लॉकडाउन के चलते जब सब कुछ बंद है तो ऐसे में कई किस्से खुल रहे हैं. हर वो दौर चर्चाओं में आ रहा है जिसका असर आज के ठप पड़े बाजारों से है. किस्सों की पोटली जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो है शराब. जी हाँ तमाम आपदाओं के बाद भी मय हमेशा जवान ही रही है. उसकी रंगत में जरा भी असर नहीं पड़ा. कुछ साल पहले जब बारिश से आपदा आई और खाने की मुश्किलें थी, तब भी पीने वालों के सामने कोई संकट नहीं था. जिले का मेन हाईवे कटने के बाद भी मय के प्याले छलकते रहे. Funny Lockdown Tale from Almora
नशे के तलबगार आज भी कहीं ना कहीं से अपना जुगाड़ कर रहे हैं. ऐसी बतकही ने निकले कुछ किस्से. उनमें से एक आपकी नजर कर रहे हैं. फिराक गोरखपुरी के इस शेर के साथ कि:
आए थे हँसते खेलते मय-खाने में फिराक जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
मास्स्साब का किस्सा
अल्मोड़ा बुद्धिजीवियों का नगर है. ऐसे नगर में ज्ञान बांटने वालों पर समाज की नजर कुछ ज्यादा रहती है. उन्होंने समाज खुद से एक पायदान ऊँचाई पर मानता है. इस बात का अहसास गुरू जी को भी होता है. वह पूरी एहतियात के साथ अपना औरा बनाते हैं. चाहे विद्यालय हो या बाजार, किसी की मय्यत हो या कोई मेला-ठेला, कहीं शोक सभा हो या शुभ कार्य, कुल मिलाकर सब स्थानों में आप कुछ ज्यादा ही मर्यादित दिखाई देते हैं या कहें दिखने की भरपूर कोशिश करते हैं. कई बार आप घरवालों को भी स्कूल के बच्चों को तरह हांक देते हैं. खैर छोड़िए इसे. Funny Lockdown Tale from Almora
यहां बात हो रही है मयनोशी की. अपने अल्मोड़ा का एक जाना माना विद्यालय है अशासकीय. एक दौर में उसका गजब का रुतबा था. उस विद्यालय के मास्टर की तो बात ही क्या. जहां नजर घुमाएं वहां लोग थम जाएं. बाजार में निकलें तो उनके इकबाल का असर ऐसा कि लाला से लेकर खोमचे वाला, क्लास वन अधिकारी से लेकर चतुर्थश्रेणी कर्मचारी सब सलाम ठोके. मास्टर जी भी अपने इकबाल को पूरे ऐहतराम से संभाल कर रखते थे. बड़े अदबो-अदाब के साथ बाजार की पटालों में कदम धरते थे. जैसे वो रेड कारपेट पर चल रहे हों. हमारे समाज में मय और उससे यारी रखने वालों को ऐब की नजर से देखा जाता है. ऐसे में अगर किसी को शौक-ए-शराब हो तो वो क्या करे.
वो दौर था शराब बंदी का. जिसको पीनी होती थी उसे कलेक्ट्रेट में जाकर पूरे होशोहवास में खुद को लिखित में शराबी घोषित करना होता था. अब मास्साब का तो समाज में नाम जो ठैरा. कलेक्ट्रेट की सीढ़ी चढ़ें तो कैसे. एसडीएम साहब का कार्यालय एवरेस्ट की चोटी सा हो गया. कहते हैं कई बार उन्होंने वहां का रुख किया. कभी कचहरी बाजार से, तो कभी पीछे के रास्ते बांसों के झुरमुट से. हर बार रसूख सीना ठोक सामने आ गया. Funny Lockdown Tale from Almora
वो कहते हैं जहां चाह वहीं राह. इस राह के राही थे अपने मास्साब. उनके एक तलबगार ने आखिर मास्साब की बोतल का इंतजाम कर ही दिया. उनका खास यार कहीं से एक बढ़िया ब्रांड की बोतल का जुगाड़ कर लाया. बाजार की किसी संकरी से गली में अखबार में लपेट बड़े जतन से मास्साब को पकड़ा दी. मास्साब ने बोतल कांख में दबाई. बिना लगाए ही दिल का रंग चहरे पर भरते हुए गली से निकले. बाजार में शहंशाह-ए-हिंदुस्तान के ठसक में चलने लगे. लम्बे-लम्बे डग भरते मास्साब दिल में लड्डू की थैली भर घर को चल दिए. रास्ते में दुआ-सालम का सिलसिला चल निकाला. कमबख्त एक गली के पास बड़े लाला और खौमचे वाले ने एक साथ उनको सलाम पेश किया. मस्ती में मास्साब ने दोनों हाथ उठा के जवाब दिया… और उनके के संग कवायद कर रही बोतल ने अपना सर पटाल पर पटक दिया. उसकी महक से वह कोना गुलजार हो गया. मास्साब तेरे मैकी … कहने के साथ तेजी से पतली गली से निकल लिए.
– दिग्विजय बिष्ट
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दिग्विजय बिष्ट ने पत्रकारिता की शुरूआत टीवी 100 रानीखेत से की. न्यूज 24, डीडी न्यूज होते हुए कई इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में उन्होंने काम किया. बाद में अमर उजाला के बरेली संस्करण के न्यूज डेस्क पर काम. दिल्ली मीडिया में साल भर काम किया. वर्तमान में आल इण्डिया रेडियो, आकाशवाणी अल्मोड़ा से जुड़े हैं.
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