Featured

पीलीभीत की बांसुरी – रोहित उमराव के फोटो

पीलीभीत की बांसुरी
– रोहित उमराव

बांस की बनी बांसुरी और उसकी मधुर-सुरीली तान आखिर किसे नहीं रिझाती? बांसुरी भारत वर्ष का ऐतिहासिक वाद्य यंत्र है. महाभारत काल में श्रीकृष्ण-बांसुरी-गोपिका और गायों की लीलाओं से विश्व परिचित है. उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में कारीगरों की कई पीढियां बांसुरी बनाने के काम को बखूबी आगे बढ़ा रही हैं. वह इसे अपनी पुश्तैनी विरासत मानती हैं. ज्यादातर मुस्लिम परिवार के लोग इसे बनाते हैं. लेकिन यदि कहा जाय कि “इसे बनाते मुसलमान हैं और स्वर फूंकते हिन्दू है” तो यह एकदम सही होगा. पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, राजेंद्र प्रसन्ना जैसे ख्यातिप्राप्त बांसुरी वादकों की पसंद बनी पीलीभीत की बांसुरी देश-दुनियां में अपना नाम रोशन कर रही है. (Flutes of Pilibhit)

पीलीभीत जिले में बांसुरी बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता आया है. आज से 10 साल पहले यहाँ करीबन 500 से ज्यादा परिवार बांसुरी बनाते और उसकी आय से ही बसर करते थे. पर अब हालात बदल गए हैं. इनकी संख्या घटकर 100 के करीब ही रह गई है और आने वाले दिनों में कम ही होती जा रही है. हाथ के हुनर का उचित मूल्य न मिल पाने के चलते इस काम से उनका पारिवारिक गुजर-बसर नहीं हो पा रहा है. जीविका और रोजी-रोटी पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं. इस अँधेरे से उबरने के लिए वे दूसरे रोजगार ढूंढ रहे हैं. जिसमे चार पैसे की बचत भी हो सके.

हुनरमंद कारीगर खुर्शीद, अज़ीम, इसरार और गुड्डू का कहना है कि आसाम से आने वाले बांस के यातायात की समस्या है. पहले ये बांस आसाम से ट्रेन द्वारा बड़े लठ्ठे के रूप में आता था. ट्रेने बंद हो गईं उनका बांस अब ट्रक में छोटे टिकड़ों के रूप में बोरों में भरकर आने लगा. कई जगह बदला जाता है. लाने-ले जाने में बहुत सारा बांस टूट जाता है. सरकार इस हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री की ओर ध्यान दे. राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में इन कारीगरों के काम को प्रदर्शित करने को निःशुल्क बढ़ावा मिले. राहत फण्ड यदि की समस्या हल हो. तब तो फिर से कारीगरों को आशा की किरण नजर आने लगे. और वे जी लगाकर इसी पारंपरिक काम को आगे बढ़ाये.

पेश है पीलीभीत में बनायीं जाने वाली बांसुरियों की एक बानगी. देखते हैं –

आसाम से आये बांस की गोलाई, मोटाई, लंबाई और सिधाई को परखता कारीगर

बांसुरी बनाने के चार सोपान सामने हैं. पहले कारीगर साधारण बांस को तराश कर मुहाने को गोलाई देता है. फिर उसकी जीभ तराशता है. फिर उसमें अरहर की लकड़ी को तराशकर ढाठ बनाता है. फिर ढाठ को तराशकर जीभ से मिला देता है

बांसुरी के बांस की पेंसिल से सिधाई परखकर, फर्मा के सहारे सुरों के छेदों के अनुपात पर निशान लगा लिए जाते हैं. और फिर आग में तपती सुर्ख सलाखों से उसमे छेद किये जाते हैं

साधारण बांस में हांथों के हुनर से अग्नि की तापिश के बाद स्वरों का गुंजन स्वतः उत्पन्न हो जाता है

परिवार के सभी सदस्य महिलाएं और पुरुष मिलकर बांसुरियों की पैकिंग करते हैं और यहीं से फिर उन्हें बाजार भेज दिया जाता है

बेहतरीन फोटो पत्रकार रोहित उमराव लम्बे समय तक अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिन्दुस्तान जैसे समाचार पत्रों में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे.  मूलतः उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के अस्धना से ताल्लुक रखने वाले रोहित ने देश विदेश की यात्रायें की हैं और वहां के जीवन को अपने कैमरे में उतारा है. फिलहाल फ्रीलान्सिंग करते हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago