ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी स्कंदपुराण में गंगावतरण की तिथि कही गयी जिसे गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है. ऋग्वेद के नदी सूक्त में गंगा के अनुपम स्वरुप का वर्णन है. तदन्तर महाभारत के अनुशासन पर्व, विष्णु पुराण, मतस्य पुराण, वराह पुराण, मार्कण्डेय पुराण और केदार खंड में गंगा की उत्पत्ति व इसके अवतरण की कथा कही गई.
(Ganga Dashahara in Uttarakhand 2020)
शिवानंद नौटियाल लिखते हैं कि नदी का स्वाभाविक मार्ग तो है ही. कई जगह नदियों के मार्ग के लिए विशाल पाषाणों को, चट्टानों को काटा जाना, जलधाराओं के विभिन्न मोड़, हिमनदों के मुहाने का मुख भारत की वसुंधरा की ओर करने में अनगिनत कठिन मानवीय प्रयास किए गए .मनुष्य के द्वारा किए गए यही प्रयत्न भागीरथ प्रयास कहे गए. भागीरथ की यह महत्वाकांक्षा ही भागीरथी का शाब्दिक जीवन प्रतिबिम्ब बन गई. गंगा अवतरण में राजा भागीरथ के पूर्वजों ने अनवरत प्रयासों की श्रृंखला लगातार बनाये रखी थी जिसमें अंततः भागीरथ को सफलता मिली.
(Ganga Dashahara in Uttarakhand 2020)
पहले गंगा तिब्बत प्रदेश में पूर्व से उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित थी. ऐसे में उत्तर भारत में अक्सर अकाल पड़ जाते थे.सगर के साठ हज़ार पुत्रों से तात्पर्य उनकी प्रजा से था. भागीरथ इक्ष्वाकुवंशीय सम्राट दिलीप के पुत्र थे जिन्होंने अपने प्रपितामह असमंज, पितामह अंशुमन एवं पिता दिलीप का अनुसरण करते हुए अपने पूर्वज सगर के पुत्रों अर्थात प्रजाजन के उद्धार के लिए गंगा को इस धरती पर लाने का उपक्रम यथावत रखा. ऐसे प्रयत्न और प्रयासों से गंगा प्रसन्न हो गई. अब गंगा में अविरल जल प्रवाह था. वेग था, जिसे पृथ्वी पर उतारना कठिन समस्या बन गई. समाधान गंगा ने ही सुझाया. कहा कि भगवान शंकर की आराधना हो. भगवान शंकर गंगा के वेग व प्रवाह को अपनी जटाओं में धारण करने को तैयार हो गए. शिव ने अपनी जटा के एक बाल को तोड़ कर उससे जिस धार को धरा में उतारा वह अलकनंदा कहलायी. फिर अपने वेग से उतरी भागीरथी. भागीरथ आगे-आगे चल रहे थे और उनका अनुसरण करती गंगा, जो लम्बे पथ में प्रवाहित हो आखिर में कपिलाश्रम में श्राप से भस्मीभूत हुए पितरों को मुक्त कर गंगा सागर में विलीन हुई.
केदारखंड में गंगा की उत्पत्ति और गंगावतरण की कथा विस्तार से वर्णित है. इसके अध्याय 27 में महाराज सगर का जन्म, अध्याय 29 में सगर के अश्वमेध यज्ञ, अ. 30 में भागीरथ की तपस्या, अ. 31 में पितृसर्ग, अ. 34 में भागीरथ का कैलाश गमन, अ. 35 में भागीरथ को गंगा की प्राप्ति, अ. 36 में चंद्रपुर कैलाश में गन्धवों से युद्ध, अ.80 में गंगा का लोप होना, अ. 81 में भागीरथ द्वारा की गंगा जी की स्तुति, अ. 82 में शेषनाग द्वारा गंगा हरण तथा अध्याय 83 में गंगा की दस धाराएं और सगर पुत्रों से पाँडवोंकी मुक्ति की कथा वर्णित है.
वैदिक साहित्य में गंगा ऋग्वेद और अथर्ववेद में वर्णित है. वैदिक काल में ही गंगा महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुकी थी फिर उत्तर वैदिक काल से इसके तटों पर ऋषि मुनि अपने आश्रम बनाने लगे थे. तैतिरीय आरण्यक में गंगा यमुना से आरोग्य व आयुष के प्रतिफल की कामना की गई, “नमो गंगे यमुना योम्रये ये वसन्ति से मैं प्रसन्नतमा चिरं जीवितं वर्धयन्ति. नमो गंगा यमुनोमुनिर्भ्यश्च नमो नमः”.
पद्मपुराण में गंगा का मूल मंत्र, “ॐ नमो गंगाये विवरूपिण्यै नारायणये नमो नमः “वर्णित है.
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवदगीता में कहा कि धाराओं में में ही गंगा हूं-“स्त्रोत सामास्मि जाह्नवी. गंगा की महिमा भौगोलिक महत्व के साथ पौराणिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक स्वरुप से भी अतुलनीय है. गंगा के द्वारा सभ्यता का क्रमिक विकास हुआ. इसके विस्तृत जलागम क्षेत्र की आर्थिकी समृद्धि का प्रदर्शन करती रही.
(Ganga Dashahara in Uttarakhand 2020)
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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