रामी बुढ़िया ( लोककथा )

एक गांव में रामी नाम की बुढिया रहती थी, उसकी बेटी का विवाह दूर एक गांव में हुआ था जहाँ जाने के लिये घना जंगल पार करना पड़ता था. रामी का बहुत मन हो रहा था कि वह अपनी बिटिया से मिल कर आये. (Folk Tales of Uttarakhand)

एक दिन सुबह रामी ने धान के च्यूड़े, सियल और पुए बनाकर एक पोटली में बांधे और बेटी से मिलने निकल पडी. चलते – चलते उसे शाम हो गयी, जंगल से गुजरते हुए उसे खूंखार पशुओं की आवाज सुनायी देने लगी.(Folk Tales of Uttarakhand)

अचानक ही एक काला मोटा भालू उसके सामने आ गया. पहले तो रामी थोड़ा घबरा गई, लेकिन रामी ने हिम्मत नही हारी. रामी के दिमाग में एक तरकीब आई. उसने हाथ जोड़कर भालू से कहा –

बिटिया के घर जाउंगी,
दूध मलाई खाउंगी,
मोटी होकर आउंगी,
तब तुम मुझको खा लेना.

भालू ने उसकी बात मान ली. आगे बढ़ने पर रामी बुढिया को बाघ, सियार तथा अन्य जंगली जानवर मिले जो उसे खाना चाहते थे. लेकिन उनसे भी यही बात कहकर रामी जैसे – तैसे बचते हुए देर शाम अपनी बेटी के घर सकुशल पहुंच ही गई.

माँ और बेटी ने ढेर सारी बातें की. बुढिया ने गांव-पड़ोस के सभी लोगों के हाल – चाल बेटी को बताये. कई दिन बेटी के घर बिताने के बाद बुढिया अब अपने घर वापस जाने की सोचने लगी. वापसी की तैयारी करते हुए रामी चिन्ता में पड गयी. उसे जंगली जानवरों की याद आ गयी जो उसे रास्ते में फिर से मिलने वाले थे. और इस बार बुढिया को लग रहा था कि वो उनसे बच नही पायेगी.

अपनी माँ को परेशान देखकर बेटी ने रामी से इसका कारण पूछा. पहले तो रामी बात को टालने लगी, अन्ततः रामी ने सारी बात अपनी बेटी को बता दी. लेकिन रामी की बेटी भी अत्यन्त चतुर थी. उसने अपनी ससुर से कुछ जादूगरी की कलाएं भी सीखी थी. बेटी ने लौकी की एक बड़ी सी तुमड़ी (सूखी हुई खोखली लौकी) बनाई, उपहारस्वरूप कुछ चीजें पोटली में बांधी और अपनी माँ के कानों में चुपके से कुछ कहा.

तुमड़ी रास्ते पर लुढकने लगी. जंगल में पहुंचने पर रामी का सामना सबसे पहले बाघ से हुआ. बाघ बोला – तुमड़ी क्या तुमने उस बुढिया को देखा जो इसी रास्ते अपनी बिटिया के घर से मोटी होकर लौटने वाली थी?

तुमड़ी के अन्दर से ही रामी बोली –

चल तुमड़ी बाटै-बाट,
मैं कि जानु बुढिया कि बात.

(तुमड़ी सीधे अपने रास्ते पर जाती है, मुझे बुढ़िया के बारे में कुछ भी पता नहीं है)

इसी तरह सभी जानवरों ने तुमड़ी से पूछा, हर बार यही जवाब मिलने पर जानवरों को गुस्सा आ गया और उन्होने तुमड़ी को फोड़ दिया. रामी को देखकर उनमें उसे खाने की होड़ लग गयी और वो आपस में ही लड़ने लगे. मौका देख कर रामी एक पेड़ पर जा कर बैठ गयी.

जानवर नीचे बैठकर उसके नीचे आने का इन्तजार करने लगे. रामी को अपनी बेटी की बतायी हुई बात याद आ गयी वो जोर से आवाज लगा कर बोली- “मेरे नीचे गिरने पर जो सबसे पहले मुझ पर झपटेगा वो ही मुझे खायेगा”. सभी जानवर टकटकी लगा कर उपर देखने लगे. बुढिया ने पोटली से मिर्च निकाल कर उनकी आँखों में झोंक दी. जानवर तड़प कर इधर-उधर भाग गये और रामी पेड़ से उतरकर अपने घर चली गयी. रामी की समझदारी ने उसकी जान बचा ली.

-हेम पंत

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Girish Lohani

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  • शशांक जी आपकी वेबसाइट कौन सी है,, जरा लिंक भेजिए।
    ये एक लोककथा है और मैने अपने इन्हीं शब्दों में लगभग 12 साल पहले CreativeUttarakhand डॉट कॉम के लिए इसे लिखा था। अब ये वेबसाइट बन्द है।

    जिन कहानियों को हम अपने दादी-नानी से सुनकर बड़े हुए हैं उन पर किसी का कॉपीराइट नही होता है।

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