
(Ghee Sankranti Festival Uttarakhand 2021)

माना जाता है कि घ्यू संक्रांत के बाद से बारिश भी कम हो जाती है और काम करने के लिये सुहाने मौसम की शुरुआत होती है. हो सकता है हमारे पुरखों से अगले मौसम की मेहनत के लिये कमर कसने को ही इस दिन को चुना हो. चौमास की जैसी धिनाली को कभी बैठकर भी खाना ही चाहिये.

अब तो पहाड़ में घर भी कम बचे हैं और लोग भी. पर जो लोग यहां से निकले हैं अपने झोलों में पहाड़ की खुशबू समेटे ही चले हैं इसलिए आज के दिन दुनिया के कोने-कोने में बसे पहाड़ियों के घर पकवानों से सुगंधित होंगे. असल पहाड़ी से मज़बूरी उसका गांव छुड़ा सकती है पर उसके भीतर रचे बसे गांव को दुनिया की कोई मज़बूरी न छुड़ा सकती है न भुला सकती है.
(Ghee Sankranti Festival Uttarakhand 2021)

काफल ट्री डेस्क

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago