Featured

ऐवरेस्ट में चढ़ने वाला पहला पर्वतारोही

जार्ज मैलेरी एक मात्र पर्वतारोही था जिसने ब्रिटिश सरकार के ऐवरेस्ट में पर्वतारोहण करने के सन् 1921, 1922 और 1924 के अभियानों में हिस्सा लिया था. मैलोरी का जन्म 18 जून 1886 में हुआ था और उसका देहान्त 1924 के अभियान के दौरान 8 जून 1924 में हुआ. उस समय उसकी आयु 38 साल से कुछ कम थी.

जार्ज मैलेरी

बचपन से ही मैलेरी एडवेंचर के शौकिन थे और रॉक क्लाइम्बिंग किया करते थे. उन्होंने 1905 में मैग्डेलेन कॉलेज में हतिहास के शिक्षक के तौर पर भी कार्य किया. उनके इस काम में उस समय रुकावट पैदा हुई जब 1914-18 में विश्व युद्ध की शुरूआत हुई जिसके दौरान उन्हें फ्रांसीसी सेना में गनर के तौर पर जाना पड़ा. इस युद्ध के बाद उनकी छवि एक साहसिक पर्वतारोही की बन गयी.

सन् 1921 तक ऐवरेस्ट बिल्कुल अनछुआ था और इसके बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी. इसकी जानकारियों को इकट्ठा करने के लिये ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने इस पर जाने का निर्णय किया. जिसमें मैलरी का चयन भी किया गया.

मैलरी इस अभियान दल के लीडर थे. यहाँ की स्थितियाँ बहुत विकट थी और इन पर्वतारोहियों के पास इन स्थितियों से निपटने के लिये भरपूर संसाधन न होने के कारण वापस आना पड़ा.

सन् 1922 में अच्छी तैयारियों के साथ अभियान दल ने फिर से एक नई शुरूआत की. उस समय यह अभियान दल 27,000 फीट की ऊँचाई तक पहुँच गया था जो कि एक रिकार्ड था पर अभी भी उन्हें 2,000 फीट ऊपर और जाना था ऐवरेस्ट में विजय पाने के लिये. मैलरी ने निर्णय किया था कि दूसरी बार वो इसमें सफलता पा लेंगे पर इस समय एक भयानक ऐवेलॉन्च आ गया जिसमें 7 शेरपा दफन हो गये और इस अभियान को आधे में छोड़ कर बेहद दुःखी मन से मैलरी को वापस आना पड़ा. उन्हें शेरपाओं को खो देने का मलाल हमेशा बना रहा जिसके लिये वह स्वयं को भी दोषी मानते थे.

1924 में बेस कैम्प में.

1924 में जब फिर से एक बार ऐवरेस्ट पर पर्वतारोहण की बात हुई तो मैलरी इसमें जाने के इच्छुक नहीं थे क्योंकि वो पिछले हादसे को अपने ज़हन से निकाल नहीं पाये थे साथ ही वो अपनी पत्नी रुथ और अपनी नौकरी को भी नहीं छोड़ना चाहते थे पर अंततः वो इस अभियान में जाने के लिये तैयार हो गये.

इस अभियान में वो अपने सह पर्वतारोही इरविन के साथ ऐवरेस्ट के काफी निकट तक जा पहुंचे थे. उस समय वो ऐवेस्ट से मात्र 650 फीट नीचे थे. पर उसी समय मौसम फिर से गड़बड़ा गया और वो और इरविन इसमें गायब हो गये. उनके मित्र ओडल दो बार 27000 फीट तक जाकर उन्हें ढूँढने के कई प्रयास किये पर उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा.

मैलरी और उनकी पत्नी रुथ

उसके बाद से यह एक पहेली बनकर रह गया कि मैलरी व इरवीन ऐवरेस्ट से वापस आते समय गायब हुए थे या ऐवरेस्ट पर चढ़ते समय. 75 साल बाद 1 मई 1999 को मैलोरी का शरीर मिला. उसके कपड़ों मे उसका नाम कढ़ा हुआ था और उसके साथ वह रस्सी भी थी जिसका इस्तेमाल 1924 में हुआ था. उनका शरीर ऐवरेस्ट से लगभग 2,000 फीट नीचे मिला. इरविन का शरीर अभी तक भी नहीं मिल पाया है.

मैलेरी के कुछ कागजाद उनके शरीर के साथ मिले पर उनकी पत्नी रुथ की तस्वीर उनके साथ नहीं थी जिसे वो हमेशा अपने पास रखा करते थे. इस तस्वीर के न मिलने से इस बात के कयास लगाये जाते रहे कि वो शायद एवेरस्ट तक पहुंचे थे क्योंकि वो हमेशा कहा करते थे कि वो अपनी पत्नी रुथ की तस्वीर दुनिया की सबसे उंची चोटी पर रख कर आयेंगे लेकिन यह सब अभी तक भी अनबुझ पहेली की तरह बना हुआ है.

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

विनीता यशस्वी

विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

View Comments

  • Very interesting and motivating post. But one photo included in this post showing the group at base camp in 1924 is very disturbing. One British officer standing second from left , name I don't know, is putting his boot on the shoulder of a companion (most probably Sherpa).

Recent Posts

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

3 hours ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

1 day ago

यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना

यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…

1 day ago

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

2 days ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

2 days ago

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

3 days ago