धारचूला में टेलीफोन का पदार्पण 1961 में तहसील बनने के बाद ही हुआ होगा क्योंकि उससे पहले उसके आने की संभावना कम ही थी. वह भी पुराने पोस्ट ऑफिस पर ही उपलब्ध रहा था. (First Telephone in Dharchula )
तब सुना करते थे कि रं लोगों में पहला निजी टेलीफोन कनेक्शन स्व. श्री दौलत सिंह गुंज्याल ने अपने आवास पर सन 1965-66 में लिया था जो हाईस्कूल करने के बाद मिलिट्री सप्लाई के ठेके आदि लेने का काम शुरू कर चुके थे. वे काफी नए खयालात वाले व्यक्ति थे. (First Telephone in Dharchula)
1966 तक हमने कभी टेलीफोन पर बात नहीं की थी. मार्च 1966 में पोंगो (पांगू) स्कूल के छात्रों को हाईस्कूल बोर्ड की परीक्षा देने के लिए नारायणनगर, अस्कोट जाना पड़ा. कुछ छात्र नारायण आश्रम के संपर्क के कारण कॉलेज में श्री नारायण स्वामी द्वारा निर्मित अतिथि गृह में रहने लगे पर अधिकाँश छात्र-छात्राएं और पांगू से ड्यूटी पर आये अध्यापकगण पानागढ़ में एक दुमंजिला मकान किराए पर लेकर उसमें रहने लगे.
टीचर्स ने तो अपने खाने-पीने की व्यवस्था होटल (ढाबे) में कर ली थी पर हम लोगों को अपना मैस चलाना था जिसके लिए रसोइये की व्यवस्था श्री प्रद्युम्न रौंकली के ताऊ जी स्व, मोती सिंह रौंकली के द्वारा की जानी थी.
यह तय हुआ था कि हमारे पानागढ़ पहुँचने के दूसरे रोज तक वह पहुँच जाएगा और हमें खाना बनाकर खिलाएगा. पर जब दूसरे रोज वह नहीं पहुंचा तो हम सब लोग घबरा गए. इधर तीन-चार दिन में परीक्षा शुरू होनी थी उधर हम सब लोग खाना बनाने में मसरूफ होने को विवश थे.
तय हुआ की नारायणनगर के पोस्ट ऑफिस में जाकर धारचूला फोन करेंगे. हम सब लोग पोस्ट ऑफिस गए. पोस्ट मास्टर से कहा कि धारचूला फोन लगा दीजिये. काफी देर बाद फोन लगा कर उसने फोन का चोंगा हमारी तरफ बढ़ा दिया. कोई फोन लेने को तैयार नहीं था. मजबूरी में मैंने फोन ले लिया. (First Telephone in Dharchula)
उधर से आवाज आई – “किस से बात करनी है?”
पहले से तय हुए मुताबिक़ मैंने कांपती आवाज में कहा कि श्री जवाहर सिंह नबियाल जी को बुला दीजिये, उनसे बात करनी है. ज्वारी थांगमी (स्व. श्री जवाहर सिंह नबियाल जी) जिनका घर पड़ोस में था, बहुत जल्दी फोन पर आ गए और चिंतित स्वर में पूछने लगे कि क्या बात है. मैंने कांपती आवाज में बताया कि हम लोग नारायणनगर परीक्षा देने आए हैं पर हमारा खाना बनाने वाला अब तक नहीं पहुंचा. आप बंगोबगड़ में श्री मोती सिंह रौंकली जी को खबर करा कर हमारा कुक भिजवा दीजिये.
उन्होंने कहा चिंता मत करो वह कल तक पहुँच जाएगा. फोन पर बात ख़त्म होने तक मुझे काफी पसीना आ चुका था लेकिन सभी साथी खुश थे कि खाना बनाने वाला अगले दिन आ जाएगा. और पहुँच कर उसने अगली शाम से हमारा मैस सम्हाल भी लिया.
स्व. ज्वारी थांगमी और स्व. मोती सिंह रौंकली के प्रति हम सब बड़े आभारी हुए कि हमारी एक बड़ी समस्या का निराकरण कर दिया.
आज जब दो साल के बच्चे फोन पर क्या-क्या गेम्स खेलते हैं, कैसे-कैसे एप्स चलाते हैं तो मुझे अपने 15-16 वर्ष की उम्र में फोन पर पहली बार बात करने पर जो घबराहट महसूस हुई थी, उसकी याद आ जाती है.
–नृप सिंह नपलच्याल
(यह लेख रं कल्याण संस्था के प्रकाशन अमटीकर 2018 से सानुमति साभार प्रस्तुत किया जा रहा है.)
धारचूला की व्यांस घाटी के नपलच्यू गाँव के मूल निवासी और फिलहाल देहरादून में निवास करने वाले नृप सिंह नपलच्याल रं कल्याण संस्था के प्रमुख संरक्षक हैं. एक कुशल अधिकारी के रूप में ख्यात नृप सिंह नपलच्याल उत्तराखण्ड सरकार के मुख्य सचिव के पद से रिटायर हुए.
काफल एक नोस्टाल्जिया का नाम है
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